Thursday, June 28, 2007

काली राजधानी

काजल की कोठरी मे नही रहते
फिर भी हाथ-पैर है काले
हरे-भरे शहर मे अब प्राणवायु
के है लाले

स्पाँज आयरन सन्यंत्र का प्रदूषण
अब उसके रग-रग मे बहता है
जो छ्त्तीसगढ की ‘काली राजधानी’ मे
रहता है

घर काले
फसल काली
लगता है योजनाकारो की
अक्ल काली

कुछ लोगो के फायदे के लिये
पूरा शहर यह सहता है
स्पाँज आयरन सन्यंत्र का प्रदूषण
अब उसके रग-रग मे बहता है
जो छ्त्तीसगढ की ‘काली राजधानी’ मे
रहता है

बच्चो की सोच कर
मन रोता है
अपने ही देश मे हमारे चुने लोगो की मनमानी
मन आपा खोता है

स्वच्छ और सुंदर भारत का स्वप्न-महल
अब ढहता है
स्पाँज आयरन सन्यंत्र का प्रदूषण
अब उसके रग-रग मे बहता है
जो छ्त्तीसगढ की ‘काली राजधानी’ मे
रहता है

मालूम है मुझे सारे देश का
ऐसा हाल है
फिर भी हम सब चुप है
क्या कमाल है

ऐसे तो जुल्म बढेगा ही ये मेरा मन
कहता है
स्पाँज आयरन सन्यंत्र का प्रदूषण
अब उसके रग-रग मे बहता है
जो छ्त्तीसगढ की ‘काली राजधानी’ मे
रहता है

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

1 comment:

Satyendra Prasad Srivastava said...

अच्छा शब्द चित्र खींचा है। पता नहीं हम कब तक चुप रहेंगे। हमारी अज्ञानता हमें गंभीर संकट की ओर ले जा रही है