गूगल जो तुम न होते
मेरे ज्ञान का यूं प्रसार न हो पाता
दुनिया के दूर कोने में बैठा अभागा
कैंसर से औरो के जैसे हार जाता
मेरी कविता
पंकज अवधिया का हिन्दी ब्लॉग
Wednesday, October 25, 2017
दर्द हिंदुस्तानी उवाच: गूगल जो तुम न होते
दर्द हिंदुस्तानी उवाच: कीमती जान न दे किसान
यूं समस्याओं से हारकर
कीमती जान न दे किसान
वरना तेरी मौत भी बन जाएगी
राजनीति का सामान।
चलो एक और बढ़ा कहकर
गिनती करने वालों की फैलेगी मुस्कान।।
न पक्ष तेरा न विपक्ष
सभी साधेंगे अपना उल्लू
और तू होगा परेशान।
यूं समस्याओं से हारकर
कीमती जान न दे किसान।
Sunday, September 21, 2014
दर्द हिन्दुस्तानी उवाच:: चीनी बीनी
दर्द हिन्दुस्तानी उवाच:: चीनी बीनी
तीन घंटो में तीन करार
चीन की दादागिरी फिर भी बरकरार
पंकज अवधिया "दर्द हिन्दुस्तानी"
सर्वाधिकार सुरक्षित
Saturday, January 19, 2013
दर्द हिन्दुस्तानी उवाच: सुबह- सुबह राजनीति
ये जो सुबह की
ताजी हवा है
सारे रोगों की
दवा है
जल्द ही पता
चलेगा
राहुल आधे है या
सवा है
और दावों में
कितनी हवा है
पंकज अवधिया
"दर्द हिन्दुस्तानी"
सर्वाधिकार
सुरक्षित
दर्द हिन्दुस्तानी उवाच: सत्ता की लेई
जब-जब अपने को सत्ता से चिपकाने
भाजपा ने बनाई लेई
तब-तब बहुत याद आये
विवादों से परे
बाजपेई
पंकज अवधिया
"दर्द हिन्दुस्तानी"
सर्वाधिकार
सुरक्षित
दर्द हिन्दुस्तानी उवाच: रायपुर की चुनावी सड़कें
हमने पूछा नेता जी से
ऐन चुनाव के समय रायपुर की सड़कें बनवाई हैं
क्या वोट देने जाने के लिए
नेता जी बोले
नही, सड़के हैं बस लुभाने के लिए
हमारे कार्यकर्ता हैं न
आप-जैसों के वोट डलवाने के लिए
पंकज अवधिया "दर्द हिन्दुस्तानी"
सर्वाधिकार सुरक्षित
Sunday, February 5, 2012
मालिश वाली The Massage Girl भाग-1
मालिश वाली The Massage Girl
(पंकज अवधिया के अंग्रेज़ी उपन्यास "द मसाज गर्ल" के कुछ अनुवादित अंश)
"आपने अभी तक कपडे उतारे नही| चलिए मै आपकी मदद करती हूँ|"
कपड़े तो उतरे हुए थे| पूरे नही पर जिस भाग में दर्द था और जहां मालिश करानी थी वहां के कपड़े तो उतारे जा चुके थे| फिर किस कपड़े की बात हो रही है?
"इतनी भी क्या बेसब्री है? तनिक रुकिए|" मैंने टालने की कोशिश की|
पर लगता था कि उसका रुकने का मन नही था|
एक दिन कितना बड़ा होता है मुझे आज इसका आभास हुआ| अलसुबह ही मुम्बई पहुंचा और एयर पोर्ट से उठा लिया गया| अचानक ही अपने को मुबई-पुणे मार्ग की पहाड़ियों पर पाया| मालिश के लिए नही आया था मै| बात गम्भीर थी| एक प्रसिद्ध सिने अभिनेता के पिता गंभीर रूप से बीमार थे| डाक्टरों ने जवाब दे दिया था और हाथ भी खड़े कर दिए थे| प्रोस्टेट कैंसर के शिकार थे वे| नाना प्रकार की दवाएं अब भी चल रही थी| देश-विदेश से जानकारों को बुला लिया गया था इस उम्मीद में कि शायद वे कुछ चमत्कार कर सके| मुझे भी अपने शहर से उठा लिया गया था| मैं लाख ना नुकुर करता रहा पर छोटा विशेष विमान आ जाने पर ना न कर सका| मैंने पुणे के पास करजत की पहाड़ियों में जाना तय किया ताकि मैं रोगी की जीवनी शक्ति जानने के लिए कुछ प्रयोग कर सकूं जिनके आधार पर उचित जड़ी-बूटियों का सुझाव दे सकूं| प्राइवेट जेट की सुखद उड़ान के बाद पहाड़ियां कष्ट दे रही थी| फिर भी दो घंटे की चढाई के बाद जड़ी-बूटियों की खोज शुरू हो गयी|
शाम को जब थककर चूर हो गए तो वापस लौट आये| रोगी से दूसरे दिन सुबह मिलना था| थकान इतनी थी कि बिस्तर पर पड़ते ही नींद आ जाती| स्वभाव में कुछ चिडचिडाहट आ रही थी यानी शरीर अब आराम की जिद कर रहा था| सिने अभिनेता के सहयोगी मेरी दशा को ताड़ गए और तुरंत होटल की ओर रवाना कर दिया| होटल की शान देखते ही बनती थी| मुझे समुद्र की ओर वाला कमरा दिया गया ताकि मैं सुकून पा सकूं| अच्छी खातिरदारी की गयी| मैंने स्नान किया और फिर घर पर फोन से बात करने लगा|
तभी कंधे पर कुछ गुदगुदी हुयी| कमरे में तो मैं अकेला था| कीड़ों की उम्मीद मैं नहीं कर सकता था, घने जंगल में किसी सरकारी रेस्ट हाउस में जो मैं नही था| आलीशान होटल था जहां ग्राहकों के आने से पहले उनको बिना बताये जहरीले कीटनाशकों का छिडकाव किया जाता है ताकि कीड़ों का नामोनिशान न रहे| खटमल हो भी तो कोने में दुबके बैठे रहे कम से कम ग्राहकों के सोते तक| फिर यह गुदगुदी कैसी? (क्रमश:)
कपड़े तो उतरे हुए थे| पूरे नही पर जिस भाग में दर्द था और जहां मालिश करानी थी वहां के कपड़े तो उतारे जा चुके थे| फिर किस कपड़े की बात हो रही है?
"इतनी भी क्या बेसब्री है? तनिक रुकिए|" मैंने टालने की कोशिश की|
पर लगता था कि उसका रुकने का मन नही था|
एक दिन कितना बड़ा होता है मुझे आज इसका आभास हुआ| अलसुबह ही मुम्बई पहुंचा और एयर पोर्ट से उठा लिया गया| अचानक ही अपने को मुबई-पुणे मार्ग की पहाड़ियों पर पाया| मालिश के लिए नही आया था मै| बात गम्भीर थी| एक प्रसिद्ध सिने अभिनेता के पिता गंभीर रूप से बीमार थे| डाक्टरों ने जवाब दे दिया था और हाथ भी खड़े कर दिए थे| प्रोस्टेट कैंसर के शिकार थे वे| नाना प्रकार की दवाएं अब भी चल रही थी| देश-विदेश से जानकारों को बुला लिया गया था इस उम्मीद में कि शायद वे कुछ चमत्कार कर सके| मुझे भी अपने शहर से उठा लिया गया था| मैं लाख ना नुकुर करता रहा पर छोटा विशेष विमान आ जाने पर ना न कर सका| मैंने पुणे के पास करजत की पहाड़ियों में जाना तय किया ताकि मैं रोगी की जीवनी शक्ति जानने के लिए कुछ प्रयोग कर सकूं जिनके आधार पर उचित जड़ी-बूटियों का सुझाव दे सकूं| प्राइवेट जेट की सुखद उड़ान के बाद पहाड़ियां कष्ट दे रही थी| फिर भी दो घंटे की चढाई के बाद जड़ी-बूटियों की खोज शुरू हो गयी|
शाम को जब थककर चूर हो गए तो वापस लौट आये| रोगी से दूसरे दिन सुबह मिलना था| थकान इतनी थी कि बिस्तर पर पड़ते ही नींद आ जाती| स्वभाव में कुछ चिडचिडाहट आ रही थी यानी शरीर अब आराम की जिद कर रहा था| सिने अभिनेता के सहयोगी मेरी दशा को ताड़ गए और तुरंत होटल की ओर रवाना कर दिया| होटल की शान देखते ही बनती थी| मुझे समुद्र की ओर वाला कमरा दिया गया ताकि मैं सुकून पा सकूं| अच्छी खातिरदारी की गयी| मैंने स्नान किया और फिर घर पर फोन से बात करने लगा|
तभी कंधे पर कुछ गुदगुदी हुयी| कमरे में तो मैं अकेला था| कीड़ों की उम्मीद मैं नहीं कर सकता था, घने जंगल में किसी सरकारी रेस्ट हाउस में जो मैं नही था| आलीशान होटल था जहां ग्राहकों के आने से पहले उनको बिना बताये जहरीले कीटनाशकों का छिडकाव किया जाता है ताकि कीड़ों का नामोनिशान न रहे| खटमल हो भी तो कोने में दुबके बैठे रहे कम से कम ग्राहकों के सोते तक| फिर यह गुदगुदी कैसी? (क्रमश:)
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