पंकज अवधिया का हिन्दी ब्लॉग
हे प्रभु! हमे न सूखा,
न बाढ चाहिये
न सूखा
न तूफानी आषाढ चाहिये
हमे चाहिये सीमित जल।
औ’ सुनहरा कल।
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
स्कूल के दिनो मे लिखी कविता।
आप प्रार्थना करते रहें - भगवान जो भी देता है - छप्पर फाड़ कर देता है! :-)
वाह पंकज भईया, पिछले पोस्टों में लगातार उपस्थित है 'दर्द हिन्दुस्तानी' । आपका कवि मन मुखरित हुआ है, धन्यवाद ।संजीव
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आप प्रार्थना करते रहें - भगवान जो भी देता है - छप्पर फाड़ कर देता है! :-)
वाह पंकज भईया, पिछले पोस्टों में लगातार उपस्थित है 'दर्द हिन्दुस्तानी' । आपका कवि मन मुखरित हुआ है, धन्यवाद ।
संजीव
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