Tuesday, May 20, 2008

नंगे होते पहाड, प्रकृति का उजडता संसार

यह हिन्दी लेख इकोपोर्ट मे पीडीएफ के रुप मे उपलब्ध है। यह देश भर मे प्रकाशित हो चुका है। आप इस कडी पर जाकर इस लेख को पढ सकते है।

http://ecoport.org/ep?SearchType=reference&ReferenceID=557435

3 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

मैने पंचमहाल और झाबुआ मेँ नंगे होते पहाड़ देखे थे। और मैँ सोचता था कि आदिवासी ही लकड़ी के लिये वन उजाड़ रहे हैँ।

Udan Tashtari said...

कल का आलेख पसंद आया था. अब इसे देखते हैं.

दिनेशराय द्विवेदी said...

वाकई प्राकृतिक संपदा की इस बरबादी को देख कर आँसू आ जाना स्वाभाविक है। सब छोटी बारहमासी नदियाँ गायब हो चुकी हैं। पहाड़ पर पानी रुकता जो नहीं, तो नदि्यों मे कहाँ से आएगा ? लगता है अब तो जंगल उगाओं अभियान की जरूरत है, बचाओ से काम नहीं चलने वाला।