बरसो पुरानी आस्थाओ और परम्पराओ को गलत बता
क्या हम हो गये है विद्वान
या बुजुर्गो के वैज्ञानिक ज्ञान का मजाक
है हमारा अज्ञान
तुलसी मंजरी क्यो अर्पित की जाती है
क्यो नदियो मे है सिक्के डाले जाते
क्यो छीकने पर रोके यात्रा
क्यो इमली वृक्ष भूतो का डेरा कहलाते
इन सबका का अपना तर्क है और अपना विज्ञान
बरसो पुरानी आस्थाओ और परम्पराओ को गलत बता
क्या हम हो गये है विद्वान
या बुजुर्गो के वैज्ञानिक ज्ञान का मजाक
है हमारा अज्ञान
क्या ये परम्परा इसीलिये गलत है
क्योकि पुरानी है
या इसके पालको की आवाज
अब तक हमने नही पह्चानी है
इनसे ही है भारत की सही पह्चान
और सम्मान
बरसो पुरानी आस्थाओ और परम्पराओ को गलत बता
क्या हम हो गये है विद्वान
या बुजुर्गो के वैज्ञानिक ज्ञान का मजाक
है हमारा अज्ञान
बचपन मे ही बालो का झडना
जवानी मे बुढापा आना
ये नयी पीढी की है देन
बुजुर्गो पर लाँछन मत लगाना
उनका जीवन ढंग ही सही था
वे ही है अनुभवो की खान
बरसो पुरानी आस्थाओ और परम्पराओ को गलत बता
क्या हम हो गये है विद्वान
या बुजुर्गो के वैज्ञानिक ज्ञान का मजाक
है हमारा अज्ञान
आओ। आस्थाओ और परम्पराओ
का वैज्ञानिक आधार खोजे
और नयी पीढी को
इनसे जोडे
इनकी रक्षा के लिये लगा दे जान
बरसो पुरानी आस्थाओ और परम्पराओ को गलत बता
क्या हम हो गये है विद्वान
या बुजुर्गो के वैज्ञानिक ज्ञान का मजाक
है हमारा अज्ञान
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
2 comments:
पंकज जी,
बहुत ही अच्छे विषय पर आपने लिखा है। हमारी पीढी को इन मूल्यों पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता तो है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
विषय तो बहुत अच्छा पर परंपरा अगर बिल्कुल रुक जाए जो वह रुके जल के समान गंध पूर्ण हो जाता है… मेरा मानना है कि बदलाव भी आवश्यक है पर सहेजते हुए…।
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