मौके-बेमौके बम फोडने का मौका
नही गँवाते है
लोगो का चैन हरते फिर भी
सभ्य कहलाते है
चन्द बम जिन्हे हम मिनटो मे
राख कर देते है
उतने पैसे न मालूम कितने
भूखो का पेट भर देते है
ये हमारी अय्याशी है जो बम निर्माता
बच्चो से यह जानलेवा काम करवाते है
मौके बेमौके बम फोडने का मौका
नही गँवाते है
लोगो का चैन हरते फिर भी
सभ्य कहलाते है
जानते है, किसी घर मे कोई मरीज
जब बम की आवाज से कराह्ता है
तो आपके नव विवाहित परिजन के लिये
उसका मन कडवाहट से भर जाता है
क्यो आशीर्वाद की जगह बददुआ पाते है
मौके बेमौके बम फोडने का मौका
नही गँवाते है
लोगो का चैन हरते फिर भी
सभ्य कहलाते है
आप क्या कर सकते है
जमाना ही ऐसा है
अरे ये तो बहाना बनाने
जैसा है
क्यो नही ऐसे आयोजनो का बहिष्कार
करते और करवाते है
मौके बेमौके बम फोडने का मौका
नही गँवाते है
लोगो का चैन हरते फिर भी
सभ्य कहलाते है
आप सहकर कोई बडा काम
नही कर रहे है
कान ही नही खराब कर रहे बच्चो मे
गलत संस्कार भी भर रहे है
क्यो नही बम के पैसो से फल खिलाकर
अपने बच्चो का स्वास्थ्य बनाते है
मौके बेमौके बम फोडने का मौका
नही गँवाते है
लोगो का चैन हरते फिर भी
सभ्य कहलाते है
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
3 comments:
बहुत खूब, पंकज जी. बहुत सशक्त रचना है, बधाई.
ZORDAAR
अति सुन्दर व्यंग्य रचना...
क्यो नही बम के पैसो से फल खिलाकर
अपने बच्चो का स्वास्थ्य बनाते है
मौके बेमौके बम फोडने का मौका
नही गँवाते है
लोगो का चैन हरते फिर भी
सभ्य कहलाते है
काश की सभी एसा सोच पाते...
शानू
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