Sunday, February 17, 2008

मै बडा हो गया हूँ

जब मेरे भविष्य सपने कल्पना मात्र बन गये

मेरे आदर्श नेता-गण घृणा के पात्र बन गये

तब मुझे लगा कि मै बडा हो गया हूँ।


जब टूटने लगे बचपन के, मन के हवाई किले

जब सामने आने लगी जीवन की मुश्किले

तब मुझे लगा कि मै बडा हो गया हूँ।


जब बडे-बुजुर्गो का आशीर्वाद ले, करके उन्हे प्रणाम

जीवन-रथ पर चल पडा, लडने जीवन संग्राम

तब मुझे लगा कि मै बडा हो गया हूँ।

अपने पाँवो मे खडा हो गया हूँ॥

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

© सर्वाधिकार सुरक्षित

स्कूल के दिनो मे लिखी कविता।

3 comments:

Udan Tashtari said...

चलो, बधाई..वरना तो अक्सर यह अहसास ही नहीं हो पाता कि मैं बड़ा हो गया हूँ और नमस्ते हो जाती है. :)

यानि अच्छी रचना आप स्कूली दिनों से कर रहे हैं..

दिनेशराय द्विवेदी said...

बड़े होने का यह अहसास जीवन में अनेक बार होता ही रहता है।

Sanjeet Tripathi said...

यह बढ़िया किया आपने कि बता दिया स्कूल के दिनों की कविता है, नई तो मै तो हेडिंग और कविता पढ़के यह सोचा कि अवधिया जी को क्या हुआ जो अभी बड़े होने का एहसास हुआ!!
हे हे हे!!