हरे-भरे पेडो को भूले अब चलो
मन के अहंकार को जला दे होली मे
जो बुरे विचार मन को है भटकाते
उन्हे मिट्टी मे मिला दे होली मे
उनकी भी सुध ले जो नही है
खुशी मनाने मे सक्षम
जिनके घर चूल्हे न जलते
यदि एक दिन भी न हो श्रम
‘कुछ’ बचा ले और
इससे भूखो को ‘कुछ’ खिला दे होली मे
जो बुरे विचार मन को है भटकाते
उन्हे मिट्टी मे मिला दे होली मे
खूब रंग लिया खुद को
बाहर से
इस बार मन को रंग लेना
भीतर से
शायद ये पत्थर होते मन को
फिर जिला दे होली मे
जो बुरे विचार मन को है भटकाते
उन्हे मिट्टी मे मिला दे होली मे
हर बार मनाया उसने, इस बार
खुद भी मना ले
आज के दिन से शराब को अपना
दुश्मन बना ले
होश मे रहकर परिवार मे
खुशी का कमल खिला दे होली मे
जो बुरे विचार मन को है भटकाते
उन्हे मिट्टी मे मिला दे होली मे
हरे-भरे पेडो को भूले अब चलो
मन के अहंकार को जला दे होली मे
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
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