ह्र्दय की गहराइयो मे छिपे
मर्म को
मष्तिष्क मे छिपे
मानव-धर्म को
आत्मा मे छिपे
पुण्य-कर्म को
समेटकर औ”
जीवन सत्यो को भरकर नेत्र मे
मै प्रविष्ट हुआ काव्य क्षेत्र मे
आम-नागरिको के
जीवन से
बरसो से दुख सहते
मन से
और फिर भी आशीष के शब्द कहते
जन से
भेटकर औ”
जीवन सत्यो को भरकर नेत्र मे
मै प्रविष्ट हुआ काव्य क्षेत्र मे
दुख देश का
दुख परिवेश का
और दुख
समय-विशेष का
देखकर औ”
जीवन सत्यो को भरकर नेत्र मे
मै प्रविष्ट हुआ काव्य क्षेत्र मे
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
स्कूल के दिनो मे लिखी कविता।
3 comments:
आपका काव्य क्षेत्र में इस प्रविष्टी पर स्वागत है. ढ़ेरों शुभकामनायें.
आपके कविता के ये निमित्त बहुत पवित्र हैं।
अच्छा है कि स्कूल के दिनों की कापी आपने ढ़ूंढ़ ली है। मैं भी सोचता हूं अपनी पुरानी डायरी टटोलूं! :-)
सचमुच पीड़ा ही काव्य स्रजन कराती है, असुन्दर को सुन्दर में बदलने की पीड़ा।
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