Tuesday, December 23, 2008

वेब दुनिया वालो चोरी बन्द भी करो अब

कुछ दिनो पहले रचना जी ने जानकारी दी थी कि कैसे उनके ब्लाग से सामग्री चुराकर वेबदुनिया मे डाल दी गयी थी। मेरा भी एक लेख चोरी हुआ है। यह लेख ज्ञान जी के मानसिक हलचल ब्लाग पर प्रकाशित हुआ था। मूल लेख का लिंक यह रहा


http://halchal.gyandutt.com/2008/02/blog-post_13.html

और ये है वेबदुनिया का लिंक

http://omnamh.mywebdunia.com/2008/10/06/1223277420000.html


कुछ तो शर्म करो। एक के बाद एक मामले! कुछ तो शर्म करो।

Wednesday, December 17, 2008

धन्यवाद रवीश जी

सत्रह दिसम्बर, 2008 के दैनिक हिन्दुस्तान मे अपने नियमित साप्ताहिक स्तम्भ *ब्लाग-वार्ता* मे रवीश जी ने *मेरी प्रतिक्रिया* नामक मेरे ब्लाग के विषय मे अपने पाठको को जानकारी दी है। धन्यवाद, रवीश जी।



Tuesday, November 4, 2008

रतनजोत के बीज खाकर 5 बच्चे मरे

यह दुखद समाचार कुछ पलो पहले प्राप्त हुआ। बेहद दुखद।


http://www.sindhtoday.net/south-asia/33346.htm


उम्मीद है अब सरकार जागेगी और स्कूलो मे जहरीले रतनजोत को जानबूझकर लगवाने वालो पर कानूनी कार्यवाही करेगी। मौत के सौदागर है ये।


कुछ वर्षो पहले लिखे गये इस चेतावनी भरे लेख मे जतायी गयी आशंकाए अब सही साबित हो रही है।


http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=847&page=-2

Monday, November 3, 2008

अब जान ही ले सब कुछ जहरीले रतनजोत के बारे मे

कल की कविता पर आपकी प्रतिक्रियाओ के लिये आभार। पाठको ने जहरीले विदेशी पौधे रतनजोत के बारे मे विस्तार से जानना चाहा है। पिछले कुछ वर्षो मे इसके दुष्प्रभावो पर लिखे गये अंग्रेजी और हिन्दी लेखो की सूची यहाँ संलग्न है। आज ही मै चार वर्षीय बालक रिपुसूदन से मिलकर लौटा हूँ जिसने रतनजोत खा लिया था। उसकी दिमागी हालत पन्द्रह दिनो बाद भी ठीक नही हुयी है। कुछ पाठको ने लिखा है कि हाँ नयी तकनीक के अपने खतरे तो हैं .पर धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा ! इसमें कलाम साहब का क्या दोष ? और ऐसा ही कुछ -----

मै यही सोच रहा हूँ कि काश! ये कुतर्क सैकडो प्रभावित बच्चो की मुसीबत कुछ कम कर पाते। आज यदि हम किसी व्यक्ति को जिम्मेदारी से बचायेंगे तो कल इसी आड पर दूसरे भी वही गल्ती करेंगे। आखिर कब तक हमारा देश इन अधपके दिमागो की योजनाओ का बोझ उठाता रहेगा???

Bare facts about poisonous Jatropha curcas.

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=877&page=-2


Celebrate Deepawali this year with Karanj oil lamps.

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=1595&page=-2


Jatropha fever.

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=879&page=-2


Keep your water sources pure through traditional knowledge about herbs.

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=952&page=-2

Let’s come forward to save wildlife from poisonous Jatropha.

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=3099&page=-2

New observations related to Jatropha failure in India.

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=3097&page=-2

Now Jatropha is showing its (bad) colors in India.

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=3078&page=-2

One day in Barnawapara wildlife sanctuary region with new experiences
and observations.

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=3102&page=-2

Planning of FEW, Problems for generations

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=843&page=-2

Status of Jatropha curcas in year 2022 in India.

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=3082&page=-2

That is why common people oppose Jatropha plantation.

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=1868&page=-2

Thats why your Biodiesel Tree is not performing well.

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=3118&page=-2

Visit to plantations and see Jatropha failure by your own eyes.

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=3081&page=-2

Who will protect our children from Jatropha poisoning?

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=847&page=-2

Why Karanj is better than Jatropha?

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=845&page=-2

Who will buy Ratanjot?

http://ecoport.org/ep?SearchType=reference&ReferenceID=557008

Recommended for wasteland why Jatropha is under planting in fertile
crop fields?

http://ecoport.org/ep?SearchType=reference&ReferenceID=557108

Why there is blind race for foreign plant Jatropha?

http://ecoport.org/ep?SearchType=reference&ReferenceID=557411

Jatropha promoters know very less about this foreign plant.

http://ecoport.org/ep?SearchType=reference&ReferenceID=557412

Why indigenous Karanj is better than exotic Jatropha?

http://ecoport.org/ep?SearchType=reference&ReferenceID=557413

Karanj vs. Jatropha : Indigenous vs. Exotic

http://ecoport.org/ep?SearchType=reference&ReferenceID=557422

Harmful effects of Jatropha and its large scale plantation are now
coming on surface.

http://ecoport.org/ep?SearchType=reference&ReferenceID=557681

Sunday, November 2, 2008

कलाम चाचा, क्या आपने चखा है बीज रतनजोत का

कलाम चाचा, क्या आपने चखा है बीज

रतनजोत का

उल्टी-चक्कर और फिर मंजर

मौत सा


आपने तो कहा था

देश का भविष्य़ है ये

सैकडो बच्चे है जो आज अस्पताल मे

क्या नही देश का भविष्य वे


क्यो नही आप इनसे

मिलने जाते

आप ने कहा था झूठ

यह उन्हे बताते


हमने तो सुनी आपकी बाते

मानी भी

स्कूलो मे रतनजोत लगाने की

ठानी भी


पर आपने नही बताया

यह है जहर

औ’ देश के बच्चो पर टूटेगा

बन के कहर

क्या पता नही था आपको
इस खोट का

कलाम चाचा, क्या आपने चखा है बीज

रतनजोत का

उल्टी-चक्कर और फिर मंजर

मौत सा

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

[पिछले कुछ महिनो मे पंजाब मे सौ, राजस्थान मे 60, छत्तीसगढ मे 45, उत्तरप्रदेश मे 11 बच्चे जहरीला रतनजोत खाकर अस्पताल पहुँच चुके है। ये तो इंटरनेट से मिले आँकडे है। जमीनी हकीकत तो बहुत भयावह है। वैज्ञानिक शोध बताते है कि रतनजोत का जहर बच्चो को मानसिक स्तर पर प्रभावित करता है। वे जिन्दगी भर इससे नही उबर पाते है। डाँ एपीजे कलाम के भाषणो से प्रभावित होकर देश भर के स्कूलो मे इसे रोप दिया गया। विशेषज्ञ चिल्लाते रहे कि यह जहरीला पौधा है पर हमारे मिसाइल मैन ने किसी की नही सुनी। आज देश भर से सैकडो बच्चो के बीमार होने की खबर आ रही है। पिछले मौसम मे भी ऐसा ही हुआ था जब रतनजोत पर बीज आये थे। बच्चे जानकारी के अभाव मे फल को खा रहे है और बीमार हो रहे है। पहले मेरठ प्रशासन ने और फिर बरनाला और दूसरे स्थानो मे अब स्कूलो से इसे उखाडा जा रहा है। बच्चो के कलाम चाचा कहाँ है? वे क्यो नही अस्पतालो मे जाकर अपनी इस भूल का पश्चाताप कर रहे है? उन्होने जो जहर बोया है वह सालो तक बच्चो को बीमार करता रहेगा।

आप कह सकते है कि वे परमाणु वैज्ञानिक है भला रतनजोत और इसके दुष्प्रभावो के बारे मे क्या जाने। आप सही है। यही कृषि और पर्यावरण विशेषज्ञ भी कहते आ रहे है कि परमाणु वैज्ञानिक को उनकी बात सुननी चाहिये। उन किसानो की बात सुननी चाहिये जिनके खेत रतनजोत ने बर्बाद कर दिये। उन आदिवासियो की बात सुननी चाहिये जिनकी वन सम्पदा रतनजोत लील रहा है। उन माता-पिता की बात सुननी चाहिये जिनके बच्चे रतनजोत खाकर अस्पतालो मे है। पर उनकी कभी नही सुनी गयी। आज रतनजोत का शो फ्लाप हो रहा है और सारी दुनिया हम पर हँस रही है।

इतनी बडी संख्या मे बच्चो को अस्पताल पहुँचता देखकर मन दुखी हुआ इसलिये यह कविता बन गयी।]

Friday, October 10, 2008

आपका अपना जिमीकन्द

खूब खाओ चटपटे व्यंजन
आराम से बिताओ जीवन
हो जब कब्ज
या अर्श का आगमन

तब मेरी याद करना तुरंत
करूंगा सब प्रबन्ध
मै हूँ गले मे खुजली करने वाला
आपका अपना जिमीकन्द

मुझे अपनी बाडी मे लगाना
रोज पानी जरुर दे जाना
बिना देखभाल उगने का मेरा दम
सभी ने माना

चाहे सब्जी की तरह पकाओ
या अचार के रुप मे लो आनन्द
मै हूँ गले मे खुजली करने वाला
आपका अपना जिमीकन्द

वैद्यो ने पहले पहचाना
कहा कि मुझमे है स्वास्थ्य का खजाना
आज का विज्ञान भी सीखाता है
मुझे आजमाना

पीढीयो से कर रहा
अच्छे स्वास्थ्य का नारा बुलन्द
मै हूँ गले मे खुजली करने वाला
आपका अपना जिमीकन्द

-पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

© सर्वाधिकार सुरक्षित


[कृषि की शिक्षा के दौरान (और बाद मे भी) किसान गोष्ठियो के लिये मै इस प्रकार की छोटी पर जानकारी देने वाली कविताओ की रचना करता था। जिमीकन्द को सूरन भी कहा जाता है। अर्श बवासिर या पाइल्स को कहा जाता है।]

प्यारे भुईनीम

अब डर ओ नन्हे पौधे
तुझे ले जाने अब आते होंगे वो
तेरे उगने की बेसब्र प्रतीक्षा
पिछले बरस से कर रहे थे जो

अपनी कडवाहट से रोगियो मे
नवजीवन भरता असीम
हर जुल्म सहता तू बिना कडवाहट
प्यारे भुईनीम

काश! तुझे भी मिलता अवसर जीने का
फूलने और फलने का
जंगल की आजादी मे
मचलने का

काश! तू उगता वहाँ जहाँ न पहुँचे
व्यापारी और हकीम
हर जुल्म सहता तू बिना कडवाहट
प्यारे भुईनीम


-पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

© सर्वाधिकार सुरक्षित


[भुईनीम एक देशी वनस्पति है जो हर साल छत्तीसगढ के जंगलो मे बरसात मे उगती है। इसकी कडवाहट नीम से भी अधिक होती है। मलेरिया से लेकर रक्त सम्बन्धी रोगो मे उपयोग की जाती है। जडी-बूटी से चिकित्सा करने वालो से लेकर व्यापारी तक इसके उगने की बाट जोहते रहते है और हर बार फलने-फूलने से पहले ही इसे एकत्र कर लिया जाता है। इस कविता मे भुईनीम के दर्द को सामने रखा गया है।]

Thursday, July 3, 2008

आखिर कब तक होती रहेगी भारतीय सम्पदा की चोरी इस तरह?

आखिर कब तक होती रहेगी भारतीय सम्पदा की चोरी इस तरह?

- पंकज अवधिया

कल ही मुझे एक भारतीय वैज्ञानिक का सन्देश मिला जिसमे संकट मे पडे दो विदेशी वैज्ञानिको को बचाने आन-लाइन याचिका पर हस्ताक्षर करने की अपील की गयी थी। इस सन्देश मे कहा गया था दोनो विदेशी वैज्ञानिको ने भारतीय कानून तोडा है पर चूँकि उनका विश्व मे बहुत नाम है इसलिये उन्हे छोड दिया जाना चाहिये। मैने इंटरनेट पर खोजा तो घटना की जानकारी मिली। घटना दार्जिलिंग के पास की है जहाँ इसी साल जून के अंतिम सप्ताह मे चेक गणराज्य के दो नागरिक राष्ट्रीय वन्यप्राणी अभ्यारण्य मे बिना अनुमति के सैकडो कीडो के साथ पकडाये। वन विभाग ने वन्यप्राणी सुरक्षा अधिनियम के तहत उन पर कार्यवाही की और न्यायालय ने उन्हे जमानत देने से इंकार कर दिया। अब अगले सप्ताह इसकी सुनवाई होगी। यह भी जानकारी मिली कि इनके पास टाइगर बीटल नामक विशेष आर्थिक महत्व के कीट पाये गये जिनकी अंतरराष्ट्रीय बाजार विशेषकर चीन मे बहुत माँग है। एक कीट की कीमत हजारो मे है। जिस भारतीय वैज्ञानिक ने अपील भेजी थी उसका तर्क था कि इन लोगो ने अपने म्यूजियम के लिये इसे एकत्र किया होगा। इतने बडे वैज्ञानिक व्यापार के लिये ऐसा नही कर सकते।

पूरा लेख इस कडी पर पढे

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=3180&page=12370

Tuesday, July 1, 2008

भैंस की च्यूंगम भला मनुष्य क्यो खा रहा?

भैंस की च्यूंगम भला मनुष्य क्यो खा रहा?
- पंकज अवधिया

कुछ दिनो पहले की बात है मेरे साथ टेबल टेनिस खेलने एक सज्जन आये स्थानीय क्लब मे। खेल से पहले ही उन्होने च्यूंगम का पैकेट निकाला और मुझसे लेने को कहा। अपने छोटे बच्चो को भी उन्होने इसे दी। मैने धन्यवाद कहते हुये इंकार कर दिया। वे बोले यह शुगर फ्री है। मैने कहा कि मेरे न लेने के दूसरे कारण है। बहुत पूछने पर मैने बताया कि यह बच्चो के लिये नही है और इसमे ऐसा तत्व है जो किडनी के लिये नुकसानदायक है। वे हँसने लगे। उन्होने समझा कि मै मजाक कर रहा हूँ। मैने उनसे पैकेट माँगा और फिर उसमे बारीक अक्षरो मे अंकित कुछ पंक्तियाँ पढवा दी। उसमे साफ लिखा था ‘नाट फार माइनर्स’। साथ की एक रसायन का नाम लिखा था। वे चौक पडे। उन्होने घर फोन लगाया और अपनी पत्नी से इंटरनेट पर इस रसायन के बारे मे पता करने को कहा। दस मिनट के अन्दर फोन आया कि हाँ यह रसायन किडनी के लिये अभिशाप है और किडनी के रोगो से प्रभावित रोगियो को तो इसे खाना ही नही चाहिये।

पूरा लेख इस कडी पर पढे

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=3180&page=-2

Friday, June 27, 2008

एक बार किसानो पर लिख कर उन्हे भूल गये












एक बार किसानो पर लिख कर

उन्हे भूल गये

जाने कितने किसान अब तक

कर्ज के फन्दे मे झूल गये


अब बस भी करो चन्द पंक्तियाँ लिखकर

कर्तव्यो की इतिश्री करना

अन्नदाता का मरना है

एक देश का मरना


सो रहा सत्तापक्ष और इस देश का

विपक्ष भी

हर समस्या मे दिखती उन्हे

राजनीति ही


देश के व्यापारी अब

कर रहे है खेती

आम लोग का पेट नही

बस अपनी गाडी दिखायी देती


मेरे देश की धरती

सोना उगले

और मुठ्ठी भर लोग

इसे निगले


अरबो के बंगले मे रहने की खबरे

छपवाने वालो

या हेलीकाप्टर पर जनता का पैसा

बहाने वालो


या बात-बात पर एसएमएस

करने वालो

कुछ तो दिल अपना

खोलो

देश हुआ अन्धेर नगरी और

राजा चौपट भये

जाने कितने किसान अब तक

कर्ज के फन्दे मे झूल गये


एक बार किसानो पर लिख कर

उन्हे भूल गये

जाने कितने किसान अब तक

कर्ज के फन्दे मे झूल गये

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

© सर्वाधिकार सुरक्षित

आप आये इसके लिये आभार। कृपया टिप्पणी न करे। यदि किसानो के प्रति कुछ करना चाहते है तो राजनेताओ और योजनाकारो पर दबाव बनाये, दलगत राजनीति से उठकर क्योकि अन्नदाता किसी दल विशेष के लिये अन्न नही उपजाते और रोटी की कोई पार्टी नही होती। अब समय आ गया है कि पीढीयो के कर्ज को उतारकर किसानो को कर्ज से मुक्ति दिलाने का।


क्या आप किसी ऐसी संस्था को जानते है जो दानदाताओ और किसानो के बीच सेतु बन सके। बहुत से लोग है जो किसानो को सीधे मदद करना चाहते है पर कैसे उन तक पहुँचे यह नही समझ पाते है? क्या सरकार किसानो को दी जाने वाली सीधी मदद को टैक्स फ्री करेगी या कुछ रियायत देगी? क्या किसानो की सूची, उन पर कर्ज और उनके पते का ब्यौरा कही से मिल सकेगा?

चलिये, कविता पर पहली प्रतिक्रिया के तहत किसानो को दस हजार रुपये देने की इच्छा एक पाठक ने जतायी है पर वे पूछ रहे है कि इस दिशा मे कैसे बढा जाये? धन्यवाद। आपके सुझाव आमंत्रित है।






Friday, June 13, 2008

क्या आरुषि के पिता की हस्त-रेखाए ऐसी है?

यह प्रश्न है मेरे मित्र अभय का जिन्होने हाल ही मे ब्लागिंग आरम्भ की है। अभय के पास कम्प्यूटर नही है। वे साइबर कैफे से ब्लागिंग करेंगे। ज्योतिष मेरे लिये अबूझ विज्ञान है पर अभय काफी जानकारी रखते है। उनका कहना है कि वे किसी के बारे मे पढ, देख और सुनकर उसके हाथो की रेखाए बना सकते है। मेरी भूमिका परिचय तक है। आप से अनुरोध है कि आप उनके ब्लाग पर जाकर उनकी इस विधा के बारे मे जाने।

रेखा कह देती है सब

http://hast-rekhaa.blogspot.com/2008/06/blog-post.html


अभय से एक अनुरोध

मनुष्य का भविष्य़

बताने वालो

उसे विपत्ति से बचाने के उपाय

सुझाने वालो


जरा इस धरती का भविष्य़

बता दो

निज स्वार्थ मे डूबे मनुष्य के इरादे

जता दो


क्या पहनाऊँ उसे

जो वह न करे बर्बाद इस धरती को

मोती, पन्ना, मूंगा जो भी कहो

पर देखना चाहता हूँ

आबाद इस धरती को

- पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

Wednesday, May 28, 2008

आइये बचाये, भगवान की इस निरीह बुढिया को

भगवान की बुढिया के विषय मे आज रोचक लेख आप ज्ञान जी के चिठ्ठे मे पढ सकते है।

http://hgdp.blogspot.com/2008/05/blog-post_28.html

Tuesday, May 20, 2008

वनस्पतियो के साधारण प्रयोग से बचे मच्छरो से

आज ज्ञान जी के चिठ्ठे पर आप इस विषय मे उपयोगी जानकारी प्राप्त कर सकते है। इस कडी को चटकाए

http://hgdp.blogspot.com/2008/05/blog-post_21.html

नंगे होते पहाड, प्रकृति का उजडता संसार

यह हिन्दी लेख इकोपोर्ट मे पीडीएफ के रुप मे उपलब्ध है। यह देश भर मे प्रकाशित हो चुका है। आप इस कडी पर जाकर इस लेख को पढ सकते है।

http://ecoport.org/ep?SearchType=reference&ReferenceID=557435

Monday, May 19, 2008

अतिथि देवो भव: : वर्तमान परिपेक्ष्य मे कितना प्रासंगिक?

यह हिन्दी लेख देश भर मे छप चुका है। मनुज फीचर्स के सौजन्य से भी। आप इकोपोर्ट मे इसे पढ सकते है। यह पीडीएफ मे है। आप इस कडी पर जाकर डाउनलोड कर सकते है।

http://ecoport.org/ep?SearchType=reference&ReferenceID=557477

Saturday, May 17, 2008

तुझे मिर्ची लगी तो मै क्या करुँ

मुझे उम्मीद थी कि एक भारतीय की सफलता को दूसरा भारतीय शायद ही पचा पाये। अब देखिये मेरी छै घंटे मे 1000 पन्नो वाली बात पर सब काम छोडकर विघ्न संतोषी इस पर पोस्ट लिखने लगे। नाम से नही बेनाम होकर। मुझे ' तुझे मिर्ची लगी तो मै क्या करुँ' वाला गाना याद आ रहा है।" चलिये मै फिल्मी स्टाइल मे कहता हूँ यदि माँ का दूध पिया है तो यह चैलेंज स्वीकारे। मेरा तो ये रोज का काम है। आज ही आपके सामने यह करके दिखाता हूँ। यदि मै हारा तो आप सजा निर्धारित करे और यदि जीता तो आपको आजीवन सभी हिन्दी ब्लाग्स को पूरा पढकर टिप्पणी करनी होगी बिना पैसा लिये और बिना किसी ब्रेक के। मंजूर है???

वैसे जिन लोगो ने टिपपणी देकर हौसला आफजायी की है, उनका आभार। उम्मीद है अभी और विघ्न संतोषी सामने आयेंगे और अपनी खुन्नस निकालेंगे। मै तो रवि जी की तरह इनसे गाना गाकर ही निपटूंगा। वैसे उस खिसयानी पोस्ट के बाद अचानक ही साइट ट्रैफिक बढ गया है।


आज नीचे दी गयी कडी पर आप रपट मे जोडे जा रहे पन्नो को देख पायेंगे। रपट तो नही देख पायेंगे क्योकि इसमे पासवर्ड है पर तालिकाओ को देख पायेंगे। जिन्हे शक हो रहा है वे केवल तालिकाओ के ही प्रिंट निकालते चले। शायद ये ही एक हजार से अधिक पन्नो की हो जाये आज रात तक। अभी यह Day 165 पर है। ये रहा लिंक

http://ecoport.org/ep?SearchType=interactiveTableList&Title=Traditional+Shurbut+%28Sherbet%29+based+365+days+schedule+%28VII%29&KeywordWild=CO&TitleWild=CO

रपट की प्रगति मै इस कडी पर रोज पोस्ट कर रहा हूँ।


http://paramparik.blogspot.com/2008/05/blog-post_17.html

अब आप आ ही गये है तो मधुमेह की रपट की कडियो को भी देख ले| इनके भी प्रिंट निकालकर मन को ठंडा कर ले। ये है लिंक

http://www.pankajoudhia.com/botanical-17.htm


शुभकामनाए


अपडेट

हाथ कंगन को आरसी क्या और पढे-लिखे को फारसी क्या।
लीजिये 500 से अधिक नये पन्ने जुड गये रपट मे। Day 165 से अब Day 265 तक की तालिकाए हो गयी। प्रत्येक तालिका का विस्तार से वर्णन अलग। आज ज्यादा जोश था इसलिये कम समय लगा। विघ्न संतोषी जी के ब्लाग से होते हुये दिल्ली के अंग्रेजी दैनिक के पत्रकार मुझ तक पहुँच गये और एक इंटरव्यू ले लिया इस दस्तावेजीकरण पर। यह बोनस हुआ।

इसी बहाने एक बात कहना चाहूंगा। नारी जैसे दिखने वाले फल का समाचार कल धूम मचाता रहा क्योकि यह विदेश से आया था, किसी ने सवाल नही खडे किये पर आज एक देशवासी की पोस्ट आयी तो जडे खोदने के लिये कितनी मेहनत झोक़ दी विघ्नसंतोषी जी ने। यदि इतना समय उन्होने अपने लिये और अपने परिवार के लिये लगाया होता तो कुछ और बात होती। ऊर्जा के सकारात्मक प्रयोग की जरुरत है।

छै घंटे मे औसतन 1000 पन्ने लिख पाने का अनुभव

छै घंटे मे औसतन 1000 पन्ने लिख पाने का अनुभव निश्चित ही अनोखा है। पिछले कुछ समय से मै प्रतिदिन यही कर रहा हूँ। मधुमेह और ह्रदय रोगो की वैज्ञानिक रपटो पर काम चल रहा है। मधुमेह की रपट मे 75,000 से अधिक और ह्रदय रोगो की रपट मे अब 20 हजार से अधिक पन्ने लिखे जा चुके है। पिछले कुछ दिनो मे किये गये कार्यो के अंश आप इन कडियो मे देख सकते है।

http://ecoport.org/ep?SearchType=interactiveTableList&Keyword=heart1&KeywordWild=CO

http://ecoport.org/ep?SearchType=interactiveTableList&Keyword=heart2&KeywordWild=CO

http://ecoport.org/ep?SearchType=interactiveTableList&Keyword=heart3&KeywordWild=CO

http://ecoport.org/ep?SearchType=interactiveTableList&Keyword=heart4&KeywordWild=CO

http://ecoport.org/ep?SearchType=interactiveTableList&Keyword=heart5&KeywordWild=CO

http://ecoport.org/ep?SearchType=interactiveTableList&Keyword=heart6&KeywordWild=CO

http://ecoport.org/ep?SearchType=interactiveTableList&Title=Traditional+Shurbut+%28Sherbet%29+based+365+days+schedule+%28III%29&KeywordWild=CO&TitleWild=CO

http://ecoport.org/ep?SearchType=interactiveTableList&Title=Traditional+Shurbut+%28Sherbet%29+based+365+days+schedule+%28IV%29&KeywordWild=CO&TitleWild=CO

http://ecoport.org/ep?SearchType=interactiveTableList&Title=Traditional+Shurbut+%28Sherbet%29+based+365+days+schedule+%28V%29&KeywordWild=CO&TitleWild=CO

http://ecoport.org/ep?SearchType=interactiveTableList&Title=Traditional+Shurbut+%28Sherbet%29+based+365+days+schedule+%28VI%29&KeywordWild=CO&TitleWild=CO

http://ecoport.org/ep?SearchType=interactiveTableList&Title=Traditional+Shurbut+%28Sherbet%29+based+365+days+schedule+%28VII%29&KeywordWild=CO&TitleWild=CO


यदि एक पन्ने की टाइपिंग का बाजार भाव पाँच रुपये भी पकडे तो रोज पाँच हजार रुपयो का काम हो जाता है। फिर बाजार मे शायद की कोई रोज एक हजार पन्ने कर पाये बिन गल्ती के। ये सारे काम अपनी जेब से हो रहे है इसलिये बाहरी मदद की तो सोच भी नही सकते।

इतना अधिक लिखने के कारण शरीर पर कुछ बुरे प्रभाव भी हो रहे है। आँखो पर सबसे अधिक असर है। दोनो आँखो के चारो ओर काले चक्र बन जाते है। नीन्द मे भी यह लेखन चलता रहता है। इसलिये लम्बी नीन्द के बाद भी थकान बनी रहती है। शाम को दो घंटे खेलने चला जाता हूँ इसलिये तन और मन तरोताजा हो जाते है।

पहले मै दो से तीन पन्ने ही एक दिन मे लिख पाता था पर वर्तमान गति को पाने मे तीन साल लगे। आगे का लक्ष्य है एक दिन मे 10,000 पन्ने लिखना , कम से कम बीस दिनो तक। इन दोनो रपटो मे इतनी सारी जानकारियाँ है कि इन्हे पूरा करने के लिये यह गति जरुरी है। कभी आप भी प्रयास करियेगा इस गति से लिख पाने का।



आप यह भी पढ ले

http://dardhindustani.blogspot.com/2008/05/blog-post_17.html



For further updates on report, keep visiting this link



Note on Scientific Report titled ‘Traditional medicinal knowledge about herbs and herbal combinations used in treatment of Type II Diabetes in India with special reference to Chhattisgarh’.
by
Pankaj Oudhia

http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=3077&page=-2






Friday, May 16, 2008

चलने लगा है अब हिंदी ब्लागिंग का जादू

मेरा एक ब्लाग है रायपुर मे कौन सी बदबू फैली है अभी। इसमे रात के अन्धेरे मे फैलाये जाने वाले प्रदूषण की जानकारी मै दर्ज करता हूँ। बहुत दिनो से आम लोग डिस्टलरी की बदबू से परेशान थे। एक रात मे तीन-तीन बार दम घोटू माहौल बन जाता था। कुछ दिनो पहले इस ब्लाग को जस का तस दैनिक छत्तीसगढ ने प्रकाशित किया। इसकी व्यापक प्रतिक्रिया हुयी और कुछ ही राते सही पर अभी बदबू नही आ रही है। दूसरे तरह के प्रदूषणो पर भी अंकुश लगता दिख रहा है।

मेरा एक लेख पैसे से खरीदकर जहर खाता है आम आदमी' के आधार पर मुझे किसानो विशेषकर पंजाब के किसानो के सन्देश आ रहे है। यह आश्चर्य का विषय है कि किसान सीधे ब्लाग पढ रहे है। प्रसार कार्यकर्ताओ के माध्यम से भी नेट पर प्रकाशित हिन्दी लेख किसानो तक पहुँचना शुरु हो चुके है। आज एक फोन आया जिसमे इस लेख के आधार पर मुझे पंजाब मे जैविक खेती पर दिन भर व्याख्यान देने के लिये आमंत्रित किया गया है।

मध्यप्रदेश से एक फोन आया कि हमने धडाधड चिठ्ठी मे सर्पगन्धा पर आपका लेख पढा। धडाधड चिठ्ठी? मेरे विचार से वे चिठ्ठाजगत की बात कर रहे थे। औषधीय और सगन्ध फसलो से जुडे किसान ब्लाग पढ रहे है। महानगरो से बडी कम्पनियो से भी सन्देश आ रहे है। आपको विश्वास नही होगा पर हिन्दी ब्लागिंग आरम्भ करने के बाद मुझे देश भर मे बुलाया जा रहा है और कई हवाई यात्रा का मौका मिला है।

ब्लाग से ली गयी मेरी 5 कविताए, 15 से अधिक लेख और दूसरी सामग्रियाँ देश भर मे छप चुकी है अच्छे पारिश्रमिक के साथ। कई पत्रिकाओ और अखबारो से कृषि पर स्थायी स्तम्भ लिखने के आमंत्रण आये है।

मैने ऍडसेंस नही लगाया है। पर फिर भी कहता हूँ कि ब्लागिंग धनार्जन के व्यापक अवसर देती है। भले ही गूगल को मेरी ब्लागिंग से बहुत पैसे मिल रहे हो जैसा कि लोग अक्सर कहते है, पर अब तक की सफलता के आधार पर यदि गूगल स्वीकारे तो मै उसे दान देना चाहता हूँ। मुफ्त मे किसी से लाभ उठाना अपनी फितरत मे नही। मुझे हिन्दी ब्लागिंग का भविष्य़ उज्जवल दिखता है।



लगता है डिस्टलरी वाले भी ब्लाग पढते है। अभी जैसे ही सोने गया तो फिर बदबू आने लगी। वापस आकर मै आपको इस सत्य से परिचित करा रहा हूँ। सुबह के साढे पाँच बज रहे है। लगता है और प्रयास करने होंगे इस जहरीली हवा से रायपुर वासियो को बचाने के लिये।

Sunday, May 11, 2008

दर्द हिन्दुस्तानी को Pain हिन्दुस्तानी बनाया

आपने सही पढा अब गूगल बाबा हिन्दी से अंग्रेजी अनुवाद जो करने लगे है। गाजर घास और भ्रष्टाचार नामक मेरी हिन्दी कविता का अंग्रेजी शीर्षक दिया गया है Grass and Carrots corruption. इसी मे नीचे दर्द हिन्दुस्तानी को pain हिन्दुस्तानी कर दिया गया है। गनीमत है मेरा नाम Lotus अवधिया नही हुआ। आप जरा इस कविता का अंग्रेजी अनुवाद पढे। मुझे लगता है कि यदि किसी बडी प्रतियोगिता मे यह चली गयी तो पहला पुरुस्कार तय है। :)

आप ही बताये। आपके कैसे अनुभव रहे? 'Wind Red ' जी भी बताये। क्या कहा कौन 'Wind Red ' ? अरे अपने चहेते समीर लाल जी की बात कर रहा हूँ मै। :)

Tuesday, May 6, 2008

भारतीय सैन्य अभियानो के लिये उपयोगी वनस्पतियाँ

आज युद्ध मे प्रयोग होने वाली वनस्पतियो के विषय मे पढे ज्ञान जी के चिठ्ठे मे

http://hgdp.blogspot.com/2008/05/blog-post_07.html

Friday, May 2, 2008

क्या आपने हल्दी के पेटेंट का यह नया आवेदन पत्र देखा है?

हल्दी के पेटेंट होने की बात हम सभी समय-समय पर करते रहते है। हल्दी अनंत काल से भारत मे प्रयोग होती रही है। इसके बहुत से उपयोग दस्तावेजो के रुप मे उपलब्ध है पर ज्यादातर ज्ञान अब भी पारम्परिक चिकित्सको के पास है। नेट पर सर्फिंग करते समय अचानक ही मेरी नजर इस पेटेंट के आवेदन पत्र पर पढी जिसमे हल्दी और अदरक के साथ सोयाबीन के प्रयोग से मधुमेह नियंत्रण का दावा किया गया है। यह आवेदन भारतीयो द्वारा किया गया है। इसमे से ज्यादातर वे लोग है जिन पर एक समय मे भारतीय वनस्पतियो और इससे सम्बन्धित ज्ञान को बचाने का जिम्मा था। एक ओर हमारी सरकार कहती है कि दस्तावेजीकरण नही हुआ है। दूसरी तरफ हमारे वैज्ञानिक हल्दी और अदरक से सम्बन्धित नुस्खो को पेटेंट कराने मे जुटे है। यह बात अजीब लगी और यह कभी भी हिन्दी मे जनसाधारण तक नही पहुँचेगी इसलिये मै ये पोस्ट प्रेषित कर रहा हूँ। आप सभी सक्षम लोगो से निवेदन है कि हल्दी पर इस पेटेंट की कोशिश पर नजर रखे ताकि भारतीय ज्ञान की रक्षा हो सके।

इस नुस्खे जैसे बहुत से नुस्खे मेरी मधुमेह से सम्बन्धित रपट मे है जो भारतीय पारम्परिक चिकित्सको के ज्ञान के आधार पर लिखी जा रही है। इसलिये मुझे लगता है कि इस पर भारतीयो का अधिकार होना चाहिये न कि चन्द लोगो का।

http://www.google.com/patents?id=PeGYAAAAEBAJ&dq=curcuma+longa


Curcuma longa हल्दी का वैज्ञानिक नाम है।



Saturday, April 26, 2008

इकोपोर्ट मे मेरा अब तक का योगदान

पिछले दिनो कुछ प्रबुद्ध पाठको ने इकोपोर्ट मे मेरे योगदान की जानकारी चाही थी। वैसे तो मै अपने लेखो मे कडियाँ देता रहता हूँ पर एक बार फिर से यहाँ कुछ उपयोगी कडियाँ प्रस्तुत है। पिछले माह एक कम्प्यूटर विशेषज्ञ को फीस देकर प्रिंट निकलवाने के लिये कुल पन्नो की संख्या गिनने का प्रयास किया था पर तीन लाख पन्नो के बाद इसे रोक दिया गया। यदि एक पन्ने के लिये एक रुपया भी पकडे तो भी तीन लाख से अधिक का खर्च बैठेगा। शोध आलेखो और रपट की सूची मे मधुमेह की वैज्ञानिक रपट भी है जिसमे अभी तक 75,000 पन्ने जोडे जा चुके है। यह दो वर्षो मे पूर्ण होगी और तब इसमे दो लाख से अधिक पन्ने होंगे। हाल ही मे ह्र्दय रोगो पर भी एक रपट आरम्भ की है। इसमे अभी तक दस हजार पन्ने लिखे गये है। प्रतिदिन 600-800 पन्ने का कठिन लक्षय रखा है। इकोपोर्ट विकी की तरह है। इसमे पैसा नही मिलता। शोध से लेकर दस्तावेजीकरण तक किसी से भी एक पैसा लिये बगैर ये योगदान दिया गया है। विकी के विपरीत इसमे विशेषज्ञ ही अपना योगदान दे सकते है। इकोपोर्ट ज्ञान के व्यवसायिक उपयोग की अनुमति नही देता। इकोपोर्ट मे रपट को कूट भाषा मे भी लिखा जा सकता है। इकोपोर्ट मे मैने 80,000 से अधिक चित्रो का योगदान किया है जिसमे से अब तक 32,000 से अधिक चित्र शामिल किये जा चुके है।

इसके अलावा 13,000 से अधिक आलेख बाटेनिकल डाँट काम पर भी है

सैकडो शोध पत्र है जो दुनिया भर की शोध पत्रिकाओ मे प्रकाशित हुये है। कुछ की सूची यहाँ है

हिन्दी मे किसानो के लिये तीन हजार लेख अब तक लिखे है जो देश भर की 18 से अधिक कृषि पत्रिकाओ मे प्रकाशित होते रहते है। इन्हे यूनीकोड मे फिर से टाइप कर नेट पर लाने के प्रयास कर रहा हूँ।



नवीनतम जानकारी आप मेरे होम पेज से प्राप्त कर सकते है।

Wednesday, April 23, 2008

हाँ, मुझे लिखना नही आता : अलविदा हिन्दी ब्लाग जगत

सभी वरिष्ठो और कनिष्ठो के आशीष और प्यार भरे सन्देश के बाद मैने ब्लाग पर लिखते रहने का निर्णय लिया है। मै लिखता रहूंगा, जिसकी जैसी समझ है वह समझे। इस अनिश्चय की घडी मे आप सब शुभचिंतको के सहयोग के लिये मै आभारी हूँ। शुभचिंतको ने जो संघर्ष का हौसला दिया है उसे कायम रखूंगा।


आज शाम जंगल से वापस लौटा तो देखा सब जगह औधिया जी ही औधिया जी है। मै उन सभी का आभारी हूँ जिन्होने मेरे लेखो को कम से कम भाषण कहा। मै तो इस लायक भी नही हूँ। मै तो लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। पता नही कब सफलता मिलेगी?

मै जब हिन्दी ब्लाग की दुनिया मे आया तो मुझे बताया गया कि कोई योग्यता की जरुरत नही है। सभी लोग यहाँ लिख सकते है। इसीलिये मैने लिखने की जुर्रत की। पर अब लगता है बडी गल्ती हो गयी। देश के बडे-बडे ब्लागर जिनके लेखन का मै प्रशंसक रहा हूँ सारे देश की समस्या को छोडकर इसमे अपनी ऊर्जा व्यर्थ कर रहे है कि मुझे लिखना आता है कि नही। पहले बताया होता तो मै स्वीकार कर लेता।

अब मेरे रुकने से आपको समस्या हो और आपकी इजाजत न हो तो ब्लाग की दुनिया से भी चला जाता हूँ। आखिर कितना समय लगता है ब्लाग डिलिट करने मे। मेरी ही गल्ती है जो विद्वत जनो के सामने मैने कलम उठाने की जुर्रत की।

मै गूगल का आभारी हूँ जिसने मुझे मौका दिया कि मै आप लोगो से मिल सका कुछ समय के लिये ही। अब मै अपने सभी ब्लाग मे नया लिखना बन्द कर रहा हूँ। और कोई आदेश हो तो बताये वह भी मै करने को तैयार हूँ पर आप जरा देश की समस्याओ पर ध्यान दे मुझ जैसे नाचीज को लेकर क्यो परेशान हो रहे है?

यह भी बताये कि क्या मै आगे लिखने की कोशिश कर सकता हूँ या नही? ब्लाग पर नही मेरे आका कागज पर?

उन सभी को धन्यवाद जिनके सानिध्य मे मैने जीवन का यह महत्वपूर्ण समय बिताया

ज्ञान जी, संजीव तिवारी जी, संजीत त्रिपाठी जी, रचना जी, घुघुती बासूती जी, अनूप शुक्ल जी, जय प्रकाश मानस जी, संजय तिवारी जी, मीनाक्षी जी, युनुस जी, सागर नाहर जी, अनिता कुमार जी, मसिजीवी जी, दिनेश जी, पीडी जी, महेन्द्र जी, अनिता कुमार जी, अनिल रघुराज जी, रवि रतलामी जी, समीर जी, अरविन्द जी, सारथी वाले गुरुजी, संजय जी, ममता जी, पीयूष जी, अन्नपूर्णा जी, जितेन्द्र जी, नीरज जी, अतुल जी, शिव जी, अजित जी, अभय जी और सभी जिनके नाम मै अभी याद नही कर पा रहा हूँ।

ऐसे बचाया जा सकता है पुराने वृक्षो को

भारतीय पारम्परिक ज्ञान की मदद से कैसे पुराने वृक्षो को बचाया जा सकता है- इस विषय मे लेख आप आज ज्ञान जी के ब्लाग पर पढे।

http://hgdp.blogspot.com/2008/04/blog-post_23.html

Monday, April 21, 2008

क्या ड्रुपिंग अशोक का वृक्ष गृह वाटिका मे लगाने से व्यापार मे घाटा होने लगता है?

हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? - इस लेखमाला के तहत इस विषय पर लेख आप पढ सकते है आरम्भ पर

http://aarambha.blogspot.com/2008/04/blog-post_21.html


Sunday, April 20, 2008

विश्वास या अन्ध-विश्वास : व्याख्या जरुरी

संजीव तिवारी जी के ब्लाग आरम्भ मे इस विषय पर एक साप्ताहिक लेखमाला जारी है। यह हिन्दी मे है पर सुविधा के लिये जिन विषयो पर अब तक लिखा जा चुका है उसकी सूची अंग्रेजी मे नीचे दी जा रही है।

Introduction

I. Why it is believed that presence of plant named Jhagadhin in home garden results in family dispute and tension? Is it faith or blind faith?

II. Traditional way of Jaundice treatment 'Pelea Jhadna' is right or wrong?

III. Why it is believed that Ghost lives in Tamarind trees?

IV. Hanging Neem branches in houses on Hareli festival is faith or blind faith?

V. Is it true that presence of Garud plant or plant parts in house repels snakes away?

VI. Secretion of 'Mad' from old trees of Neem is miracle or not?

VII. Is it possible to make gold from yellow flowered Palash?

VIII. Is it true that white flowered Bhatkatiya is an indicator of treasure inside ground?

IX. Can Tilak of Vat root and Vidarikand hypnotize anyone?

X. Why it is suggested to throw all clothes including handkerchiefs on poisonous snake?

XI. Is it true that by wearing Tabiz having horns of Barahsingha (Swamp Deer) one can get protection from snakes?

XII. Is it true that by wearing Ashok leaf on head one can get success every time?

XIII. Is skull of owl destroy all enemies?

XIV. Why it is said that seeing Maina means possibilities of wealth loss through Dacoits and thieves?

XV. Why it is said that presence of Nirgundi plant in front of house protects from evil spirits?

XVI. Is presence of Kaurav-pandav plant in home garden results in family dispute?

XVII. Is presence of Drooping Ashok in home garden results in loss in business?

Tuesday, April 15, 2008

गुबरैला एक समर्पित सफाई कर्मी है

आज ज्ञान जी के चिठ्ठे पर सूक्ष्मजीवो और गुबरैले के विषय मे विस्तृत जानकारी पाये। इस लिंक पर पधारे।

http://hgdp.blogspot.com/2008/04/blog-post_16.html

Monday, April 14, 2008

क्या कौरव-पांडव का पौधा घर मे लगाने से परिवार जनो मे महाभारत शुरु हो जाती है?

हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? इस लेखमाला मे आज इस विषय पर पढे आरम्भ पर

http://aarambha.blogspot.com/2008/04/blog-post_14.html

Monday, April 7, 2008

क्या घर के सामने निर्गुन्डी का पौधा लगाने से बुरी आत्मा से रक्षा होती है?

हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? इस लेखमाला मे आज इस विषय पर लेख आरम्भ मे जाकर पढे।

http://aarambha.blogspot.com/2008/04/blog-post.html

Wednesday, April 2, 2008

क्लोरीन पानी को साफ करता है या दूषित?

पानी को साफ करने उपयोग की जाने वाली क्लोरीन से होने वाले नुकसानो के विषय मे जानकारी देता लेख आज पढे ज्ञान जी के चिठ्ठे मे।

http://hgdp.blogspot.com/2008/04/blog-post.html

Monday, March 31, 2008

यदि मैना बिल्कुल सामने दिखे तो क्या चोर-डाकुओ से धन की हानि होती है?

हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? इस साप्ताहिक लेखमाला मे आज इस विषय पर लेख इस कडी पर जाकर पढे।

http://aarambha.blogspot.com/2008/03/blog-post_31.html

Friday, March 28, 2008

एक सुन्दरी मेरे जीवन मे (भाग-दो)

नखरो के साथ पली सुन्दरी को मनपसन्द भोजन उपलब्ध कराना टेढी खीर बन गया। काफी मशक्कत के बाद आखिर उसका अपना भोजन खोज लिया गया। आप इस लेख मे सुन्दरी के लिये भोजन की खोज के विषय मे पढ सकते है।

http://hamarepets.blogspot.com/2008/03/blog-post_26.html

Thursday, March 27, 2008

यदि पैरो मे गति हो तो क्या कर लेंगी राहे

आज आप यह लेख इस कडी पर जाकर पढ सकते है। यह लेख निज अनुभव पर आधारित है।

http://traditionalmedicine.agoodplace4all.com/post12.php

Wednesday, March 26, 2008

भूमिगत जल और उसका प्रदूषण

क्या आपके बोरवेल से मिलने वाला पानी शुद्ध है? क्या आपने कभी इसकी जाँच करवायी है? या आप बस यह मान बैठे है कि जमीन मे गहराई से आ रहा पानी शुद्ध ही होगा? आप अभी तक इन प्रश्नो से बचते रहे है तो आज ज्ञान जी के ब्लाग पर यह आलेख पढे और अपनी व अपने परिवार की चिंता करे।

http://hgdp.blogspot.com/2008/03/blog-post_26.html

Monday, March 24, 2008

क्या उल्लू का कपाल आपके दुश्मन का सर्वनाश कर सकता है?

हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? - लेखमाला मे इस सप्ताह इस विषय पर लेख पढे आरम्भ पर

http://aarambha.blogspot.com/2008/03/blog-post_24.html

Thursday, March 20, 2008

शराब इस बार फिर तुम होली मनाना

इस बार फिर बोतल से निकलकर

आम लोगो के तन-मन मे घुस जाना

उनसे अपशब्द कहलवाना

शराब इस बार फिर तुम होली मनाना


परेशान है हर शख्स मेरे देश का

मुश्किल है उसके लिये सच कह पाना

पीकर तुम्हे वह सब कुछ है कहता

मिल जाता उसे बहाना


सबकी ही नही अपनी नजरो मे भी उसे गिराना

शराब इस बार फिर तुम होली मनाना


जानते है सब, कैसे करती हो

तुम बर्बाद

हम ही है जिनके बल पर हो

तुम आबाद


मनुष्य़ॉ से सीखे जग, अपने पैरो मे कुल्हाडी चलाना

इस बार फिर बोतल से निकलकर

आम लोगो के तन-मन मे घुस जाना

उनसे अपशब्द कहलवाना

शराब इस बार फिर तुम होली मनाना

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

© सर्वाधिकार सुरक्षित

होली मे

हरे-भरे पेडो को भूले अब चलो

मन के अहंकार को जला दे होली मे

जो बुरे विचार मन को है भटकाते

उन्हे मिट्टी मे मिला दे होली मे


उनकी भी सुध ले जो नही है

खुशी मनाने मे सक्षम

जिनके घर चूल्हे न जलते

यदि एक दिन भी न हो श्रम


कुछ बचा ले और

इससे भूखो को कुछ खिला दे होली मे

जो बुरे विचार मन को है भटकाते

उन्हे मिट्टी मे मिला दे होली मे


खूब रंग लिया खुद को

बाहर से

इस बार मन को रंग लेना

भीतर से


शायद ये पत्थर होते मन को

फिर जिला दे होली मे

जो बुरे विचार मन को है भटकाते

उन्हे मिट्टी मे मिला दे होली मे


हर बार मनाया उसने, इस बार

खुद भी मना ले

आज के दिन से शराब को अपना

दुश्मन बना ले


होश मे रहकर परिवार मे

खुशी का कमल खिला दे होली मे

जो बुरे विचार मन को है भटकाते

उन्हे मिट्टी मे मिला दे होली मे

हरे-भरे पेडो को भूले अब चलो

मन के अहंकार को जला दे होली मे

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

© सर्वाधिकार सुरक्षित

एक सुन्दरी मेरे जीवन मे

इस सुन्दरी पर आधारित लेखमाला जल्दी ही एक नये कम्यूनिटी ब्लाग पर लिखना आरम्भ कर रहा हूँ। आप इस सुन्दरी से परिचय इस लेख के माध्यम से प्राप्त करे। आप भी इससे मिलकर होश खो बैठेंगे।

http://hamarepets.blogspot.com/2008/03/blog-post_8587.html


यदि आप भी इस विषय पर अपने अनुभव बाँटना चाहते है तो ममता जी द्वारा आरम्भ किये गये इस कम्यूनिटी ब्लाग के सदस्य बने।

अपने ही देश मे क्यो दुत्कारी जा रही पारम्परिक चिकित्सा पद्धति?

'आप भारतीय कानून को मानते है तो इनसे दूर रहे। क्यो? क्योकि हमारा कानून इनको नीम-हकीम कहता है। इन्हे इलाज करने की छूट नही है। भले ही विदेशो से वैज्ञानिक आये और इनके ज्ञान के आधार पर दवा बनाकर पेटेंट कराये पर इन पारम्परिक चिकित्सको को यह करने की छूट नही है।'


पूरा लेख इस कडी पर जाकर पढे।

http://traditionalmedicine.agoodplace4all.com/post11.php

Tuesday, March 18, 2008

कही एलर्जी का कारण आपके घर मे ही तो नही है?

एलर्जी फैलाने वाली अमेरिकी वनस्पति गाजर घास के विषय मे आज ज्ञान जी के चिठ्ठे से जाने और अपने आस-पास उग रही गाजर घास को सस्ते मे नियंत्रित कर अपने परिवार विशेषकर बच्चो को एलर्जी और श्वाँस रोगो से मुक्ति दिलवाये।

http://hgdp.blogspot.com/2008/03/blog-post_19.html

Sunday, March 16, 2008

अशोक वृक्ष का पत्ता सिर पर धारण करने से क्या हर कार्य मे सफलता ही मिलती है?

हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? -लेखमाला के तहत इस विषय पर लेख पढे आरम्भ पर

http://aarambha.blogspot.com/2008/03/blog-post_17.html

Thursday, March 13, 2008

क्या आप जानते है एक पेड की कीमत?

यह गुरुवारीय अतिथि लेख आप इस कडी पर पढ सकते है।

क्या आप जानते है एक पेड की कीमत?

कल देर रात रेडियोनामा मे एक लेख प्रकाशित हुआ है। आप इसे कडी पर पढ सकते है।

मेरे आस-पास बोलते रेडियो-4

Wednesday, March 12, 2008

किसान से बडा वैज्ञानिक कोई नही

इसी सन्दर्भ पर ज्ञान जी के चिठ्ठे पर 'खरपतवार बनाम खरपतवार नाशक' लेख पढे।

http://hgdp.blogspot.com/2008/03/blog-post_12.html

Monday, March 10, 2008

क्या बारहसिंघे के सींगो से बना ताबीज पहनने से साँप नही काटता?

हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? इस साप्ताहिक लेखमाला मे आज इस विषय पर लेख पढे आरम्भ पर

http://aarambha.blogspot.com/2008/03/blog-post_10.html

Thursday, March 6, 2008

क्या छत्तीसगढ मे ही एयरटेल की सर्विस ऐसी है?

मैने 999 रुपये वाला इंटरनेट प्लान लिया है। पिछले बीस दिनो से मोडम की लाइट बन्द हो जाती है और नेट कनेक्शन चला जाता है। शिकायत पर शिकायत दर्ज करा रहा हूँ। पर हर बार आखिरी दिन यह सन्देश दिया जाता है कि हमारे आदमी आपके घर तीन बार गये पर कोई मिला नही। इस बार मै लगातार फोन कर रहा हूँ और कह रहा हूँ कि कोई एक्सीक्यूटिव एयरटेल का नाम खराब कर रहा है। आज सुबह से दसो फोन लगा चुका हूँ पर हर बार होल्ड पर रख दिया जा रहा है। फिर कहते है कि एक घंटे मे हमारे अधिकारी बात करेंगे। घंटे समाप्त होने के बाद फिर एक घंटे का समय देते है। मुझे नही लगता कि एयरटेल की मूल भावना मे ग्राहको को ऐसे परेशान करना है। एक बात बता दूँ कि मै हर बार समय से पहले बिल देता हूँ। इस रवैये से त्रस्त होकर मै यही सोच रहा हूँ कि छत्तीसगढ का ही एयरटेल ऐसा है या पूरे देश मे ही ऐसा व्यवहार होता है?

यदि आपके पास और कोई सुविधा के बारे मे जानकारी हो तो बताये। एयरटेल से तो लिखित मे कुछ नही मिलता इसलिये कंस्यूमर फोरम मे जाये तो जाये कैसे?

Tuesday, March 4, 2008

तनाव और किडनी के रोगों में उपयोगी चटनिया

इस विषय मे आज उपयोगी जानकारी प्राप्त करे ज्ञान जी के चिठ्ठे से

http://hgdp.blogspot.com/2008/03/blog-post_05.html


Sunday, March 2, 2008

क्यो कहा जाता है कि जहरीले साँप को देखते ही रुमाल सहित सभी कपडे उस पर डाल देना चाहिये?

हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? इस लेखमाला के तहत आज इस विषय पर लेख के लिये आरम्भ पर पधारे।

http://aarambha.blogspot.com/2008/03/blog-post.html

Wednesday, February 27, 2008

और अब बम भी होने चाहिये हर्बल

गुरुवारीय अतिथि स्तम्भ मे यह लेख आप इस कडी पर पढ सकते है।

http://www.agoodplace4all.com/traditionalmedicine/post8.php

आम, आम नहीं, बहुत खास है!

आम के कम सुने औषधीय गुणो के विषय मे आज पढे ज्ञान जी के चिठ्ठे पर

http://hgdp.blogspot.com/2008/02/blog-post_27.html

Sunday, February 24, 2008

क्या वट की जड और विदारीकन्द का तिलक किसी को वशीभूत कर सकता है?

हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? इस लेखमाला के अंतर्गत आज का विषय है

क्या वट की जड और विदारीकन्द का तिलक किसी को वशीभूत कर सकता है? आप इस लेख को आरम्भ मे पढ सकते है।

http://aarambha.blogspot.com/2008/02/blog-post_25.html

Wednesday, February 20, 2008

कितना कम जानते है हम देश की पर्यावरणीय समस्याओ के विषय मे

नियमगिरि पर्वत से जुडी पर्यावरणीय समस्या के विषय मे यह गुरुवारीय अतिथि लेख इस कडी पर जाकर पढे।

http://www.agoodplace4all.com/traditionalmedicine/post7.php

मै प्रविष्ट हुआ काव्य क्षेत्र मे

ह्र्दय की गहराइयो मे छिपे

मर्म को

मष्तिष्क मे छिपे

मानव-धर्म को

आत्मा मे छिपे

पुण्य-कर्म को

समेटकर औ

जीवन सत्यो को भरकर नेत्र मे

मै प्रविष्ट हुआ काव्य क्षेत्र मे


आम-नागरिको के

जीवन से

बरसो से दुख सहते

मन से

और फिर भी आशीष के शब्द कहते

जन से

भेटकर औ

जीवन सत्यो को भरकर नेत्र मे

मै प्रविष्ट हुआ काव्य क्षेत्र मे


दुख देश का

दुख परिवेश का

और दुख

समय-विशेष का

देखकर औ

जीवन सत्यो को भरकर नेत्र मे

मै प्रविष्ट हुआ काव्य क्षेत्र मे

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

© सर्वाधिकार सुरक्षित

स्कूल के दिनो मे लिखी कविता।

Tuesday, February 19, 2008

Monday, February 18, 2008

क्यो मन सन्देहो से भर जाता है

दुर्जन जीते है बरसो

भला मानुस जल्दी मर जाता है

प्रभु! तेरी माया मे ये खोट कैसा

क्यो मन सन्देहो से भर जाता है


एक अबोध बालक जिसे उतरना था जीवन-संग्राम मे

वही आज घायल हुआ

जिसने युद्ध लडा ही नही

वह न वीर न कायर हुआ


प्रभु! तेरा यह कदम

पशोपेश की स्थिति मे खडा कर जाता है

दुर्जन जीते है बरसो

भला मानुस जल्दी मर जाता है

प्रभु! तेरी माया मे ये खोट कैसा

क्यो मन सन्देहो से भर जाता है


पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

© सर्वाधिकार सुरक्षित

13 जुलाई, 1988 को लिखी कविता जब मेरा एक सहपाठी अस्पताल मे मौत से जूझ रहा था।

क्या यही है भारत जो ---

महापुरुषो की धरती मे

ये कैसा अन्धकार है

परोपकार के सारे प्रयत्न

यहाँ क्यो बेकार है

यहाँ दिन है या रात है

क्या यही है भारत जो तेजस्वियो से भरा

नभ-पटल सा विराट है


धरती के इस स्वर्ग मे

किसानो का उजडे है संसार

पेट भरने वाला ही रहे दुखी

समाज मे ये कैसा है विकार

कही सत्य ने असत्य को तो नही दे दी मात है

क्या यही है भारत जो तेजस्वियो से भरा

नभ-पटल सा विराट है

शाँति की भूमि मे

शस्त्रो का अम्बार है

स्वच्छ नभ-पटल पर

क्यो बारुद का गुबार है


ये स्थान आशा की किरण बिखेरने वाला नही

शायद मौत का घाट है

क्या यही है भारत जो तेजस्वियो से भरा

नभ-पटल सा विराट है

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

© सर्वाधिकार सुरक्षित

स्कूल के दिनो मे लिखी कविता जब पंजाब मे आतंकवाद चरम पर था

क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है?

हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? इस पर आधारित लेखमाला मे इस सप्ताह का लेख आरम्भ पर नीचे दी गयी कडी पर जाकर पढे।

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Sunday, February 17, 2008

प्रार्थना

हे प्रभु! हमे न सूखा,

न बाढ चाहिये

न सूखा

न तूफानी आषाढ चाहिये

हमे चाहिये सीमित जल।

सुनहरा कल।

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

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स्कूल के दिनो मे लिखी कविता।