Friday, October 10, 2008

आपका अपना जिमीकन्द

खूब खाओ चटपटे व्यंजन
आराम से बिताओ जीवन
हो जब कब्ज
या अर्श का आगमन

तब मेरी याद करना तुरंत
करूंगा सब प्रबन्ध
मै हूँ गले मे खुजली करने वाला
आपका अपना जिमीकन्द

मुझे अपनी बाडी मे लगाना
रोज पानी जरुर दे जाना
बिना देखभाल उगने का मेरा दम
सभी ने माना

चाहे सब्जी की तरह पकाओ
या अचार के रुप मे लो आनन्द
मै हूँ गले मे खुजली करने वाला
आपका अपना जिमीकन्द

वैद्यो ने पहले पहचाना
कहा कि मुझमे है स्वास्थ्य का खजाना
आज का विज्ञान भी सीखाता है
मुझे आजमाना

पीढीयो से कर रहा
अच्छे स्वास्थ्य का नारा बुलन्द
मै हूँ गले मे खुजली करने वाला
आपका अपना जिमीकन्द

-पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

© सर्वाधिकार सुरक्षित


[कृषि की शिक्षा के दौरान (और बाद मे भी) किसान गोष्ठियो के लिये मै इस प्रकार की छोटी पर जानकारी देने वाली कविताओ की रचना करता था। जिमीकन्द को सूरन भी कहा जाता है। अर्श बवासिर या पाइल्स को कहा जाता है।]

4 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

पंकज जीबात तो बिल्कुल सही है लेकिन साथ मे जिमिकंद की तस्वीर भी होती तो अच्छा रहता।वैसे कविता के रूप मे जानकारी देने के लिए आभार।

Gyan Dutt Pandey said...

सूरन तो प्रिय है जी!

36solutions said...

तिहार म जिमीकंद के साग नई बनिस त तिहार ह तिहार कस नई लागय भईया फेर आपके ये कबिता ले हमला पता चलिस कि येला हमर पुरखा मन काबर तिहार बर जरूरी मानत रहिन ।

Ashok Pandey said...

वाह वाह..अत्‍यंत सुस्‍वादु..आभार।