Friday, October 10, 2008

प्यारे भुईनीम

अब डर ओ नन्हे पौधे
तुझे ले जाने अब आते होंगे वो
तेरे उगने की बेसब्र प्रतीक्षा
पिछले बरस से कर रहे थे जो

अपनी कडवाहट से रोगियो मे
नवजीवन भरता असीम
हर जुल्म सहता तू बिना कडवाहट
प्यारे भुईनीम

काश! तुझे भी मिलता अवसर जीने का
फूलने और फलने का
जंगल की आजादी मे
मचलने का

काश! तू उगता वहाँ जहाँ न पहुँचे
व्यापारी और हकीम
हर जुल्म सहता तू बिना कडवाहट
प्यारे भुईनीम


-पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

© सर्वाधिकार सुरक्षित


[भुईनीम एक देशी वनस्पति है जो हर साल छत्तीसगढ के जंगलो मे बरसात मे उगती है। इसकी कडवाहट नीम से भी अधिक होती है। मलेरिया से लेकर रक्त सम्बन्धी रोगो मे उपयोग की जाती है। जडी-बूटी से चिकित्सा करने वालो से लेकर व्यापारी तक इसके उगने की बाट जोहते रहते है और हर बार फलने-फूलने से पहले ही इसे एकत्र कर लिया जाता है। इस कविता मे भुईनीम के दर्द को सामने रखा गया है।]

1 comment:

Gyan Dutt Pandey said...

जो ज्यादा उपयोगी, उसकी जान को ज्यादा पड़ी रहती है यह पैसे वाली व्यवस्था। जाने कितनी वनस्पतियां, कितने जीव इस पिपासा के शिकार हैं।
दुखद।