हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-8
- पंकज अवधिया
बाबूजी का मकान और मकान मे उनका फ्रेम
2 जनवरी, 2009 को माननीय रवीश कुमार जी के ब्लाग “कस्बा” मे माध्यम से की गयी यह प्रस्तुति मन को भारी कर देती है। एक पुत्र का कविता के माध्यम से अपने पिता को इस दर्द भरे अन्दाज मे याद करना, मैने शायद ही कही ऐसी बेहतरीन प्रस्तुति देखी होगी।
इस प्रस्तुति मे वे लिखते है-
“सिर्फ एक तस्वीर बन जायेंगे
एक ही कमीज़ में नज़र आयेंगे
वही चश्मा अब दिखेगा बार बार
सिर्फ सीध में ही देखते मिलेंगे
देखा तो लगा नहीं कि यही हैं
बाबूजी”
“दफ़्तर की इतनी गहमागहमी में भी अकेला हो जाता हूं। लगता है कि बाबूजी आ जाते तो सारी अधूरी बातें कह देता। एक बार छू लेता। अब कुछ भी हासिल नहीं लगता। पहले लगता था। इसलिए लगता था कि बाबूजी को बताता था। अब न इनाम में दिलचस्पी है न पदनाम में। लगता है कि दिन भर ढूंढता ही रह जाऊं बाबूजी को।“
http://naisadak.blogspot.com/2009/01/blog-post_02.html
भूमिका: हिन्दी ब्लाग परिवार मे शामिल होने के बाद मैने अनगिनत चिठ्ठे पढे और इनमे प्रकाशित विचारो/लेखो/निबन्धो/कहानियो ने मेरे जीवन को बहुत प्रभावित किया। यह मेरा कर्तव्य है कि मै फिर इन खूबसूरत मोतियो को आपके सामने प्रस्तुत करुँ ताकि आप हिन्दी ब्लागरो के अविस्मरणीय योगदान को एक बार फिर से जान सके।
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