अपने देश मे जन्मी पनपी
और फिर भी वैकल्पिक
पारम्परिक चिकित्सा के लिये
यह तर्क है अवैज्ञानिक
अनगिनत वैद्य आज भी
वैधता की बाट जोह्ते है
अपना दर्द भूलकर
दिन रात सेवा करते रहते है
इन प्रकृति पुत्रो की भी
सुध ले ले तनिक
अपने देश मे जन्मी पनपी
और फिर भी वैकल्पिक
पारम्परिक चिकित्सा के लिये
यह तर्क है अवैज्ञानिक
महंगी दवा और इलाज
भारतीयो पर भारी है
मरीजो को लूटने की मची
मारामारी है
फिर आधुनिक चिकित्सा से राहत मिलती है क्षणिक
अपने देश मे जन्मी पनपी
और फिर भी वैकल्पिक
पारम्परिक चिकित्सा के लिये
यह तर्क है अवैज्ञानिक
आओ! अब पारम्परिक चिकित्सा को
मुख्यधारा से जोडे
असली चिकित्सको को नीम-हकीम
कहना छोडे
और देखे वनौषधीयो के चमत्कार अलौकिक
अपने देश मे जन्मी पनपी
और फिर भी वैकल्पिक
पारम्परिक चिकित्सा के लिये
यह तर्क है अवैज्ञानिक
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
3 comments:
कविता अच्छी लगी और इसमे व्यक्त विचार बहुत ही मौलिक लगा।
"...महंगी दवा और इलाज
भारतीयो पर भारी है
मरीजो को लूटने की मची
मारामारी है..."
ये बात सही है. जेनेरिक और ब्रांड नाम की दवाइयों की कीमतों में 600 -1000 प्रतिशत तक अंतर रहता है. पासवान ने कुछ घोषणाएं की थीं, परंतु वे दबी ही रह गईं.
हमारी मूल चिकित्सा पद्धति को वैकल्पिक चिकित्सा का नाम देने का जो दर्द आपने इस कविता में प्रस्तुत किया है वह हम सब के लिए चिंतनीय है । कवि पंकज भईया को धन्यवाद ।
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