Sunday, June 10, 2007

आँसू नियमगिरि के

क्या तुमने देखे है

आँसू नियमगिरि के

उसकी समस्याऍ और

भय नियमगिरि के

पुराने जंगलो को काटना आसान है

पर एक पेड लगाना मुश्किल

जंगल लगा पाना असम्भव है

समझना नही इसे जटिल

मानव के तो बहुत से नेता है

कानूनी न्यायालयो मे

पर माँ प्रकृति अकेली है

यह सही नही कही से

हम कितना खोयेंगे

गिरि के खनन से

कोई नही जानता

जाना नही इसे किसी ने मन से

कौन इससे लाभ पायेगा

केवल चन्द लोग

यह जग की रीत है

कुछ ही करे सदा भोग

चलो कुछ करे और लौटाए

उत्साह के पल नियमगिरि के

क्या तुमने देखे है

आँसू नियमगिरि के

उसकी समस्याऍ और

भय नियमगिरि के

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

Tears of Niyamgiri


Have you ever seen the

Tears of Niyamgiri

The problems and

Fears of Niyamgiri

Its easy to fell the old forests

But difficult to plant a tree

And impossible to grow forest

You will also agree

We have many representatives

For human in court of justice

But no one to represent Mother Nature

It is not fair practice

How much will we loose

By digging the hill

No one knows

As no one tried to fill (inventories)

Who will be benefited from this destruction

Only few, very few

But such destructions are

Not new

Lets do something to return back the

Cheers of Niyamgiri

Have you ever seen the

Tears of Niyamgiri

The problems and

Fears of Niyamgiri

Pankaj Oudhia ‘Dard Hindustani’


Blog on Niymagiri Biodiversity http://niyamgiri-biodiversity.blogspot.com/

5 comments:

Reetesh Gupta said...

बहुत सुंदर कविता ..

राजीव रंजन प्रसाद said...

कविता और उसका अनुवाद दोनो ही बेहतरीन//

*** राजीव रंजन प्रसाद्

Udan Tashtari said...

बढ़िया है जनाब.बहुत सही.

अनूप शुक्ल said...

बहुत अच्छी कविता लिखी।

36solutions said...

स्‍वागत पंकज जी, यहां हम मिलते रहेंगे