महापुरुषो की धरती मे
ये कैसा अन्धकार है
परोपकार के सारे प्रयत्न
यहाँ क्यो बेकार है
यहाँ दिन है या रात है
क्या यही है भारत जो तेजस्वियो से भरा
नभ-पटल सा विराट है
धरती के इस स्वर्ग मे
किसानो का उजडे है संसार
पेट भरने वाला ही रहे दुखी
समाज मे ये कैसा है विकार
कही सत्य ने असत्य को तो नही दे दी मात है
क्या यही है भारत जो तेजस्वियो से भरा
नभ-पटल सा विराट है
शाँति की भूमि मे
शस्त्रो का अम्बार है
स्वच्छ नभ-पटल पर
क्यो बारुद का गुबार है
ये स्थान आशा की किरण बिखेरने वाला नही
शायद मौत का घाट है
क्या यही है भारत जो तेजस्वियो से भरा
नभ-पटल सा विराट है
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
स्कूल के दिनो मे लिखी कविता जब पंजाब मे आतंकवाद चरम पर था
1 comment:
एक सच्ची तस्वीर खीच हे कवि ने
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