Saturday, July 14, 2007

दादी, माँ और उनके नुस्खे

दादी, माँ और उनके नुस्खो

सभी से दूर हो रहे है

इसीलिये तो हम अपना आराम-चैन

और स्वास्थ्य सभी खो रहे है


चोट पर हल्दी लगाने से हम

कतराते है

फिर हल्दी के विदेशी पॆटेंट पर

अपनी त्यौरियाँ चढाते है


अंग्रेजी दवाओ को अपनाकर हम

विनाश के बीज बो रहे है

दादी, माँ और उनके नुस्खो

सभी से दूर हो रहे है

इसीलिये तो हम अपना आराम-चैन

और स्वास्थ्य सभी खो रहे है


गूलर जैसे पेडो के होते हम

फिल्टर का पानी पीते है

नीम को आँगन से हटाकर

एंटी-बाँयोटिक पर जीते है


तभी तो शरीर को जिन्दा लाश बनाकर

ढो रहे है

दादी, माँ और उनके नुस्खो

सभी से दूर हो रहे है

इसीलिये तो हम अपना आराम-चैन

और स्वास्थ्य सभी खो रहे है


चलो दादी, माँ और उनके नुस्खो को

वापस ले आये

अच्छा खाये और

चैन का जीवन पाये


उनकी छोडे जो विलासिता की

नींद सो रहे है

दादी, माँ और उनके नुस्खो

सभी से दूर हो रहे है

इसीलिये तो हम अपना आराम-चैन

और स्वास्थ्य सभी खो रहे है

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित

2 comments:

Udan Tashtari said...

अच्छा सार्थक संदेश देती रचना. बधाई एवं साधुवाद.

अनुनाद सिंह said...

बहुत बढ़िया!!