हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-9
- पंकज अवधिया
अरुण फूसगढी की कहानी
मई 3, 2008 को माननीय अजीत वडनेकर जी के ब्लाग “शब्दो के सफर” के माध्यम से “बकलमखुद” नामक प्रस्तुति मे माननीय अरुण अरोरा जी ने अपनी जीवन गाथा हम सबके सामने रखी जो एक धारावाहिक के रुप मे थी। इस जीवन गाथा से मैने उनके अथक संघर्ष को जाना। इस प्रस्तुति ने मुझे हौसला दिया कि किसी भी कठिन परिस्थिति मे हाथ-पैर ढीले कर बैठने से कुछ नही होगा। आज भी जब मै अवसादग्रस्त होता हूँ तो इस जीवन गाथा का आश्रय लेता हूँ।
इस प्रस्तुति मे वे लिखते है-
“तो बात रामपुर की हो रही थी सुंदर शहर ,और शहर वाले भी बहुत सुंदर दिल के. दुनिया मे भले ही रामपुरी चाकू मशहूर हो,पर रामपुर के लोग दिल मे उतर जाते है. यहा छह साल रहा इन छह सालो मे लगा मेरा घर यही है.इतना प्यार की समेटा ना जाये. जौली टी वी रामपुर मे मै एक ट्रेनी की तरह लगा था और जब छॊडी तब मै प्रबंधकों की गिनती मे आ चुका था. मालिको से प्यार मिला घर के बडे की तरह. जब मै वहां काम करता था तो दूसरो की तरह मै भी उन्हे कभी कभी गालियो से नवाजा करता था. दिन मे हम १२ से १६ घंटे काम करते थे ,लेकिन मै आज सोचता हूं ,आज मै जो कुछ हूं उन्ही की वजह से हूं. उन्होने काम करने की इतनी आदत डाल दी है कि मै छुट्टी वाले दिन भी घर मे नही रुक सकता.”
http://shabdavali.blogspot.com/2008/05/40.html
भूमिका: हिन्दी ब्लाग परिवार मे शामिल होने के बाद मैने अनगिनत चिठ्ठे पढे और इनमे प्रकाशित विचारो/लेखो/निबन्धो/कहानियो ने मेरे जीवन को बहुत प्रभावित किया। यह मेरा कर्तव्य है कि मै फिर इन खूबसूरत मोतियो को आपके सामने प्रस्तुत करुँ ताकि आप हिन्दी ब्लागरो के अविस्मरणीय योगदान को एक बार फिर से जान सके।
3 comments:
वह तो कालजयी है..हमारा छोटा भाई जो है.
बेशक बकलमखुद में शामिल अरुणजी की अनकही बहुत प्रेरक है। सलाम है उनके जीवट और सकारात्मक नज़रिये को। जिंदगी जीने का नाम है....
धन्यवाद बंधू ...वैसे इस लायक तो नहीं हु मैं
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