पंकज अवधिया का हिन्दी ब्लॉग
मैने पंचमहाल और झाबुआ मेँ नंगे होते पहाड़ देखे थे। और मैँ सोचता था कि आदिवासी ही लकड़ी के लिये वन उजाड़ रहे हैँ।
कल का आलेख पसंद आया था. अब इसे देखते हैं.
वाकई प्राकृतिक संपदा की इस बरबादी को देख कर आँसू आ जाना स्वाभाविक है। सब छोटी बारहमासी नदियाँ गायब हो चुकी हैं। पहाड़ पर पानी रुकता जो नहीं, तो नदि्यों मे कहाँ से आएगा ? लगता है अब तो जंगल उगाओं अभियान की जरूरत है, बचाओ से काम नहीं चलने वाला।
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मैने पंचमहाल और झाबुआ मेँ नंगे होते पहाड़ देखे थे। और मैँ सोचता था कि आदिवासी ही लकड़ी के लिये वन उजाड़ रहे हैँ।
कल का आलेख पसंद आया था. अब इसे देखते हैं.
वाकई प्राकृतिक संपदा की इस बरबादी को देख कर आँसू आ जाना स्वाभाविक है। सब छोटी बारहमासी नदियाँ गायब हो चुकी हैं। पहाड़ पर पानी रुकता जो नहीं, तो नदि्यों मे कहाँ से आएगा ? लगता है अब तो जंगल उगाओं अभियान की जरूरत है, बचाओ से काम नहीं चलने वाला।
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