Thursday, June 7, 2007

“जरा भी समझदारी नही दिखाई देती”

विदेशो से गेहूँ मंगवाये
पर करे रतनजोत की खेती
इसमे तो जरा भी समझदारी
नही दिखाई देती

उर्वरको पर रियायत दे
और करे बात जहर मुक्त उत्पादन की
पराजीनी फसल को छूट दे
और करे बात स्वदेशी अन्न की

यह भ्रम कैसा,
क्यो नही संस्थाऍ गल्तियो से सबक लेती

विदेशो से गेहूँ मंगवाये
पर करे रतनजोत की खेती
इसमे तो जरा भी समझदारी
नही दिखाई देती

क़िसानो के देश मै
किसानो का कोई हित ना सोचे
कोई नही जो आगे आकर
उनके आँसू पोछे

उनके लिये,
उल्टी है सभी नीति

विदेशो से गेहूँ मंगवाये
पर करे रतनजोत की खेती
इसमे तो जरा भी समझदारी
नही दिखाई देती

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

1 comment:

36solutions said...

पंकज भईया अभी तक हम आप ल कृषि वैज्ञानिक भर समझत रहेन, आप तो बहुत सुघ्‍घर कविता घलोक लिखथौ धन्‍यवाद । आपके हिन्‍दी ब्‍लाग के बारे म सी जी नेट ले पता चलिस । भईया आप अपन ये ब्‍लाग ल नारद जउन ह हिन्‍दी ब्‍लाग के फीड एग्रीगेरेटर ये तउन में पंजीकरण करवावव ताकि हम जम्‍मों नेट म हिन्‍दी पढईया मन हा नारदे के सहारा ले हिन्‍दी ला बांचथन नारद के पता हे http://narad.akshargram.com/ येमा पंजीकरण में जाके पंजीकरण कर देवव । वैसे हमर छत्‍तीसगढ ले बडे भाई जयप्रकाश मानस जी हर घलोक हिन्‍दी ब्‍लाग लिखथे उंखर पता http://jayprakashmanas.blogspot.com/ है अउ रायपुर के संजीत त्रिपाठी जी http://sanjeettripathi.blogspot.com/ अउ आपके अज्ञानी छोटे भाई मैं संजीव तिवारी दुर्ग भिलाई ले http://aarambha.blogspot.com/ म लिखत हन आप मन के अंग्रेजी ब्‍लाग ल देख के आप ल मैं हर बोलईयाच रेहेव कि भईया कुछू हिन्‍दी म घलोक लिखौ , आप बिन बोले मोर बात ल सुन लेहेव । धन्‍यवाद अवधिया जी । आपका संजीव तिवारी http://aarambha.blogspot.com/