क्या तुमने देखे है
आँसू नियमगिरि के
उसकी समस्याऍ और
भय नियमगिरि के
पुराने जंगलो को काटना आसान है
पर एक पेड लगाना मुश्किल
जंगल लगा पाना असम्भव है
समझना नही इसे जटिल
मानव के तो बहुत से नेता है
कानूनी न्यायालयो मे
पर माँ प्रकृति अकेली है
यह सही नही कही से
हम कितना खोयेंगे
गिरि के खनन से
कोई नही जानता
जाना नही इसे किसी ने मन से
कौन इससे लाभ पायेगा
केवल चन्द लोग
यह जग की रीत है
कुछ ही करे सदा भोग
चलो कुछ करे और लौटाए
उत्साह के पल नियमगिरि के
क्या तुमने देखे है
आँसू नियमगिरि के
उसकी समस्याऍ और
भय नियमगिरि के
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
Tears of Niyamgiri
Have you ever seen the
Tears of Niyamgiri
The problems and
Fears of Niyamgiri
Its easy to fell the old forests
But difficult to plant a tree
And impossible to grow forest
You will also agree
We have many representatives
For human in court of justice
But no one to represent Mother Nature
It is not fair practice
How much will we loose
By digging the hill
No one knows
As no one tried to fill (inventories)
Who will be benefited from this destruction
Only few, very few
But such destructions are
Not new
Lets do something to return back the
Cheers of Niyamgiri
Have you ever seen the
Tears of Niyamgiri
The problems and
Fears of Niyamgiri
Pankaj Oudhia ‘Dard Hindustani’
Blog on Niymagiri Biodiversity http://niyamgiri-biodiversity.blogspot.com/
5 comments:
बहुत सुंदर कविता ..
कविता और उसका अनुवाद दोनो ही बेहतरीन//
*** राजीव रंजन प्रसाद्
बढ़िया है जनाब.बहुत सही.
बहुत अच्छी कविता लिखी।
स्वागत पंकज जी, यहां हम मिलते रहेंगे
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