मेरा एक ब्लाग है ‘रायपुर मे कौन सी बदबू फैली है अभी’। इसमे रात के अन्धेरे मे फैलाये जाने वाले प्रदूषण की जानकारी मै दर्ज करता हूँ। बहुत दिनो से आम लोग डिस्टलरी की बदबू से परेशान थे। एक रात मे तीन-तीन बार दम घोटू माहौल बन जाता था। कुछ दिनो पहले इस ब्लाग को जस का तस दैनिक छत्तीसगढ ने प्रकाशित किया। इसकी व्यापक प्रतिक्रिया हुयी और कुछ ही राते सही पर अभी बदबू नही आ रही है। दूसरे तरह के प्रदूषणो पर भी अंकुश लगता दिख रहा है।
मेरा एक लेख ‘ पैसे से खरीदकर जहर खाता है आम आदमी’' के आधार पर मुझे किसानो विशेषकर पंजाब के किसानो के सन्देश आ रहे है। यह आश्चर्य का विषय है कि किसान सीधे ब्लाग पढ रहे है। प्रसार कार्यकर्ताओ के माध्यम से भी नेट पर प्रकाशित हिन्दी लेख किसानो तक पहुँचना शुरु हो चुके है। आज एक फोन आया जिसमे इस लेख के आधार पर मुझे पंजाब मे जैविक खेती पर दिन भर व्याख्यान देने के लिये आमंत्रित किया गया है।
मध्यप्रदेश से एक फोन आया कि हमने धडाधड चिठ्ठी मे सर्पगन्धा पर आपका लेख पढा। धडाधड चिठ्ठी? मेरे विचार से वे चिठ्ठाजगत की बात कर रहे थे। औषधीय और सगन्ध फसलो से जुडे किसान ब्लाग पढ रहे है। महानगरो से बडी कम्पनियो से भी सन्देश आ रहे है। आपको विश्वास नही होगा पर हिन्दी ब्लागिंग आरम्भ करने के बाद मुझे देश भर मे बुलाया जा रहा है और कई हवाई यात्रा का मौका मिला है।
ब्लाग से ली गयी मेरी 5 कविताए, 15 से अधिक लेख और दूसरी सामग्रियाँ देश भर मे छप चुकी है अच्छे पारिश्रमिक के साथ। कई पत्रिकाओ और अखबारो से कृषि पर स्थायी स्तम्भ लिखने के आमंत्रण आये है।
मैने ऍडसेंस नही लगाया है। पर फिर भी कहता हूँ कि ब्लागिंग धनार्जन के व्यापक अवसर देती है। भले ही गूगल को मेरी ब्लागिंग से बहुत पैसे मिल रहे हो जैसा कि लोग अक्सर कहते है, पर अब तक की सफलता के आधार पर यदि गूगल स्वीकारे तो मै उसे दान देना चाहता हूँ। मुफ्त मे किसी से लाभ उठाना अपनी फितरत मे नही। मुझे हिन्दी ब्लागिंग का भविष्य़ उज्जवल दिखता है।
लगता है डिस्टलरी वाले भी ब्लाग पढते है। अभी जैसे ही सोने गया तो फिर बदबू आने लगी। वापस आकर मै आपको इस सत्य से परिचित करा रहा हूँ। सुबह के साढे पाँच बज रहे है। लगता है और प्रयास करने होंगे इस जहरीली हवा से रायपुर वासियो को बचाने के लिये।