Tuesday, June 5, 2007

ये SEZ फूलो की नही कांटो की सेज है

क़िसके दिमाग की है यह उपज

या कहे सनक

लोगो के दर्द की जिसे नही समझ

सुने जो सिक्को की खनक

ऐसे विकास से हमे परहेज है

ये SEZ फूलो की नही

कांटो की सेज है

विदेश से पढ कर लौटे,

देश के विनाश का खेल खेले

चलो अब इनसे

देश की डोर ले ले

किसानो के देश मे उनसे ही छल

यह हैरतअंगेज है

ऐसे विकास से हमे परहेज है

ये SEZ फूलो की नही

कांटो की सेज है

क़रोडो के देश मे क्यो,

चन्द लोगो का हित सोचे

क्यो गरीब अब गरीब रहे

और किस्मत को कोसे

वो चंगेज क्या कम था

जो आ गये नये चंगेज है

ऐसे विकास से हमे परहेज है

ये SEZ फूलो की नही

कांटो की सेज है

नेता चुने हम और वो काम करे

किसी और का

पांच साल बाद फिर लौटे,

ऐ मतदाता अब सम्भल जा

बता दे तेरा संकल्प मजबूत

और दिमाग तेज है

ऐसे विकास से हमे परहेज है

ये SEZ फूलो की नही

कांटो की सेज है

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

2 comments:

Reetesh Gupta said...

क्या बात है ....बहुत सुंदर ....कमाल लिखते हैं
आप...आप की आवाज देश की आवाज है ...ऎसे ही लिखते रहें ....बधाई

श्रेयार्चन said...

bahut sundar, aapki kavitaaye neend se jagaane wali hai.n...par afsos ki hamare desh ke karndhar kumbhkarni neend me soye hue hai.n....
fir bhi....aap lage rahe....meri shubhkamnayen