Monday, November 12, 2007

क्यो बात-बात पर पर्यावरण सुरक्षा की बात करते हो

क्यो बात-बात पर पर्यावरण सुरक्षा की बात करते हो

अनंत पेडो को काटकर

कागज बनाते

फिर उसी पर लेख छाप

पेडो का महत्व बताते


क्यो ऐसा दोहरा चरित्र धरते हो

क्यो बात-बात पर

पर्यावरण सुरक्षा की बात करते हो


सब कुछ भूलकर दीपावली पर

करोडो का शोर फैलाते

घर जंगल ही नही फेफडे भी

धुए से भर जाते


बूढो से लेकर रोगियो का चैन हरते हो

क्यो बात-बात पर

पर्यावरण सुरक्षा की बात करते हो


अपनी करतूतो को छिपा

इसे दुनिया के मौसम का बदलाव बताते

बडे सम्मेलन कर

बचाव के उपाय सुझाते


थोडी तरक्की मे बल पर क्यो

विधाता होने का दम्भ भरते हो

क्यो बात-बात पर

पर्यावरण सुरक्षा की बात करते हो


जंगलो को काटकर घर बनाते

फिर कारखानो से प्रदूषण उगलवाते

रसायन डालकर फसल उगाते

फिर अपने वाहन के लिये जहर फैलाते


विविधता की बात करते पर धरती पर

अकेले ही पसरते हो

क्यो बात-बात पर

पर्यावरण सुरक्षा की बात करते हो

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

© सर्वाधिकार सुरक्षित

6 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

पर्यावरण पर बहुत बढिया रचना लिखी है।बधाई।

बूढो से लेकर रोगियो का चैन हरते हो क्यो बात-बात पर पर्यावरण सुरक्षा की बात करते हो

Asha Joglekar said...

बहुत ही अच्छी कविता वो भी पर्यावरण जैसे विषय पर । बधाई। हम सभी दांभिक हैं करते कुछ हैं और कहते कुछ ।

पर्यानाद said...

सहमत तो नहीं हूं लेकिन पढ़ कर अच्‍छा लगा.

Gyan Dutt Pandey said...

मानव के दोमुन्हे पर पर इससे बेलाग नहीं लिखा जा सकता था।
आदमी पर्यावरण पर ही नहीं, करुणा/इमानदारी/सहजता --- अनेक गुणों के प्रदर्शन में दोमुहाँ है। हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और!

mamta said...

जबरदस्त कविता लिखी है।

जंगलो को काटकर घर बनाते

फिर कारखानो से प्रदूषण उगलवाते

रसायन डालकर फसल उगाते
फिर अपने वाहन के लिये जहर फैलाते

कड़वा सच लिखा है।

Sanjeet Tripathi said...

साधु साधु!!
पंकज जी इस बेलाग कविता के लिए बधाई!!