दुर्जन जीते है बरसो
भला मानुस जल्दी मर जाता है
प्रभु! तेरी माया मे ये खोट कैसा
क्यो मन सन्देहो से भर जाता है
एक अबोध बालक जिसे उतरना था जीवन-संग्राम मे
वही आज घायल हुआ
जिसने युद्ध लडा ही नही
वह न वीर न कायर हुआ
प्रभु! तेरा यह कदम
पशोपेश की स्थिति मे खडा कर जाता है
दुर्जन जीते है बरसो
भला मानुस जल्दी मर जाता है
प्रभु! तेरी माया मे ये खोट कैसा
क्यो मन सन्देहो से भर जाता है
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
13 जुलाई, 1988 को लिखी कविता जब मेरा एक सहपाठी अस्पताल मे मौत से जूझ रहा था।
4 comments:
प्रभु से आप का सवाल अच्छा है? पर यह प्रभु के होने पर भी प्रश्न चिन्ह लगाता है।
कविता अच्छी लगी । शायद मन बना ही संदेहों से भरने को है ।
घुघूती बासूती
यही संदेहों का बोलबाला है कि प्रभु की माया में खोट नजर आ जाती है. :)
पंकज जी , नमस्कार ! बहुत दिनों बाद पढ़ने को मिला... कविता पढ़ते ही बस एक ही ख्याल मन में आया... कि प्रभु दुर्जन को पृथ्वी पर भेजता तो फिर बुलाने का नाम नहीं लेता..लेकिन भले लोगों को कुछ देर भेज कर विशेष काम करवा कर फट से वापिस बुला लेता है.
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