Sunday, November 2, 2008

कलाम चाचा, क्या आपने चखा है बीज रतनजोत का

कलाम चाचा, क्या आपने चखा है बीज

रतनजोत का

उल्टी-चक्कर और फिर मंजर

मौत सा


आपने तो कहा था

देश का भविष्य़ है ये

सैकडो बच्चे है जो आज अस्पताल मे

क्या नही देश का भविष्य वे


क्यो नही आप इनसे

मिलने जाते

आप ने कहा था झूठ

यह उन्हे बताते


हमने तो सुनी आपकी बाते

मानी भी

स्कूलो मे रतनजोत लगाने की

ठानी भी


पर आपने नही बताया

यह है जहर

औ’ देश के बच्चो पर टूटेगा

बन के कहर

क्या पता नही था आपको
इस खोट का

कलाम चाचा, क्या आपने चखा है बीज

रतनजोत का

उल्टी-चक्कर और फिर मंजर

मौत सा

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

[पिछले कुछ महिनो मे पंजाब मे सौ, राजस्थान मे 60, छत्तीसगढ मे 45, उत्तरप्रदेश मे 11 बच्चे जहरीला रतनजोत खाकर अस्पताल पहुँच चुके है। ये तो इंटरनेट से मिले आँकडे है। जमीनी हकीकत तो बहुत भयावह है। वैज्ञानिक शोध बताते है कि रतनजोत का जहर बच्चो को मानसिक स्तर पर प्रभावित करता है। वे जिन्दगी भर इससे नही उबर पाते है। डाँ एपीजे कलाम के भाषणो से प्रभावित होकर देश भर के स्कूलो मे इसे रोप दिया गया। विशेषज्ञ चिल्लाते रहे कि यह जहरीला पौधा है पर हमारे मिसाइल मैन ने किसी की नही सुनी। आज देश भर से सैकडो बच्चो के बीमार होने की खबर आ रही है। पिछले मौसम मे भी ऐसा ही हुआ था जब रतनजोत पर बीज आये थे। बच्चे जानकारी के अभाव मे फल को खा रहे है और बीमार हो रहे है। पहले मेरठ प्रशासन ने और फिर बरनाला और दूसरे स्थानो मे अब स्कूलो से इसे उखाडा जा रहा है। बच्चो के कलाम चाचा कहाँ है? वे क्यो नही अस्पतालो मे जाकर अपनी इस भूल का पश्चाताप कर रहे है? उन्होने जो जहर बोया है वह सालो तक बच्चो को बीमार करता रहेगा।

आप कह सकते है कि वे परमाणु वैज्ञानिक है भला रतनजोत और इसके दुष्प्रभावो के बारे मे क्या जाने। आप सही है। यही कृषि और पर्यावरण विशेषज्ञ भी कहते आ रहे है कि परमाणु वैज्ञानिक को उनकी बात सुननी चाहिये। उन किसानो की बात सुननी चाहिये जिनके खेत रतनजोत ने बर्बाद कर दिये। उन आदिवासियो की बात सुननी चाहिये जिनकी वन सम्पदा रतनजोत लील रहा है। उन माता-पिता की बात सुननी चाहिये जिनके बच्चे रतनजोत खाकर अस्पतालो मे है। पर उनकी कभी नही सुनी गयी। आज रतनजोत का शो फ्लाप हो रहा है और सारी दुनिया हम पर हँस रही है।

इतनी बडी संख्या मे बच्चो को अस्पताल पहुँचता देखकर मन दुखी हुआ इसलिये यह कविता बन गयी।]

4 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

सही है, जट्रोफा/रतन जोत का हल्ला अब कम सुनने में आता है। पेट्रोलियम चढ़े तो शायद फिर बोलने वाले आयें! :)

Udan Tashtari said...

अच्छा लगा पढ़्ना!!

नीरज गोस्वामी said...

बहुत अच्छी कविता लिखी है आप ने पंकज जी और आप की चिंता स्वाभाविक भी है...हैरानी है की एक वज्ञानिक को इस जहरीले का पौधे का ज्ञान नहीं है...अगर नहीं भी था तो किसी कृषि विशेषग्य से पूछ तो सकते ही थे...दुखद बात.
नीरज

डॉ. मनोज मिश्र said...

सही बात है .अच्छा लिखा है .