जिन वृक्षो से जुडे है
भूत या भगवान
वो अब भी है सघन आबादी मे
विराजमान
क्यो ना भूत और भगवान से
हर वृक्ष को जोड दे
हो सकता है इससे ही लोग
इन्हे काटना छोड दे
भय ही शायद रोक
पायेगा इंसान को
और बचा पायेगा वृक्षो की
जान को
धरती को बचाने अन्ध-विश्वास की चादर
ओढ ले
क्यो ना भूत और भगवान से
हर वृक्ष को जोड दे
हो सकता है इससे ही लोग
इन्हे काटना छोड दे
चलो अब हर वृक्ष पर
एक कथा लिखे
जिससे वह भूत से लेकर
भविष्य तक जुडा दिखे
जग हित मे पर्यावरण संरक्षण को
एक नया मोड दे
क्यो ना भूत और भगवान से
हर वृक्ष को जोड दे
हो सकता है इससे ही लोग
इन्हे काटना छोड दे
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित
3 comments:
वस्तुतः पर्यावरण की रक्षा के लिए यह कविता एक पथ-प्रदर्शक है।
किन्तु ग्रहों, नक्षत्रों, देवी-देवताओं, भूत-प्रेतों के प्रतीकात्मक वक्षों का वर्णन वेद, गीता... लेकर अनेक शास्त्रों में होता आया है, फिर भी मानव ने इन्हें काटता रहा है, रोटी-कपड़ा और मकान... के लिए...
परन्तु काश करेक मानव रोज एक नया पेड़ लगाता और उन्हें बड़े होने तक पालता तो आज ऐसा पर्यावरण हानि/ग्लोबल वार्मिंग का संकट न उपजता...
एक सार्थक कविता. बहुत खूब.
बहुत अच्छा भईया ।
बधाई !
“आरंभ”
Post a Comment