Wednesday, June 6, 2007

मै भी इंसान हूँ

किसान मेलो मे

भीड बढाता

जिसे सपने

हर कोई दिखाता

मै भारत का किसान हूँ।

समझो मेरी व्यथा

मै भी इंसान हूँ॥

चार किताबे देखकर बना वैज्ञानिक,

मेरे सामने इठलाता

आलसी कह मेरा

मजाक उडाता

उसके बोलकर, मेहनत से ज्यादा

कमा लेने से मै हैरान हूँ

मै भारत का किसान हूँ।

समझो मेरी व्यथा

मै भी इंसान हूँ॥

हर कोई नयी फसल

मेरे सामने डाल जाता

और मेरी खेती को,

गलत बताता

जैसे मै उनकी तरह

हकीकत से अंजान हूँ

मै भारत का किसान हूँ।

समझो मेरी व्यथा

मै भी इंसान हूँ॥

“जय जवान जय किसान”

का नारा दिखलाता

फिर वही नेता

खेतो मे कारखाने

लगवाता

इन आस्तिन के साँपो से

मै परेशान हूँ

मै भारत का किसान हूँ।

समझो मेरी व्यथा

मै भी इंसान हूँ॥

कर्ज मे डूबे भाई को

रोज श्मशान ले जाता

फिर भी कर्ज लेने

सरकारी फरमान आ जाता

इन कर्ज तले दबाने वालो से

हलाकान हूँ

मै भारत का किसान हूँ।

समझो मेरी व्यथा

मै भी इंसान हूँ॥

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

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