तुम कौन हो???
बिल्कुल मौन हो???
तुम वृक्ष हो तो
मुझे छाँव दो
तुम आश्रयदाता हो तो
मुझे गाँव दो
तुम पथ हो तो
मंजिल दो
तुम आशिक हो तो
दिल दो
तुम द्वार हो तो
मार्ग दो
तुम मन हो तो
उदगार दो
तुम शिक्षक हो तो
दिशा दो
तुम चाँद हो तो
निशा दो
तुम सूरज हो तो
शक्ति दो
तुम आत्मा हो तो
अभिव्यक्ति दो
तुम नेत्र हो तो
दृष्टि दो
तुम ईश्वर हो तो
नयी सृष्टि दो
तुम प्रियजन हो तो
परामर्श दो
तुम भाग्य हो तो
सुख सहर्ष दो
तुम जीवन हो तो
मुझे संघर्ष दो
तुम मौत हो तो
मुझे जीवन-निष्कर्ष दो
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
17 फरवरी, 1988 को लिखी कविता।
4 comments:
पाठक हैं जी, टिप्पणी देते हैं केवल।
बढ़िया!
तुम जीवन हो तो
मुझे संघर्ष दो
तुम मौत हो तो
मुझे जीवन-निष्कर्ष दो
----- सच में मैं भी यही पूछता रहता हूं।
अच्छी भावाव्यक्ति।
सुन्दर !
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