मुझे उम्मीद थी कि एक भारतीय की सफलता को दूसरा भारतीय शायद ही पचा पाये। अब देखिये मेरी छै घंटे मे 1000 पन्नो वाली बात पर सब काम छोडकर विघ्न संतोषी इस पर पोस्ट लिखने लगे। नाम से नही बेनाम होकर। मुझे ' तुझे मिर्ची लगी तो मै क्या करुँ' वाला गाना याद आ रहा है।" चलिये मै फिल्मी स्टाइल मे कहता हूँ यदि माँ का दूध पिया है तो यह चैलेंज स्वीकारे। मेरा तो ये रोज का काम है। आज ही आपके सामने यह करके दिखाता हूँ। यदि मै हारा तो आप सजा निर्धारित करे और यदि जीता तो आपको आजीवन सभी हिन्दी ब्लाग्स को पूरा पढकर टिप्पणी करनी होगी बिना पैसा लिये और बिना किसी ब्रेक के। मंजूर है???
वैसे जिन लोगो ने टिपपणी देकर हौसला आफजायी की है, उनका आभार। उम्मीद है अभी और विघ्न संतोषी सामने आयेंगे और अपनी खुन्नस निकालेंगे। मै तो रवि जी की तरह इनसे गाना गाकर ही निपटूंगा। वैसे उस खिसयानी पोस्ट के बाद अचानक ही साइट ट्रैफिक बढ गया है।
आज नीचे दी गयी कडी पर आप रपट मे जोडे जा रहे पन्नो को देख पायेंगे। रपट तो नही देख पायेंगे क्योकि इसमे पासवर्ड है पर तालिकाओ को देख पायेंगे। जिन्हे शक हो रहा है वे केवल तालिकाओ के ही प्रिंट निकालते चले। शायद ये ही एक हजार से अधिक पन्नो की हो जाये आज रात तक। अभी यह Day 165 पर है। ये रहा लिंक
http://ecoport.org/ep?SearchType=interactiveTableList&Title=Traditional+Shurbut+%28Sherbet%29+based+365+days+schedule+%28VII%29&KeywordWild=CO&TitleWild=CO
रपट की प्रगति मै इस कडी पर रोज पोस्ट कर रहा हूँ।
http://paramparik.blogspot.com/2008/05/blog-post_17.html
अब आप आ ही गये है तो मधुमेह की रपट की कडियो को भी देख ले| इनके भी प्रिंट निकालकर मन को ठंडा कर ले। ये है लिंक
http://www.pankajoudhia.com/botanical-17.htm
शुभकामनाए
अपडेट
हाथ कंगन को आरसी क्या और पढे-लिखे को फारसी क्या।
लीजिये 500 से अधिक नये पन्ने जुड गये रपट मे। Day 165 से अब Day 265 तक की तालिकाए हो गयी। प्रत्येक तालिका का विस्तार से वर्णन अलग। आज ज्यादा जोश था इसलिये कम समय लगा। विघ्न संतोषी जी के ब्लाग से होते हुये दिल्ली के अंग्रेजी दैनिक के पत्रकार मुझ तक पहुँच गये और एक इंटरव्यू ले लिया इस दस्तावेजीकरण पर। यह बोनस हुआ।
इसी बहाने एक बात कहना चाहूंगा। नारी जैसे दिखने वाले फल का समाचार कल धूम मचाता रहा क्योकि यह विदेश से आया था, किसी ने सवाल नही खडे किये पर आज एक देशवासी की पोस्ट आयी तो जडे खोदने के लिये कितनी मेहनत झोक़ दी विघ्नसंतोषी जी ने। यदि इतना समय उन्होने अपने लिये और अपने परिवार के लिये लगाया होता तो कुछ और बात होती। ऊर्जा के सकारात्मक प्रयोग की जरुरत है।
7 comments:
टेंशन नई लेने का मामू, सिरफ लिखते जाने का, बस लिखते जाने का ;)
सही बात है संजीत जी की सुंदर टिप्पणी ने सब कुछ कह दिया। लेकिन मेरा मलाल वही कि आपने इतने सुंदर गीत का यू-ट्य़ूब का लिंक क्यों नहीं लगाया इस पोस्ट। अगर ऐसा होता तो मज़ा आ जाता। निकाल फैंको दोस्त इस कमैंट माडरेशन को.....कोई कितना और क्या कह लेगा, हर चीज़ की सीमा है।
निन्दक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय!
आप अपना कार्य करते रहें.
आपने भी मज़े ले लिए आखिर ....अच्छा लगा ये रूप । डटे रहिए। मिर्ची को लगने दीजिए ...कहीं भी :)
पंकज जी,
आप विचलित हुए बिना अपना काम करते रहें, लोकतंत्र में यही ख़ास बात है, जिसके मन में जो आए कह सकता है, सब आक्युपेशनल हेजर्ड्स हैं |
हाँ अपनी सेहत का अवश्य ख्याल रखें,
शुभकामनाओं सहित,
नीरज रोहिल्ला
आप इंसान हैं या लिखने वाली मशीन। आपसे थोडी थोडी ईर्ष्या हो रही है मुझे।
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