हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-11
- पंकज अवधिया
कुमाँऊनी होली : अलग रंग, अलग ढंग
मार्च 13, 2008 को माननीय काकेश जी ने अपने ब्लाग “काकेश की कतरने” के माध्यम से कुमाँऊनी होली के अलग-अलग रंगो की बेहतरीन प्रस्तुति दी थी। उनकी यह प्रस्तुति एक धारावाहिक के रुप मे है। एक बार पढना शुरु करो तो रुकने का मन ही नही होता है। होली पर इतना रोचक लेख मैने शायद ही कभी पढा हो।
इस प्रस्तुति मे वे लिखते है-
"इसमें मूलत: पुरुष भाग लेते हैं लेकिन आजकल महिलायें भी इसमें शामिल होती हैं. यह होली रात में शुरु होती है और अक्सर सुबह दो-तीन बजे तक चलती रहती है.होली का राग धमार से आह्वान कर पहली होली राग श्याम कल्याण में गाई जाती है. समापन राग भैरवी पर होता है. बीच में समयानुसार अलग-अलग रागों में होलियां गाई जाती हैं. सभी तरह के राग और ताल इन होलियों में प्रयोग किये जाते हैं. जैसे राग काफी, जंगला, खम्माज, साहना,जैजैवंती, झिंझोटी, भैरवी में क्रमश: जैसे जैसे थकान बढ़ती है, गाये जाते हैं. भीम पलासी, कलावती, हमीर राग भी चलता है.दादरा,कहरवा ताल सभी में होलियां गायी जाती हैं.होली को लोकप्रिय बनाने के भी प्रयास हुए.इसे लोकप्रिय बनाने के लिए जानकारों ने होली की धमार और चांचर ताल में परिवर्तन किया. सो, 14 मात्रा की धमार और चांचर तालें 16 मात्रा की हो गईं. रागों के अंग या चलन में भी थोड़ा-सा परिवर्तन किया गया. इससे होली गायन की एक नई शैली विकसित हुई और वह सहज आम जन की हो गई."
http://kakesh.com/2008/kumaoni-holi/
http://kakesh.com/2008/kumaoni-holi-part-2/
http://kakesh.com/2008/kumaoni-holi-3/
http://kakesh.com/2008/classical-holi-of-kumaon/
भूमिका: हिन्दी ब्लाग परिवार मे शामिल होने के बाद मैने अनगिनत चिठ्ठे पढे और इनमे प्रकाशित विचारो/लेखो/निबन्धो/कहानियो ने मेरे जीवन को बहुत प्रभावित किया। यह मेरा कर्तव्य है कि मै फिर इन खूबसूरत मोतियो को आपके सामने प्रस्तुत करुँ ताकि आप हिन्दी ब्लागरो के अविस्मरणीय योगदान को एक बार फिर से जान सके।
2 comments:
पंकज जी यह एक अच्छा काम है . लेकिन सभी ब्लॉग देखना सम्भव कहाँ हो पाता होगा फिर भी आपका प्रयास सराहनीय है .
आपका ब्लॉग चयन कमाल का है ...अलग अलग रंग के पसंदीदा पोस्ट्स को एक जगह पर इकठ्ठा कर रहे हैं आप ...वाह
नीरज
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