Monday, November 3, 2008
अब जान ही ले सब कुछ जहरीले रतनजोत के बारे मे
मै यही सोच रहा हूँ कि काश! ये कुतर्क सैकडो प्रभावित बच्चो की मुसीबत कुछ कम कर पाते। आज यदि हम किसी व्यक्ति को जिम्मेदारी से बचायेंगे तो कल इसी आड पर दूसरे भी वही गल्ती करेंगे। आखिर कब तक हमारा देश इन अधपके दिमागो की योजनाओ का बोझ उठाता रहेगा???
Bare facts about poisonous Jatropha curcas.
http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=877&page=-2
Celebrate Deepawali this year with Karanj oil lamps.
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Jatropha fever.
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Keep your water sources pure through traditional knowledge about herbs.
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Let’s come forward to save wildlife from poisonous Jatropha.
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New observations related to Jatropha failure in India.
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Now Jatropha is showing its (bad) colors in India.
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One day in Barnawapara wildlife sanctuary region with new experiences
and observations.
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Planning of FEW, Problems for generations
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Status of Jatropha curcas in year 2022 in India.
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That is why common people oppose Jatropha plantation.
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Thats why your Biodiesel Tree is not performing well.
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Visit to plantations and see Jatropha failure by your own eyes.
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Who will protect our children from Jatropha poisoning?
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Why Karanj is better than Jatropha?
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Who will buy Ratanjot?
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Recommended for wasteland why Jatropha is under planting in fertile
crop fields?
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Why there is blind race for foreign plant Jatropha?
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Jatropha promoters know very less about this foreign plant.
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Why indigenous Karanj is better than exotic Jatropha?
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Karanj vs. Jatropha : Indigenous vs. Exotic
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Harmful effects of Jatropha and its large scale plantation are now
coming on surface.
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Sunday, November 2, 2008
कलाम चाचा, क्या आपने चखा है बीज रतनजोत का
रतनजोत का
उल्टी-चक्कर और फिर मंजर
मौत सा
आपने तो कहा था
देश का भविष्य़ है ये
सैकडो बच्चे है जो आज अस्पताल मे
क्या नही देश का भविष्य वे
क्यो नही आप इनसे
मिलने जाते
आप ने कहा था झूठ
यह उन्हे बताते
हमने तो सुनी आपकी बाते
मानी भी
स्कूलो मे रतनजोत लगाने की
ठानी भी
पर आपने नही बताया
यह है जहर
औ’ देश के बच्चो पर टूटेगा
बन के कहर
क्या पता नही था आपको
इस खोट का
कलाम चाचा, क्या आपने चखा है बीज
रतनजोत का
उल्टी-चक्कर और फिर मंजर
मौत सा
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
[पिछले कुछ महिनो मे पंजाब मे सौ, राजस्थान मे 60, छत्तीसगढ मे 45, उत्तरप्रदेश मे 11 बच्चे जहरीला रतनजोत खाकर अस्पताल पहुँच चुके है। ये तो इंटरनेट से मिले आँकडे है। जमीनी हकीकत तो बहुत भयावह है। वैज्ञानिक शोध बताते है कि रतनजोत का जहर बच्चो को मानसिक स्तर पर प्रभावित करता है। वे जिन्दगी भर इससे नही उबर पाते है। डाँ एपीजे कलाम के भाषणो से प्रभावित होकर देश भर के स्कूलो मे इसे रोप दिया गया। विशेषज्ञ चिल्लाते रहे कि यह जहरीला पौधा है पर हमारे मिसाइल मैन ने किसी की नही सुनी। आज देश भर से सैकडो बच्चो के बीमार होने की खबर आ रही है। पिछले मौसम मे भी ऐसा ही हुआ था जब रतनजोत पर बीज आये थे। बच्चे जानकारी के अभाव मे फल को खा रहे है और बीमार हो रहे है। पहले मेरठ प्रशासन ने और फिर बरनाला और दूसरे स्थानो मे अब स्कूलो से इसे उखाडा जा रहा है। बच्चो के कलाम चाचा कहाँ है? वे क्यो नही अस्पतालो मे जाकर अपनी इस भूल का पश्चाताप कर रहे है? उन्होने जो जहर बोया है वह सालो तक बच्चो को बीमार करता रहेगा।
आप कह सकते है कि वे परमाणु वैज्ञानिक है भला रतनजोत और इसके दुष्प्रभावो के बारे मे क्या जाने। आप सही है। यही कृषि और पर्यावरण विशेषज्ञ भी कहते आ रहे है कि परमाणु वैज्ञानिक को उनकी बात सुननी चाहिये। उन किसानो की बात सुननी चाहिये जिनके खेत रतनजोत ने बर्बाद कर दिये। उन आदिवासियो की बात सुननी चाहिये जिनकी वन सम्पदा रतनजोत लील रहा है। उन माता-पिता की बात सुननी चाहिये जिनके बच्चे रतनजोत खाकर अस्पतालो मे है। पर उनकी कभी नही सुनी गयी। आज रतनजोत का शो फ्लाप हो रहा है और सारी दुनिया हम पर हँस रही है।
इतनी बडी संख्या मे बच्चो को अस्पताल पहुँचता देखकर मन दुखी हुआ इसलिये यह कविता बन गयी।]
Friday, October 10, 2008
आपका अपना जिमीकन्द
आराम से बिताओ जीवन
हो जब कब्ज
या अर्श का आगमन
तब मेरी याद करना तुरंत
करूंगा सब प्रबन्ध
मै हूँ गले मे खुजली करने वाला
आपका अपना जिमीकन्द
मुझे अपनी बाडी मे लगाना
रोज पानी जरुर दे जाना
बिना देखभाल उगने का मेरा दम
सभी ने माना
चाहे सब्जी की तरह पकाओ
या अचार के रुप मे लो आनन्द
मै हूँ गले मे खुजली करने वाला
आपका अपना जिमीकन्द
वैद्यो ने पहले पहचाना
कहा कि मुझमे है स्वास्थ्य का खजाना
आज का विज्ञान भी सीखाता है
मुझे आजमाना
पीढीयो से कर रहा
अच्छे स्वास्थ्य का नारा बुलन्द
मै हूँ गले मे खुजली करने वाला
आपका अपना जिमीकन्द
-पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
[कृषि की शिक्षा के दौरान (और बाद मे भी) किसान गोष्ठियो के लिये मै इस प्रकार की छोटी पर जानकारी देने वाली कविताओ की रचना करता था। जिमीकन्द को सूरन भी कहा जाता है। अर्श बवासिर या पाइल्स को कहा जाता है।]
Friday, June 27, 2008
एक बार किसानो पर लिख कर उन्हे भूल गये

एक बार किसानो पर लिख कर
उन्हे भूल गये
जाने कितने किसान अब तक
कर्ज के फन्दे मे झूल गये
अब बस भी करो चन्द पंक्तियाँ लिखकर
कर्तव्यो की इतिश्री करना
अन्नदाता का मरना है
एक देश का मरना
सो रहा सत्तापक्ष और इस देश का
विपक्ष भी
हर समस्या मे दिखती उन्हे
राजनीति ही
देश के व्यापारी अब
कर रहे है खेती
आम लोग का पेट नही
बस अपनी गाडी दिखायी देती
मेरे देश की धरती
सोना उगले
और मुठ्ठी भर लोग
इसे निगले
अरबो के बंगले मे रहने की खबरे
छपवाने वालो
या हेलीकाप्टर पर जनता का पैसा
बहाने वालो
या बात-बात पर एसएमएस
करने वालो
कुछ तो दिल अपना
खोलो
राजा चौपट भये
जाने कितने किसान अब तक
कर्ज के फन्दे मे झूल गये
एक बार किसानो पर लिख कर
उन्हे भूल गये
जाने कितने किसान अब तक
कर्ज के फन्दे मे झूल गये
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
आप आये इसके लिये आभार। कृपया टिप्पणी न करे। यदि किसानो के प्रति कुछ करना चाहते है तो राजनेताओ और योजनाकारो पर दबाव बनाये, दलगत राजनीति से उठकर क्योकि अन्नदाता किसी दल विशेष के लिये अन्न नही उपजाते और रोटी की कोई पार्टी नही होती। अब समय आ गया है कि पीढीयो के कर्ज को उतारकर किसानो को कर्ज से मुक्ति दिलाने का।
क्या आप किसी ऐसी संस्था को जानते है जो दानदाताओ और किसानो के बीच सेतु बन सके। बहुत से लोग है जो किसानो को सीधे मदद करना चाहते है पर कैसे उन तक पहुँचे यह नही समझ पाते है? क्या सरकार किसानो को दी जाने वाली सीधी मदद को टैक्स फ्री करेगी या कुछ रियायत देगी? क्या किसानो की सूची, उन पर कर्ज और उनके पते का ब्यौरा कही से मिल सकेगा?
Wednesday, June 11, 2008
Wednesday, March 12, 2008
किसान से बडा वैज्ञानिक कोई नही
http://hgdp.blogspot.com/2008/03/blog-post_12.html
Thursday, January 24, 2008
पैसे से खरीदकर रोज जहर खाता है आम भारतीय
पैसे से खरीदकर रोज जहर खाता है आम भारतीय
"क्या कभी आपने इस बात पर गौर किया है कि चिकित्सा सुविधा और आम लोगो की आय इतनी अधिक बढ जाने के बाद भी रोग कम नही हुये है। हमारी आय का एक बहुत बडा हिस्सा रोगो से मुक्ति पाने मे खर्च हो रहा है। असमय बुढापा आ रहा है, छोटे बच्चे अस्थमा का इनहेलर उपयोग कर रहे है। कैसर जैसे रोग तो हर दसवे घर को शिकार बनाने लगे है। यदि विशेषज्ञो की माने तो हमारे जीवन मे कीटनाशको की इतनी बडी मात्रा मे घुसपैठ इसके लिये काफी हद तक जिम्मेदार है। आप रोगो से तो लड रहे है पर रोग उत्पत्ति के कारणो की अनदेखी कर रहे है। आखिर कब तक आप इस बडे खतरे की अनदेखी करते रहेंगे?"- पूरा लेख इस कडी पर पढे।
http://www.agoodplace4all.com/traditionalmedicine/avoidpesticides.php