गाजर घास और भ्रष्टाचार दोनो ही का
हो रहा है निर्बाध फैलाव
जैसे शरीर मे फैलता है
कोई पुराना घाव
माना कि गाजर घास
पराई है
विदेश से भारत
आई है
पर भ्रष्टाचार तो
हमारी ही देन है
और लम्बे समय से छीन
रहा चैन है
दोनो ही से ना जाने क्यो
योजनाकारो को है लगाव
गाजर घास और भ्रष्टाचार दोनो ही का
हो रहा है निर्बाध फैलाव
जैसे शरीर मे फैलता है
कोई पुराना घाव
दोनो ही से लडाई मे
हमने अब तक मुँह की खाई है
बहुत मेहनत के अलावा
पूँजी भी गँवाई है
अब दोनो के समूल नाश की है जरुरत
चाहे लगाना पडे कैसा भी दाँव
गाजर घास और भ्रष्टाचार दोनो ही का
हो रहा है निर्बाध फैलाव
जैसे शरीर मे फैलता है
कोई पुराना घाव
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
गाजर घास (पार्थेनियम) आयातित गेहूँ के साथ आया विदेशी खरपतवार है और मनुष्यो, फसलो और पशुओ सभी के लिये अभिशाप है। इसके विषय मे विस्तार के लिये देखे
http://www.iprng.org
4 comments:
बहुत अलग तरह से बात कही...पसंद आयी... :)
गाजरघास को बार-बार जड़ से उखाड़ने से उसका पनपना बंद हो जाता है। भ्रष्टाचार का भी कुछ ऐसा ही है। बार-बार जड़ से उखाड़ना पड़ेगा।
Thanks, Pankaj Bhaiya. yahan Bhilai me dono bahut hai
बिल्कुल अलग विषय को पकड़ा है, बहुत अच्छा लग रहा है आपको पढ़ना…।
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