Wednesday, February 27, 2008
और अब बम भी होने चाहिये हर्बल
http://www.agoodplace4all.com/traditionalmedicine/post8.php
आम, आम नहीं, बहुत खास है!
http://hgdp.blogspot.com/2008/02/blog-post_27.html
Sunday, February 24, 2008
क्या वट की जड और विदारीकन्द का तिलक किसी को वशीभूत कर सकता है?
क्या वट की जड और विदारीकन्द का तिलक किसी को वशीभूत कर सकता है? आप इस लेख को आरम्भ मे पढ सकते है।
http://aarambha.blogspot.com/2008/02/blog-post_25.html
Wednesday, February 20, 2008
कितना कम जानते है हम देश की पर्यावरणीय समस्याओ के विषय मे
http://www.agoodplace4all.com/traditionalmedicine/post7.php
मै प्रविष्ट हुआ काव्य क्षेत्र मे
ह्र्दय की गहराइयो मे छिपे
मर्म को
मष्तिष्क मे छिपे
मानव-धर्म को
आत्मा मे छिपे
पुण्य-कर्म को
समेटकर औ”
जीवन सत्यो को भरकर नेत्र मे
मै प्रविष्ट हुआ काव्य क्षेत्र मे
आम-नागरिको के
जीवन से
बरसो से दुख सहते
मन से
और फिर भी आशीष के शब्द कहते
जन से
भेटकर औ”
जीवन सत्यो को भरकर नेत्र मे
मै प्रविष्ट हुआ काव्य क्षेत्र मे
दुख देश का
दुख परिवेश का
और दुख
समय-विशेष का
देखकर औ”
जीवन सत्यो को भरकर नेत्र मे
मै प्रविष्ट हुआ काव्य क्षेत्र मे
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
स्कूल के दिनो मे लिखी कविता।
Tuesday, February 19, 2008
औषधीय धान से रोगो की चिकित्सा पढे ज्ञान जी के चिठ्ठे पर
http://hgdp.blogspot.com/2008/02/blog-post_20.html
Monday, February 18, 2008
क्यो मन सन्देहो से भर जाता है
दुर्जन जीते है बरसो
भला मानुस जल्दी मर जाता है
प्रभु! तेरी माया मे ये खोट कैसा
क्यो मन सन्देहो से भर जाता है
एक अबोध बालक जिसे उतरना था जीवन-संग्राम मे
वही आज घायल हुआ
जिसने युद्ध लडा ही नही
वह न वीर न कायर हुआ
प्रभु! तेरा यह कदम
पशोपेश की स्थिति मे खडा कर जाता है
दुर्जन जीते है बरसो
भला मानुस जल्दी मर जाता है
प्रभु! तेरी माया मे ये खोट कैसा
क्यो मन सन्देहो से भर जाता है
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
13 जुलाई, 1988 को लिखी कविता जब मेरा एक सहपाठी अस्पताल मे मौत से जूझ रहा था।
क्या यही है भारत जो ---
महापुरुषो की धरती मे
ये कैसा अन्धकार है
परोपकार के सारे प्रयत्न
यहाँ क्यो बेकार है
यहाँ दिन है या रात है
क्या यही है भारत जो तेजस्वियो से भरा
नभ-पटल सा विराट है
धरती के इस स्वर्ग मे
किसानो का उजडे है संसार
पेट भरने वाला ही रहे दुखी
समाज मे ये कैसा है विकार
कही सत्य ने असत्य को तो नही दे दी मात है
क्या यही है भारत जो तेजस्वियो से भरा
नभ-पटल सा विराट है
शाँति की भूमि मे
शस्त्रो का अम्बार है
स्वच्छ नभ-पटल पर
क्यो बारुद का गुबार है
ये स्थान आशा की किरण बिखेरने वाला नही
शायद मौत का घाट है
क्या यही है भारत जो तेजस्वियो से भरा
नभ-पटल सा विराट है
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
स्कूल के दिनो मे लिखी कविता जब पंजाब मे आतंकवाद चरम पर था
क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है?
http://aarambha.blogspot.com/2008/02/blog-post_18.html
Sunday, February 17, 2008
प्रार्थना
हे प्रभु! हमे न सूखा,
न बाढ चाहिये
न सूखा
न तूफानी आषाढ चाहिये
हमे चाहिये सीमित जल।
औ’ सुनहरा कल।
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
स्कूल के दिनो मे लिखी कविता।
मै बडा हो गया हूँ
जब मेरे भविष्य सपने कल्पना मात्र बन गये
मेरे आदर्श नेता-गण घृणा के पात्र बन गये
तब मुझे लगा कि मै बडा हो गया हूँ।
जब टूटने लगे बचपन के, मन के हवाई किले
जब सामने आने लगी जीवन की मुश्किले
तब मुझे लगा कि मै बडा हो गया हूँ।
जब बडे-बुजुर्गो का आशीर्वाद ले, करके उन्हे प्रणाम
जीवन-रथ पर चल पडा, लडने जीवन संग्राम
तब मुझे लगा कि मै बडा हो गया हूँ।
औ’ अपने पाँवो मे खडा हो गया हूँ॥
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
Saturday, February 16, 2008
अश्रु और पानी
अश्रु और पानी
अश्रु तुम पानी की तरह बरसो
पर पानी तुम अश्रु की तरह मत बरसो
मानव तुम भी मानव पर बरसो प्रेम फुहार बन
उस पर शत्रु की तरह मत बरसो
पंकज अवधिया 'दर्द हिन्दुस्तानी'
© सर्वाधिकार सुरक्षित
अबकी बार होली
अबकी बार होली
तुम्हारी खुशी से
किसी का जीवन छिना
क्या तुम नही मना सकते एक होली
सूखी लकडियो के बिना
पंकज अवधिया 'दर्द हिन्दुस्तानी'
सर्वाधिकार सुरक्षित
- स्कूल के दिनो मे लिखी कविता
तुम कौन हो???
तुम कौन हो???
बिल्कुल मौन हो???
तुम वृक्ष हो तो
मुझे छाँव दो
तुम आश्रयदाता हो तो
मुझे गाँव दो
तुम पथ हो तो
मंजिल दो
तुम आशिक हो तो
दिल दो
तुम द्वार हो तो
मार्ग दो
तुम मन हो तो
उदगार दो
तुम शिक्षक हो तो
दिशा दो
तुम चाँद हो तो
निशा दो
तुम सूरज हो तो
शक्ति दो
तुम आत्मा हो तो
अभिव्यक्ति दो
तुम नेत्र हो तो
दृष्टि दो
तुम ईश्वर हो तो
नयी सृष्टि दो
तुम प्रियजन हो तो
परामर्श दो
तुम भाग्य हो तो
सुख सहर्ष दो
तुम जीवन हो तो
मुझे संघर्ष दो
तुम मौत हो तो
मुझे जीवन-निष्कर्ष दो
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
17 फरवरी, 1988 को लिखी कविता।
लकडी और लडकी
लकडी और लडकी दोनो मे
बडी समानता है
इन दोनो के साथ हमारा व्यवहार
हमारी अज्ञानता है
क्या बचपन, क्या यौवन।
अंत्यावस्था तक सब लडकी को
चोट पहुँचाते है
कभी उसे पीटते तो कभी
लकडी की तरह जलाते है
लोग-बाग लकडी को जला
ऊष्मा पाते है
लोग-बाग लडकी को जला
दानवी प्यास बुझाते है
लोग-बाग निर्दोष लकडी को
ठूंठ बनाकर छोड देते है
लोग-बाग निर्दोष लडकी को
’पराया धन बताकर छोड देते है
लकडी धूप-छाँव सब
सह जाती है
लडकी भला उफ कब
कह जाती है
लडकी बेसहारे का सहारा
अन्धे की लाठी बन जाती
लकडी डूबते का किनारा
अन्धे की जीवन-साथी बन जाती
दोनो पुण्य पथ पर चलती है
फिर भी दोनो कटती है, जलती है
क्यो? क्यो? क्यो?
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
बन्धन
गज बन्धा आलान से
तलवार बन्धी म्यान से
लालची मोह से बन्धा
साधु बन्धे ध्यान से
गायक बन्धा गान से
विद्या बन्धी विद्वान से
बुरा बुराई से बन्धा
गुणी बन्धा सम्मान से
दानी बन्धा दान से
अहंकारी बन्धा अपमान से
सुन्दरी बन्धी श्रुंगार से
राजा बन्धा शान से
शराबी बन्धा मदिरापान से
आत्मा बन्धी इंसान से
इंसान बन्धा किससे?
इन्सान बन्धा भगवान से
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
Friday, February 15, 2008
हिन्दी ब्लागर पर कानूनी कार्यवाही अब दूर नही
इस क़डी मे मैने अपने नाम और दूसरे ब्लाग मे भेजी गयी टिप्पणी की चोरी देखी। मैने गूगल को एब्यूज की शिकायत दर्ज करायी है। मेरे लीगल एडवाइजर शायद कल सुबह कानूनी नोटिस भेजे। मुझे आशा है गूगल इस शिकायत पर कार्यवाही करेगा। मुझे लगा कि इस प्रगति की सूचना आप सभी को देनी चाहिये।
Wednesday, February 13, 2008
Tuesday, February 12, 2008
पत्तल से लाभ आज पढे ज्ञान जी के चिठ्ठे पर
http://hgdp.blogspot.com/2008/02/blog-post_13.html
Sunday, February 10, 2008
क्या पीले पलाश से सोना बनाया जा सकता है?
http://aarambha.blogspot.com/2008/02/blog-post_11.html
Wednesday, February 6, 2008
आपको स्वस्थ बनाने बाट जोह रहे है देशी फल
http://traditionalmedicine.agoodplace4all.com/post5.php
Tuesday, February 5, 2008
भारतीय वनस्पतियो के कुछ अनोखे गुणो को जाने आज ज्ञान जी के चिठ्ठे से
http://hgdp.blogspot.com/2008/02/blog-post_06.html
Sunday, February 3, 2008
नीम के पुराने वृक्ष से रिसने वाला रस एक चमत्कारिक घटना है या नही?
http://aarambha.blogspot.com/2008/02/blog-post.html