Tuesday, July 31, 2007

वृक्ष, भूत और भगवान

जिन वृक्षो से जुडे है
भूत या भगवान
वो अब भी है सघन आबादी मे
विराजमान

क्यो ना भूत और भगवान से
हर वृक्ष को जोड दे
हो सकता है इससे ही लोग
इन्हे काटना छोड दे

भय ही शायद रोक
पायेगा इंसान को
और बचा पायेगा वृक्षो की
जान को

धरती को बचाने अन्ध-विश्वास की चादर
ओढ ले
क्यो ना भूत और भगवान से
हर वृक्ष को जोड दे
हो सकता है इससे ही लोग
इन्हे काटना छोड दे

चलो अब हर वृक्ष पर
एक कथा लिखे
जिससे वह भूत से लेकर
भविष्य तक जुडा दिखे

जग हित मे पर्यावरण संरक्षण को
एक नया मोड दे
क्यो ना भूत और भगवान से
हर वृक्ष को जोड दे
हो सकता है इससे ही लोग
इन्हे काटना छोड दे

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

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Saturday, July 28, 2007

इस अन्न की क्या कीमत देंगे

अपनी बेटियो को बैलो की जगह
काम पर लगाया
तब जाकर कही किसान बाप
अन्न उपजा पाया

ओ मंत्री जी!
इस अन्न की क्या कीमत देंगे
देश की तथाकथित खुशहाली से
किसान कब तक अछूते रहेंगे

भारत ने अपनी कृषि से
दुनिया मे नाम कमाया
रात-दिन एक करके किसानो ने
अन्न उगाया

फिर भी अब हम क्यो विदेशो का
घटिया गेहूँ खायेंगे
ओ मंत्री जी!
इस अन्न की क्या कीमत देंगे
देश की तथाकथित खुशहाली से
किसान कब तक अछूते रहेंगे

ग्रामीण युवको को खेती से हटाया
उन्हे पढाया
फिर मोबाइल और गुट्खे का
स्वाद लगाया

अब इनके बूढे बाप अपनी व्यथा
किससे कहेंगे
ओ मंत्री जी!
इस अन्न की क्या कीमत देंगे
देश की तथाकथित खुशहाली से
किसान कब तक अछूते रहेंगे

जैविक खेती को मिटा
रासायनो का साम्राज्य जमाया
और खाद-दवा वालो से
खूब कमाया
आखिर कब तक माँओ के आँचल मे
दूध की जगह जहर बहेंगे
ओ मंत्री जी!
इस अन्न की क्या कीमत देंगे
देश की तथाकथित खुशहाली से
किसान कब तक अछूते रहेंगे

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित

Wednesday, July 25, 2007

जब बच्चो को रतनजोत के पास खेलते पाता हूँ

डरता हूँ जब बच्चो को रतनजोत के पास
खेलते पाता हूँ
दुनिया भर मे इससे मौत के आँकडो से
मै सहम जाता हूँ

सब जानकर भी कौन इसे बच्चो तक
ला रहा है
इसे गाँवो और शालाओ मे
फैला रहा है

साथ और कोई नही तो मै अकेला ही
योजनाकारो को समझाता हूँ
डरता हूँ जब बच्चो को रतनजोत के पास
खेलते पाता हूँ
दुनिया भर मे इससे मौत के आँकडो से
मै सहम जाता हूँ

मेरे देश के बच्चे भूखे है
और बीज स्वादिष्ट भी जहरीले भी
इस मौत को पसरते देख रहे हम
बेबस भी ढीले भी

मासूमो की मौत से मिली सम्पन्नता के स्वप्न से
मै घबराता हूँ कतराता हूँ
डरता हूँ जब बच्चो को रतनजोत के पास
खेलते पाता हूँ
दुनिया भर मे इससे मौत के आँकडो से
मै सहम जाता हूँ

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

इस विषय मे अधिक जानकारी के लिये यह कडी देखे

Who will protect our children from Jatropha poisoning?
http://ecoport.org/ep?SearchType=earticleView&earticleId=847&page=-2

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Thursday, July 19, 2007

पता नही समुद्र कब भेज दे सुनामी को

कितनी जल्दी हम भूल जाते है
अपनी खामी को
बेफिक्र है पर पता नही समुद्र
कब भेज दे सुनामी को

आपदा पर हमारा नियंत्रण नही
पर तैयारी तो जरुरी है
आग लगने पर ही कुआँ खोदने की
क्या मजबूरी है

गल्तियो से सबक लेना चाहिये
हर प्राणी को
कितनी जल्दी हम भूल जाते है
अपनी खामी को
बेफिक्र है पर पता नही समुद्र
कब भेज दे सुनामी को

क्यो ना सफल सुरक्षा के गुर
स्कूल मे ही बता दिये जाये
ताकि बचाव दल के आते तक
कई जाने बच पाये

जो भी करे जल्दी करे और छोडे
आलस और नादानी को
कितनी जल्दी हम भूल जाते है
अपनी खामी को
बेफिक्र है पर पता नही समुद्र
कब भेज दे सुनामी को

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

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Saturday, July 14, 2007

तब तो न था दामन मैला

एड्स को जानने के बाद ही
यह क्यो फैला
हम तो पहले से बढ रहे थे पर
तब तो न था दामन मैला

मै इसे षडयंत्र
क्यो ना कहूँ
सब जानकर भी
चुप क्यो रहूँ

बाद मे दवा करने विदेशी दे गये
हमे इस रोग का थैला
एड्स को जानने के बाद ही
यह क्यो फैला
हम तो पहले से बढ रहे थे पर
तब तो न था दामन मैला

पहले इसे
लाइलाज बताते है
फिर बचाव और उपचार की
दुकान लगाते है

हमेशा की तरह फिरंगियो ने
हमसे खेल है खेला
एड्स को जानने के बाद ही
यह क्यो फैला
हम तो पहले से बढ रहे थे पर
तब तो न था दामन मैला

क्यो नही हम अब तो
सम्भल जाते
रोग फैलाकर प्रपंच करते लोगो की अक्ल
ठिकाने लगाते

इस षडयंत्र का पर्दाफाश ही होगा
नहले पर दहला

एड्स को जानने के बाद ही
यह क्यो फैला
हम तो पहले से बढ रहे थे पर
तब तो न था दामन मैला
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

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दादी, माँ और उनके नुस्खे

दादी, माँ और उनके नुस्खो

सभी से दूर हो रहे है

इसीलिये तो हम अपना आराम-चैन

और स्वास्थ्य सभी खो रहे है


चोट पर हल्दी लगाने से हम

कतराते है

फिर हल्दी के विदेशी पॆटेंट पर

अपनी त्यौरियाँ चढाते है


अंग्रेजी दवाओ को अपनाकर हम

विनाश के बीज बो रहे है

दादी, माँ और उनके नुस्खो

सभी से दूर हो रहे है

इसीलिये तो हम अपना आराम-चैन

और स्वास्थ्य सभी खो रहे है


गूलर जैसे पेडो के होते हम

फिल्टर का पानी पीते है

नीम को आँगन से हटाकर

एंटी-बाँयोटिक पर जीते है


तभी तो शरीर को जिन्दा लाश बनाकर

ढो रहे है

दादी, माँ और उनके नुस्खो

सभी से दूर हो रहे है

इसीलिये तो हम अपना आराम-चैन

और स्वास्थ्य सभी खो रहे है


चलो दादी, माँ और उनके नुस्खो को

वापस ले आये

अच्छा खाये और

चैन का जीवन पाये


उनकी छोडे जो विलासिता की

नींद सो रहे है

दादी, माँ और उनके नुस्खो

सभी से दूर हो रहे है

इसीलिये तो हम अपना आराम-चैन

और स्वास्थ्य सभी खो रहे है

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

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तो हमारे शहर अस्पतालो मे नही सोते

हर्रा, महुआ और बहेडा काश

तुम शहरो मे भी होते

तो हमारे शहर

अस्पतालो मे नही सोते


कीटो को मारने वाला जहर

अब हमे कीटो की तरह मार रहा है

बेस्वाद उत्पाद वो भी इतने ऊँचे दामो पर

बडी परेशानी मे डाल रहा है


काश मेरे किसान तुम जैविक फसले ही बोते

हर्रा, महुआ और बहेडा काश

तुम शहरो मे भी होते

तो हमारे शहर

अस्पतालो मे नही सोते


शहरो मे घर तो है पर

सारे रोगो के घर है

तन और मन दोनो ही मे

कीटाणुओ का असर है


काश बूढे पीपल और बरगद प्रदूषण मे

खून के आँसू ना रोते

हर्रा, महुआ और बहेडा काश

तुम शहरो मे भी होते

तो हमारे शहर

अस्पतालो मे नही सोते

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

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Thursday, July 12, 2007

रहमान का हवाई-टेल

कौन कहता है अंग्रेज चले गये
जारी है अभी भी लूटने का खेल
बात-बात पर जनता को बरगला रहा
रहमान का हवाई-टेल

आम लोगो की गाढी कमाई को
दीमक की तरह चट कर ज़ाते है
ऐसे आस्तीन के साँपो की मदद करने वाले
क्यो जन-प्रतिनिधि कहलाते है

जनता के राज मे इनकी सही जगह है जेल
कौन कहता है अंग्रेज चले गये
जारी है अभी भी लूटने का खेल
बात-बात पर जनता को बरगला रहा
रहमान का हवाई-टेल

क्यो ना उप्भोक्ता अब एक हो
और रहमान जैसो का भी बहिष्कार करे
ताकि देश के नव-आदर्श पैसे नही
देश से प्यार करे

गाँधी जी का बल ही इन पर कस सकता है नकेल
कौन कहता है अंग्रेज चले गये
जारी है अभी भी लूटने का खेल
बात-बात पर जनता को बरगला रहा
रहमान का हवाई-टेल

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

इंटरनेट ब्राँडबेंड मे हाल ही से शुरु किये गये ‘लूट-खसोट अभियान’ के विरोध मे इसे लिखा गया है। इस अभियान मे बात-बात पर पैसे लिये जा रहे है। यहाँ तक कि उनकी गल्ती होने पर भी घर आने के पैसे बिना किसी सूचना के लिये जा रहे है। यह ळूट की मानसिकता का सबूत है। अब समय आ गया है कि हम सब खुलकर बोले। एक बेबस कवि ने कलम की ताकत को महसूस कर यह मोर्चा खोला है।

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Saturday, July 7, 2007

धन्य हो इंटरनेट पर लिखने वालो

धन्य हो इंटरनेट पर लिखने वालो
जो तुमने बेकसूर वृक्षो का जीवन बचाया है
कागज का परित्याग कर
पर्यावरण संरक्षण का सही पाठ पढाया है

जितने पढने वाले नही उतने अखबार
छ्प रहे है
किसी को सुध नही कि इससे रोज
कितने पेड कट रहे है

अपने स्वार्थ के लिये यह सर्वनाशी जाल
फैलाया है
धन्य हो इंटरनेट पर लिखने वालो
जो तुमने बेकसूर वृक्षो का जीवन बचाया है
कागज का परित्याग कर
पर्यावरण संरक्षण का सही पाठ पढाया है

बेकार उग रहे पौधो से तैयार कागज ही पर
अब अखबार छ्पने चाहिए
वृक्षो की लाशो पर पर्यावरण संरक्षण के नारे
नही दिखने चाहिए

प्राकृतिक असंतुलन ने पहले ही चेताया है
फिर अब मौसम भी गरमाया है
धन्य हो इंटरनेट पर लिखने वालो
जो तुमने बेकसूर वृक्षो का जीवन बचाया है
कागज का परित्याग कर
पर्यावरण संरक्षण का सही पाठ पढाया है

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

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Friday, July 6, 2007

जैसे मै वृक्षो के श्मशान मे खडा था

अब तक उस स्थान का भय है
जहाँ तख्ती मे मैने ‘सरकारी काष्ठागार’ पढा था
मुझे लगा जैसे मै वृक्षो के
श्मशान मे खडा था

मानवो की कई पीढीयाँ देख चुके
हजारो वृक्ष कटे पडे थे
कुछ समय पहले तक वे धरती के सीने पर
नगीने की तरह जडे थे

इतने लम्बे समय तक सेवा देने वालो से
पता नही ‘ठेकेदारो’ का क्या झगडा था
अब तक उस स्थान का भय है
जहाँ तख्ती मे मैने ‘सरकारी काष्ठागार’ पढा था
मुझे लगा जैसे मै वृक्षो के
श्मशान मे खडा था

सोचता हूँ कब तक सब जानकर भी हम
इन लाशो से घर सजाते रहेंगे
कब लकडी का मोह छोडेंगे
और खुलकर ‘ना’ कहेंगे

हत्यारो की बिरादरी का खुद को पाकर
मै शर्म से ग़डा था
अब तक उस स्थान का भय है
जहाँ तख्ती मे मैने ‘सरकारी काष्ठागार’ पढा था
मुझे लगा जैसे मै वृक्षो के
श्मशान मे खडा था

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित

Thursday, July 5, 2007

गाजर घास और भ्रष्टाचार

गाजर घास और भ्रष्टाचार दोनो ही का
हो रहा है निर्बाध फैलाव
जैसे शरीर मे फैलता है
कोई पुराना घाव

माना कि गाजर घास
पराई है
विदेश से भारत
आई है

पर भ्रष्टाचार तो
हमारी ही देन है
और लम्बे समय से छीन
रहा चैन है

दोनो ही से ना जाने क्यो
योजनाकारो को है लगाव
गाजर घास और भ्रष्टाचार दोनो ही का
हो रहा है निर्बाध फैलाव
जैसे शरीर मे फैलता है
कोई पुराना घाव

दोनो ही से लडाई मे
हमने अब तक मुँह की खाई है
बहुत मेहनत के अलावा
पूँजी भी गँवाई है

अब दोनो के समूल नाश की है जरुरत
चाहे लगाना पडे कैसा भी दाँव
गाजर घास और भ्रष्टाचार दोनो ही का
हो रहा है निर्बाध फैलाव
जैसे शरीर मे फैलता है
कोई पुराना घाव

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

गाजर घास (पार्थेनियम) आयातित गेहूँ के साथ आया विदेशी खरपतवार है और मनुष्यो, फसलो और पशुओ सभी के लिये अभिशाप है। इसके विषय मे विस्तार के लिये देखे
http://www.iprng.org

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Tuesday, July 3, 2007

भगवान की बुढिया

हरी धरती पर लाल चादर सी
भगवान की बुढिया विचर रही है
इस बात से अंजान कि मौत
हर पल इंतजार कर रही है

करोडो के इस देश मे मर्दानगी की दवाओ का
अब भी बोलबाला है
इस इंसानी भूख के लिये
फिर इनका तेल निकलने वाला है

इनकी अकाल मौत आँखो मे आँसू भर रही है
हरी धरती पर लाल चादर सी
भगवान की बुढिया विचर रही है
इस बात से अंजान कि मौत
हर पल इंतजार कर रही है

प्रकृति मे ये है क्योकि इनका
होना जरुरी है
मर्दानगी के तो बहुत से उपाय है
फिर क्या मजबूरी है

हमारे ऐसे ही लालचो से
प्रकृति अब चन्डी का रूप धर रही है
हरी धरती पर लाल चादर सी
भगवान की बुढिया विचर रही है
इस बात से अंजान कि मौत
हर पल इंतजार कर रही है

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

‘भगवान की बुढिया’ एक विशेष प्रकार के मखमली मकोडे का नाम है जो कि मानसूनी वर्षा के दौरान जमीन से निकलते है। प्रतिवर्ष करोडो की संख्या मे इसे एकत्र कर कामोत्तेजक दवाओ का निर्माण किया जाता है। इसके कारण ये तेजी से खतम हो रहे है और इनके संरक्षण की जरुरत है। विस्तार के लिये यह लेख पढे
http://ecoport.org/ep?SearchType=reference&ReferenceID=557441


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