नयी कारे, पुरानी कारे
हर ओर कारे ही कारे
प्रदूषण से लड लड
हम हारे
अब तो मौसम भी बदल रहा है
या कहे बदला ले रहा है
ठन्ड मे सुकून देने वाला सूरज
अब सब कुछ जला दे रहा है
अब तो हम अपनी भूल स्वीकारे
नयी कारे, पुरानी कारे
हर ओर कारे ही कारे
प्रदूषण से लड लड
हम हारे
मौसम पर विश्व सम्मेलन कर
व्यर्थ चिंता जताना अब छोडे
खुद छोटे प्रयास कर
आस-पास के लोगो को जोडे
बातो मे ही ना गँवा दे पल सारे
नयी कारे, पुरानी कारे
हर ओर कारे ही कारे
प्रदूषण से लड लड
हम हारे
क़ारो को छोड कुछ पैदल भी
चल ले
ताकि अच्छा स्वास्थ मिले और
बच्चे साफ हवा मे पल ले
नये पेड नही लगा सकते तो
पुराने को ही पाले और सँवारे
नयी कारे, पुरानी कारे
हर ओर कारे ही कारे
प्रदूषण से लड लड
हम हारे
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
3 comments:
आप ने सामायिक विषय पर सुन्दर रचना लिखी है.. हम सब ही बहुत सी समस्याओं के जनक है और हमें ही उनका समाधान भी खोजना है
सार्थक विषय पर सुन्दर रचना.
बहुत बढिया रचना !
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