खूब खाओ चटपटे व्यंजन
आराम से बिताओ जीवन
हो जब कब्ज
या अर्श का आगमन
तब मेरी याद करना तुरंत
करूंगा सब प्रबन्ध
मै हूँ गले मे खुजली करने वाला
आपका अपना जिमीकन्द
मुझे अपनी बाडी मे लगाना
रोज पानी जरुर दे जाना
बिना देखभाल उगने का मेरा दम
सभी ने माना
चाहे सब्जी की तरह पकाओ
या अचार के रुप मे लो आनन्द
मै हूँ गले मे खुजली करने वाला
आपका अपना जिमीकन्द
वैद्यो ने पहले पहचाना
कहा कि मुझमे है स्वास्थ्य का खजाना
आज का विज्ञान भी सीखाता है
मुझे आजमाना
पीढीयो से कर रहा
अच्छे स्वास्थ्य का नारा बुलन्द
मै हूँ गले मे खुजली करने वाला
आपका अपना जिमीकन्द
-पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
[कृषि की शिक्षा के दौरान (और बाद मे भी) किसान गोष्ठियो के लिये मै इस प्रकार की छोटी पर जानकारी देने वाली कविताओ की रचना करता था। जिमीकन्द को सूरन भी कहा जाता है। अर्श बवासिर या पाइल्स को कहा जाता है।]
4 comments:
पंकज जीबात तो बिल्कुल सही है लेकिन साथ मे जिमिकंद की तस्वीर भी होती तो अच्छा रहता।वैसे कविता के रूप मे जानकारी देने के लिए आभार।
सूरन तो प्रिय है जी!
तिहार म जिमीकंद के साग नई बनिस त तिहार ह तिहार कस नई लागय भईया फेर आपके ये कबिता ले हमला पता चलिस कि येला हमर पुरखा मन काबर तिहार बर जरूरी मानत रहिन ।
वाह वाह..अत्यंत सुस्वादु..आभार।
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