Saturday, April 26, 2008

इकोपोर्ट मे मेरा अब तक का योगदान

पिछले दिनो कुछ प्रबुद्ध पाठको ने इकोपोर्ट मे मेरे योगदान की जानकारी चाही थी। वैसे तो मै अपने लेखो मे कडियाँ देता रहता हूँ पर एक बार फिर से यहाँ कुछ उपयोगी कडियाँ प्रस्तुत है। पिछले माह एक कम्प्यूटर विशेषज्ञ को फीस देकर प्रिंट निकलवाने के लिये कुल पन्नो की संख्या गिनने का प्रयास किया था पर तीन लाख पन्नो के बाद इसे रोक दिया गया। यदि एक पन्ने के लिये एक रुपया भी पकडे तो भी तीन लाख से अधिक का खर्च बैठेगा। शोध आलेखो और रपट की सूची मे मधुमेह की वैज्ञानिक रपट भी है जिसमे अभी तक 75,000 पन्ने जोडे जा चुके है। यह दो वर्षो मे पूर्ण होगी और तब इसमे दो लाख से अधिक पन्ने होंगे। हाल ही मे ह्र्दय रोगो पर भी एक रपट आरम्भ की है। इसमे अभी तक दस हजार पन्ने लिखे गये है। प्रतिदिन 600-800 पन्ने का कठिन लक्षय रखा है। इकोपोर्ट विकी की तरह है। इसमे पैसा नही मिलता। शोध से लेकर दस्तावेजीकरण तक किसी से भी एक पैसा लिये बगैर ये योगदान दिया गया है। विकी के विपरीत इसमे विशेषज्ञ ही अपना योगदान दे सकते है। इकोपोर्ट ज्ञान के व्यवसायिक उपयोग की अनुमति नही देता। इकोपोर्ट मे रपट को कूट भाषा मे भी लिखा जा सकता है। इकोपोर्ट मे मैने 80,000 से अधिक चित्रो का योगदान किया है जिसमे से अब तक 32,000 से अधिक चित्र शामिल किये जा चुके है।

इसके अलावा 13,000 से अधिक आलेख बाटेनिकल डाँट काम पर भी है

सैकडो शोध पत्र है जो दुनिया भर की शोध पत्रिकाओ मे प्रकाशित हुये है। कुछ की सूची यहाँ है

हिन्दी मे किसानो के लिये तीन हजार लेख अब तक लिखे है जो देश भर की 18 से अधिक कृषि पत्रिकाओ मे प्रकाशित होते रहते है। इन्हे यूनीकोड मे फिर से टाइप कर नेट पर लाने के प्रयास कर रहा हूँ।



नवीनतम जानकारी आप मेरे होम पेज से प्राप्त कर सकते है।

Wednesday, April 23, 2008

हाँ, मुझे लिखना नही आता : अलविदा हिन्दी ब्लाग जगत

सभी वरिष्ठो और कनिष्ठो के आशीष और प्यार भरे सन्देश के बाद मैने ब्लाग पर लिखते रहने का निर्णय लिया है। मै लिखता रहूंगा, जिसकी जैसी समझ है वह समझे। इस अनिश्चय की घडी मे आप सब शुभचिंतको के सहयोग के लिये मै आभारी हूँ। शुभचिंतको ने जो संघर्ष का हौसला दिया है उसे कायम रखूंगा।


आज शाम जंगल से वापस लौटा तो देखा सब जगह औधिया जी ही औधिया जी है। मै उन सभी का आभारी हूँ जिन्होने मेरे लेखो को कम से कम भाषण कहा। मै तो इस लायक भी नही हूँ। मै तो लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। पता नही कब सफलता मिलेगी?

मै जब हिन्दी ब्लाग की दुनिया मे आया तो मुझे बताया गया कि कोई योग्यता की जरुरत नही है। सभी लोग यहाँ लिख सकते है। इसीलिये मैने लिखने की जुर्रत की। पर अब लगता है बडी गल्ती हो गयी। देश के बडे-बडे ब्लागर जिनके लेखन का मै प्रशंसक रहा हूँ सारे देश की समस्या को छोडकर इसमे अपनी ऊर्जा व्यर्थ कर रहे है कि मुझे लिखना आता है कि नही। पहले बताया होता तो मै स्वीकार कर लेता।

अब मेरे रुकने से आपको समस्या हो और आपकी इजाजत न हो तो ब्लाग की दुनिया से भी चला जाता हूँ। आखिर कितना समय लगता है ब्लाग डिलिट करने मे। मेरी ही गल्ती है जो विद्वत जनो के सामने मैने कलम उठाने की जुर्रत की।

मै गूगल का आभारी हूँ जिसने मुझे मौका दिया कि मै आप लोगो से मिल सका कुछ समय के लिये ही। अब मै अपने सभी ब्लाग मे नया लिखना बन्द कर रहा हूँ। और कोई आदेश हो तो बताये वह भी मै करने को तैयार हूँ पर आप जरा देश की समस्याओ पर ध्यान दे मुझ जैसे नाचीज को लेकर क्यो परेशान हो रहे है?

यह भी बताये कि क्या मै आगे लिखने की कोशिश कर सकता हूँ या नही? ब्लाग पर नही मेरे आका कागज पर?

उन सभी को धन्यवाद जिनके सानिध्य मे मैने जीवन का यह महत्वपूर्ण समय बिताया

ज्ञान जी, संजीव तिवारी जी, संजीत त्रिपाठी जी, रचना जी, घुघुती बासूती जी, अनूप शुक्ल जी, जय प्रकाश मानस जी, संजय तिवारी जी, मीनाक्षी जी, युनुस जी, सागर नाहर जी, अनिता कुमार जी, मसिजीवी जी, दिनेश जी, पीडी जी, महेन्द्र जी, अनिता कुमार जी, अनिल रघुराज जी, रवि रतलामी जी, समीर जी, अरविन्द जी, सारथी वाले गुरुजी, संजय जी, ममता जी, पीयूष जी, अन्नपूर्णा जी, जितेन्द्र जी, नीरज जी, अतुल जी, शिव जी, अजित जी, अभय जी और सभी जिनके नाम मै अभी याद नही कर पा रहा हूँ।

ऐसे बचाया जा सकता है पुराने वृक्षो को

भारतीय पारम्परिक ज्ञान की मदद से कैसे पुराने वृक्षो को बचाया जा सकता है- इस विषय मे लेख आप आज ज्ञान जी के ब्लाग पर पढे।

http://hgdp.blogspot.com/2008/04/blog-post_23.html

Monday, April 21, 2008

क्या ड्रुपिंग अशोक का वृक्ष गृह वाटिका मे लगाने से व्यापार मे घाटा होने लगता है?

हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? - इस लेखमाला के तहत इस विषय पर लेख आप पढ सकते है आरम्भ पर

http://aarambha.blogspot.com/2008/04/blog-post_21.html


Sunday, April 20, 2008

विश्वास या अन्ध-विश्वास : व्याख्या जरुरी

संजीव तिवारी जी के ब्लाग आरम्भ मे इस विषय पर एक साप्ताहिक लेखमाला जारी है। यह हिन्दी मे है पर सुविधा के लिये जिन विषयो पर अब तक लिखा जा चुका है उसकी सूची अंग्रेजी मे नीचे दी जा रही है।

Introduction

I. Why it is believed that presence of plant named Jhagadhin in home garden results in family dispute and tension? Is it faith or blind faith?

II. Traditional way of Jaundice treatment 'Pelea Jhadna' is right or wrong?

III. Why it is believed that Ghost lives in Tamarind trees?

IV. Hanging Neem branches in houses on Hareli festival is faith or blind faith?

V. Is it true that presence of Garud plant or plant parts in house repels snakes away?

VI. Secretion of 'Mad' from old trees of Neem is miracle or not?

VII. Is it possible to make gold from yellow flowered Palash?

VIII. Is it true that white flowered Bhatkatiya is an indicator of treasure inside ground?

IX. Can Tilak of Vat root and Vidarikand hypnotize anyone?

X. Why it is suggested to throw all clothes including handkerchiefs on poisonous snake?

XI. Is it true that by wearing Tabiz having horns of Barahsingha (Swamp Deer) one can get protection from snakes?

XII. Is it true that by wearing Ashok leaf on head one can get success every time?

XIII. Is skull of owl destroy all enemies?

XIV. Why it is said that seeing Maina means possibilities of wealth loss through Dacoits and thieves?

XV. Why it is said that presence of Nirgundi plant in front of house protects from evil spirits?

XVI. Is presence of Kaurav-pandav plant in home garden results in family dispute?

XVII. Is presence of Drooping Ashok in home garden results in loss in business?

Tuesday, April 15, 2008

गुबरैला एक समर्पित सफाई कर्मी है

आज ज्ञान जी के चिठ्ठे पर सूक्ष्मजीवो और गुबरैले के विषय मे विस्तृत जानकारी पाये। इस लिंक पर पधारे।

http://hgdp.blogspot.com/2008/04/blog-post_16.html

Monday, April 14, 2008

क्या कौरव-पांडव का पौधा घर मे लगाने से परिवार जनो मे महाभारत शुरु हो जाती है?

हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? इस लेखमाला मे आज इस विषय पर पढे आरम्भ पर

http://aarambha.blogspot.com/2008/04/blog-post_14.html

Monday, April 7, 2008

क्या घर के सामने निर्गुन्डी का पौधा लगाने से बुरी आत्मा से रक्षा होती है?

हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? इस लेखमाला मे आज इस विषय पर लेख आरम्भ मे जाकर पढे।

http://aarambha.blogspot.com/2008/04/blog-post.html

Wednesday, April 2, 2008

क्लोरीन पानी को साफ करता है या दूषित?

पानी को साफ करने उपयोग की जाने वाली क्लोरीन से होने वाले नुकसानो के विषय मे जानकारी देता लेख आज पढे ज्ञान जी के चिठ्ठे मे।

http://hgdp.blogspot.com/2008/04/blog-post.html