Friday, July 24, 2009

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-13

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-13
- पंकज अवधिया

अटलाँटिक के उस पार : पहली बार अमेरिका


मार्च 19, 2008 को स्वप्नदर्शी जी के ब्लाग “स्वप्नदर्शी” के माध्यम से की गयी यह प्रस्तुति उनके संघर्ष और अथक परिश्रम की कहानी, उनकी अपनी जुबानी, कहती है। भारत मे संघर्ष कर रहे युवा शोधार्थीयो को इससे प्रेरणा मिल सकती है।

इस प्रस्तुति मे वे लिखती है-

“उत्तर-प्रदेश और बिहार के हायर-एजुकेशन कमीशन के इंटरव्यू के लिये भी पटना, इलाहाबाद की खाक छानी. उसके बाद और कई जगह इंटरव्यू दिये, और जिस तरह के वाहियात सवालो से सामना हुआ, उससे मन घ्रिणा से भर गया. एक भूतपूर्व कुलपति ने तो यहाँ तक कहा कि औरतो को रोजगार देने के मतलब एक पूरे परिवार की जीवीका पर लात मारने जैसा है, क्योंकि महिला घर नही चलाती. उसे नौकरी से सिर्फ जेब खर्च मिलता है. यारी दोस्ती मे एक सीनीयर वैग्यानिक ने यहा तक कहा कि महिलाओ को अगर वो खाते-पीते परिवार की है तो नौकरी नही करनी चाहिये। सिर्फ ऐसी ही हालात मे नौकरी करनी चाहिये, जब वो विधवा हो, भाई न हो और मा-बहन् का बोझ सर पर हो।

कुछ सलाह और चेतावनी ये भी मिली कि अमेरिका/युरोप गयी अविवाहित लड्कियो की शादी के बाज़ार मे कीमत कम हो जाती है, जबकि लडको की कीमत मे भारी इज़ाफा होता है। खैर ये सारी सलाहे मुझे पढे-लिखे लोगों से मिली, देश के कर्णधारो से, और उन लोगों से जो हमारी पीढी के एकादमिक भविष्य गढने का दम रखते है। “

http://swapandarshi.blogspot.com/2008/03/blog-post_19.html



भूमिका: हिन्दी ब्लाग परिवार मे शामिल होने के बाद मैने अनगिनत चिठ्ठे पढे और इनमे प्रकाशित विचारो/लेखो/निबन्धो/कहानियो ने मेरे जीवन को बहुत प्रभावित किया। यह मेरा कर्तव्य है कि मै फिर इन खूबसूरत मोतियो को आपके सामने प्रस्तुत करुँ ताकि आप हिन्दी ब्लागरो के अविस्मरणीय योगदान को एक बार फिर से जान सके।

Thursday, July 23, 2009

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-12

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-12
- पंकज अवधिया

26 दिसम्बर की वो सुबह


26 दिसम्बर, 2007 को ममता श्रीवास्तव जी के ब्लाग “ममता टीवी” के माध्यम से की गयी यह प्रस्तुति रोंगटे खडे कर देती है। ममता जी और उनका परिवार अंदमान मे आये भूकम्प और सुनामी के चश्मदीद गवाहो मे शामिल है।

इस प्रस्तुति मे वे लिखती है-

“हम लोग बात कर ही रहे थे कि तभी अचानक दूर से बड़ी ही तेजी से पानी आता दिखाई दिया तब हम लोगों कोें सामने थी जहाँ पानी ही पानी दिख रहा था। और उस पानी मे हमारे पतिदेव ने बिना रोके गाड़ी चलाई और जो १०० मीटर की दूरी सेकेंड्स मे पूरी होती थी उसे पार करने मे लग रहा था कि रास्ता ख़त्म ही नही हो रहा है। माने हमारी गाड़ी कछुए की रफ़्तार से चल रही थी । वो तो भगवान ने बचाया वरना अगर कहीं गाड़ी पानी मे रूक जाती तब तो .... ।“

http://mamtatv.blogspot.com/2007/12/2.html


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Wednesday, July 22, 2009

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-11

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-11
- पंकज अवधिया

कुमाँऊनी होली : अलग रंग, अलग ढंग


मार्च 13, 2008 को माननीय काकेश जी ने अपने ब्लाग “काकेश की कतरने” के माध्यम से कुमाँऊनी होली के अलग-अलग रंगो की बेहतरीन प्रस्तुति दी थी। उनकी यह प्रस्तुति एक धारावाहिक के रुप मे है। एक बार पढना शुरु करो तो रुकने का मन ही नही होता है। होली पर इतना रोचक लेख मैने शायद ही कभी पढा हो।

इस प्रस्तुति मे वे लिखते है-

"इसमें मूलत: पुरुष भाग लेते हैं लेकिन आजकल महिलायें भी इसमें शामिल होती हैं. यह होली रात में शुरु होती है और अक्सर सुबह दो-तीन बजे तक चलती रहती है.होली का राग धमार से आह्वान कर पहली होली राग श्याम कल्याण में गाई जाती है. समापन राग भैरवी पर होता है. बीच में समयानुसार अलग-अलग रागों में होलियां गाई जाती हैं. सभी तरह के राग और ताल इन होलियों में प्रयोग किये जाते हैं. जैसे राग काफी, जंगला, खम्माज, साहना,जैजैवंती, झिंझोटी, भैरवी में क्रमश: जैसे जैसे थकान बढ़ती है, गाये जाते हैं. भीम पलासी, कलावती, हमीर राग भी चलता है.दादरा,कहरवा ताल सभी में होलियां गायी जाती हैं.होली को लोकप्रिय बनाने के भी प्रयास हुए.इसे लोकप्रिय बनाने के लिए जानकारों ने होली की धमार और चांचर ताल में परिवर्तन किया. सो, 14 मात्रा की धमार और चांचर तालें 16 मात्रा की हो गईं. रागों के अंग या चलन में भी थोड़ा-सा परिवर्तन किया गया. इससे होली गायन की एक नई शैली विकसित हुई और वह सहज आम जन की हो गई."

http://kakesh.com/2008/kumaoni-holi/

http://kakesh.com/2008/kumaoni-holi-part-2/

http://kakesh.com/2008/kumaoni-holi-3/

http://kakesh.com/2008/classical-holi-of-kumaon/


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Thursday, July 16, 2009

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-10

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-10
- पंकज अवधिया

ओ पहाड, मेरे पहाड


नवम्बर 12, 2008 को घुघूती बासूती जी के ब्लाग “घुघूती बासूती” के माध्यम से प्रस्तुत की गयी यह कविता वास्तव मे उनके मन से उद्दाम वेग से निकली अभिव्यक्ति है। जो पहाडो मे जन्मा हो, वो भला पहाडो से दूर कैसे रह सकता है।

इस प्रस्तुति मे वे लिखती है-

ओ पहाड़, मेरे पहाड़,
बुला ले वापिस पहाड़
मन व्याकुल है पाने को
तेरी ठंडी बयार ।

स्वस्थ पवन का जोर जहाँ
घुघुती का मार्मिक गीत जहाँ
काफल पाक्यो त्यूल नईं चाख्यो
की होती गूँज जहाँ ।

हर पक्षी कितना अपना है
हर पेड़ जहाँ पर अपना है
कभी शान्त तो कभी चट्टानें
बहा लाने वाली तेरी नदियाँ ।

http://ghughutibasuti.blogspot.com/2008/11/blog-post_12.html

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Wednesday, July 15, 2009

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-9

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-9
- पंकज अवधिया


अरुण फूसगढी की कहानी

मई 3, 2008 को माननीय अजीत वडनेकर जी के ब्लाग “शब्दो के सफर” के माध्यम से “बकलमखुद” नामक प्रस्तुति मे माननीय अरुण अरोरा जी ने अपनी जीवन गाथा हम सबके सामने रखी जो एक धारावाहिक के रुप मे थी। इस जीवन गाथा से मैने उनके अथक संघर्ष को जाना। इस प्रस्तुति ने मुझे हौसला दिया कि किसी भी कठिन परिस्थिति मे हाथ-पैर ढीले कर बैठने से कुछ नही होगा। आज भी जब मै अवसादग्रस्त होता हूँ तो इस जीवन गाथा का आश्रय लेता हूँ।

इस प्रस्तुति मे वे लिखते है-

“तो बात रामपुर की हो रही थी सुंदर शहर ,और शहर वाले भी बहुत सुंदर दिल के. दुनिया मे भले ही रामपुरी चाकू मशहूर हो,पर रामपुर के लोग दिल मे उतर जाते है. यहा छह साल रहा इन छह सालो मे लगा मेरा घर यही है.इतना प्यार की समेटा ना जाये. जौली टी वी रामपुर मे मै एक ट्रेनी की तरह लगा था और जब छॊडी तब मै प्रबंधकों की गिनती मे आ चुका था. मालिको से प्यार मिला घर के बडे की तरह. जब मै वहां काम करता था तो दूसरो की तरह मै भी उन्हे कभी कभी गालियो से नवाजा करता था. दिन मे हम १२ से १६ घंटे काम करते थे ,लेकिन मै आज सोचता हूं ,आज मै जो कुछ हूं उन्ही की वजह से हूं. उन्होने काम करने की इतनी आदत डाल दी है कि मै छुट्टी वाले दिन भी घर मे नही रुक सकता.”

http://shabdavali.blogspot.com/2008/05/40.html

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हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-8

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-8
- पंकज अवधिया

बाबूजी का मकान और मकान मे उनका फ्रेम


2 जनवरी, 2009 को माननीय रवीश कुमार जी के ब्लाग “कस्बा” मे माध्यम से की गयी यह प्रस्तुति मन को भारी कर देती है। एक पुत्र का कविता के माध्यम से अपने पिता को इस दर्द भरे अन्दाज मे याद करना, मैने शायद ही कही ऐसी बेहतरीन प्रस्तुति देखी होगी।

इस प्रस्तुति मे वे लिखते है-

“सिर्फ एक तस्वीर बन जायेंगे
एक ही कमीज़ में नज़र आयेंगे
वही चश्मा अब दिखेगा बार बार
सिर्फ सीध में ही देखते मिलेंगे
देखा तो लगा नहीं कि यही हैं
बाबूजी”

“दफ़्तर की इतनी गहमागहमी में भी अकेला हो जाता हूं। लगता है कि बाबूजी आ जाते तो सारी अधूरी बातें कह देता। एक बार छू लेता। अब कुछ भी हासिल नहीं लगता। पहले लगता था। इसलिए लगता था कि बाबूजी को बताता था। अब न इनाम में दिलचस्पी है न पदनाम में। लगता है कि दिन भर ढूंढता ही रह जाऊं बाबूजी को।“


http://naisadak.blogspot.com/2009/01/blog-post_02.html

भूमिका: हिन्दी ब्लाग परिवार मे शामिल होने के बाद मैने अनगिनत चिठ्ठे पढे और इनमे प्रकाशित विचारो/लेखो/निबन्धो/कहानियो ने मेरे जीवन को बहुत प्रभावित किया। यह मेरा कर्तव्य है कि मै फिर इन खूबसूरत मोतियो को आपके सामने प्रस्तुत करुँ ताकि आप हिन्दी ब्लागरो के अविस्मरणीय योगदान को एक बार फिर से जान सके।

Tuesday, July 14, 2009

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-7

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-7
- पंकज अवधिया

जो सुकूं गाँव के मकान में है


21 सितम्बर, 2007 को माननीय नीरज गोस्वामी जी के ब्लाग “नीरज” के माध्यम से की गयी इस प्रस्तुति मे सहजता भी है और गहरायी भी। नीरज जी को मै लगातार पढता रहा हूँ। उनकी सभी बेहतरीन रचनाओ मे से एक को चुनना बडा ही मुश्किल काम है।

इस प्रस्तुति मे वे लिखते है-

वो ना महलों की ऊंची शान में है
जो सुकूं गांव के मकान में है

लूटा उसने ही सारी फसलों को
हमने समझा जिसे मचान में है

http://ngoswami.blogspot.com/2007/09/blog-post_21.html

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Sunday, July 12, 2009

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-6

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-6
- पंकज अवधिया

उफनती कोसी को देख शिवनाथ की यादे: संस्मरण


11 सितम्बर, 2008 को माननीय संजीव तिवारी जी के ब्लाग “आरम्भ” की इस प्रस्तुति मे शिवनाथ नदी की बाढ का बडे ही रोचक ढंग से वर्णन किया गया है। बाढ, इसमे फँसे जीव-जंतुओ की दशा, गाँव वालो का एका, सेना के जवानो का जबरदस्त साहस, स्वयम लेखक की हिम्मत- बाढ की विभीषिका का ऐसा वर्णन मैने पहले कभी नही पढा। संजीव जी लिखते है-

“हमारे साथ चले रहे एक सैनिक नें हमें बतलाया कि कल ऐसा ही एक छोटा चींटी का टीला बचाव दल के नाव से टकरा गया था जिससे करोडों चींटिंयां नाव में आ गई थी, सैनिकों की सहनशक्ति व बहादुरी के कारण नाव डूबते डूबते बची थी उस नाव में सवार पांचों सैनिकों को चीटियों नें जगह जगह काटा है उनका शरीर सूज गया है जिनका कैम्प में इलाज चल रहा है । उसने बतलाया था कि चीटिंयों के बहते ढेर से टकराने के कारण ढेर तुकडों में बंट गया और एक हिस्सा उछलकर नाव में सैनिकों के उपर ही गिरा था, सैनिकों नें अपने आप को संयत रखते हुए शरीर में हलचल नहीं होने दिया जिसके कारण चीटिंया नाव में एक जगह इकत्र हो गई बाद में फावडे से उन्हें पानी में फेंका गया।“

http://aarambha.blogspot.com/2008/09/blog-post.html

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Saturday, July 11, 2009

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-5

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-5
- पंकज अवधिया


कजरारी आँखे

14 अक्टूबर, 2007 को दुबई की ब्लागर मीनाक्षी जी के ब्लाग “प्रेम ही सत्य है” के माध्यम से की गयी यह प्रस्तुति कम शब्दो मे सब कुछ कह जाती है। इस प्रस्तुति के साथ संलग्न चित्र ने सोने मे सुहागा का काम किया है।

इस प्रस्तुति मे वे लिखती है-

बहुत कुछ कह जाती है कजरारी आँखे
काले बुरके से झाँकती सपनीली आँखे

कभी रेगिस्तान की वीरानगी सी छाती
कभी उन आँखो मे गहरी खामोशी होती


http://meenakshi-meenu.blogspot.com/2007/10/blog-post_14.html


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हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-4

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-4
- पंकज अवधिया

क्या आप मस्तिष्क की चोटों पर वेब साइट बनाने में भागीदारी करेंगे?

19 मार्च, 2007 को माननीय ज्ञानदत्त पांडेय जी के मानसिक हलचल ब्लाग की यह प्रस्तुति एक भारी मानसिक पीडा झेल रहे पिता की प्रस्तुति है जो सक्षम होने के बाद भी अपने पुत्र के लिये ज्यादा कुछ नही कर पा रहा है। ज्ञान जी ऊपर से जितने खुश दिखे पर भीतर से वे शांत नही है। पूरा हिन्दी ब्लाग परिवार सदा ही उनके साथ है। इसी ब्लाग परिवार के साथ इस प्रस्तुति के माध्यम से वे अपना दर्द बाँटते है और सहयोग की अपील करते है।

इस प्रस्तुति मे वे लिखते है-

“मैं ब्रेन-इन्जरी के एक भीषण मामले का सीधा गवाह रहा हूं. मेरा परिवार उस दुर्घटना की त्रासदी सन २००० से झेलता आ रहा है.”

“बहुत समय से मस्तिष्क की चोटों के मामलों पर इन्टर्नेट पर सामग्री उपलब्ध कराने का विचार मेरे मन में है. सिर में चोट लगने को भारत में वह गंभीरता नहीं दी जाती जो दी जानी चाहिये. कई मामलों में तो इसे पागलपन और ओझाई का मामला भी मान लिया जाता है. चिकित्सा क्षेत्र में भी सही सलाह नहीं मिलती. निमहन्स (National Institute of Mental Health and Neurosciences, Bangalore) में एक केस में तो मैने पाया था कि बिहार के एक सज्जन बहुत समय तक तो आंख का इलाज करा रहे थे और नेत्र-चिकित्सक ने यह सलाह ही नहीं दी कि मामला ब्रेन इन्जरी का हो सकता है. जब वे निमहन्स पंहुचे थे तो केस काफी बिगड़ चुका था...”

http://halchal.gyandutt.com/2007/03/blog-post_19.html


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Friday, July 10, 2009

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-3

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-3
- पंकज अवधिया

दम बनी रहे, घर चूता है तो चूने दो


13 जनवरी, 2008 को हिन्दिनी ब्लाग पर माननीय अनूप शुक्ल जी यानि फुरसतिया जी की यह प्रस्तुति पूरे हिन्दी ब्लाग परिवार को शोकाकुल कर गयी। पूरा ब्लाग परिवार उनके साथ खडा हो गया। आज इतने महिनो के बाद भी जब मै इस प्रस्तुति को पढता हूँ तो रो पडता हूँ। सबको ऐसा प्रेम करने वाले भाई और ऐसा परिवार मिले। अनूप जी लिखते है-

“भाई जब बचपन में घर से गये थे तो उसका अंदेशा मुझे हो गया था। मैं साथ-साथ भागता चला गया था और सारे रास्ते पिटते रहने के बावजूद अपने भाई को वापस लेकर लौटा था।

इस बार ऐसा हुआ कि भाई दुनिया से चला गया बिना किसी सूचना के। हमें मौका भी न मिला कि हम पीछा करते हुये उसको पकड़कर वापस ले आते। सिर्फ़ समय के हाथ पिट रहे हैं। समय शायद को पता है कि हमारे पीटने के लिये उठने वाले किसी भी हाथ को तोड़ देने वाला भाई चला गया है।

हम पिट रहे हैं लेकिन हमें अपने भाई की आवाज साफ़ सुनाई दे रही है - दम बनी रहे , घर चूता है तो चूने दो।“

http://hindini.com/fursatiya/?p=384



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हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-2

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-2
- पंकज अवधिया

आज तुमने फिर बहुत सुन्दर लिखा है!!


24 सितम्बर, 2007 को माननीय समीर लाल जी के उडन तश्तरी नामक ब्लाग पर की गयी यह प्रस्तुति आँखो को नम कर देती है, विशेषकर इस प्रस्तुति का वह भाग जिसमे उन्होने कनाडा से लौटते अपने पिताजी के विषय मे भरे मन से लिखा है। परदेस मे बसे व्यथित ह्र्दय की यह अभिव्यक्ति कभी भी नही भुलायी जा सकती है।

“अभी कुछ घंटे पहले ही उन्हें हवाई जहाज पर बैठा कर लौटे हैं. घर तो जैसे पूरा खाली खाली लग रहा है. दादा जी के जाने से तीनों चिड़िया भी उदास है, जो शाम को उनको अपनी चीं चीं से हैरान कर डालती थीं, आज वो भी चीं चीं नहीं कर रहीं. पत्नी चुपचाप अनमनी सी बैठी टीवी देख रही है, जैसे अब उसके पास कोई काम करने को ही नहीं बचा. “


http://udantashtari.blogspot.com/2007/09/blog-post_24.html



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Thursday, July 9, 2009

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-1

हिन्दी ब्लाग जगत की वे बेहतरीन रचनाएँ जिन्होने मुझे प्रभावित किया-1
- पंकज अवधिया


स्वर्ग, जहाँ आदमी बसता है

17 जुलाई, 2007 को आदरणीय रवि रतलामी के रचनाकार ब्लाग के माध्यम से मैने श्री सोमेश शेखर चन्द्र जी की यह रचना पढी। एक बार पढना शुरु किया तो रुकते ही नही बना। काश, मै भी इस जीवन मे इस ढंग से लिख पाता। आप इस कडी पर जाकर इस यात्रा वृत्तांत को पढ सकते है।

http://rachanakar.blogspot.com/2007/07/blog-post_16.html



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और कितनी बार मुझे आई.सी.यू. मे भेजा जायेगा?????

और कितनी बार मुझे आई.सी.यू. मे भेजा जायेगा????? -पंकज अवधिया


जुलाई का महिना आया नही कि फिर इस वेबसाइट मे अमेरिका मे इसी माह आयोजित एक कार्यशाला के आमंत्रित अतिथियो मे मेरा नाम दिखने लगा। पिछले साल भी ऐसा ही हुआ था। वेबसाइट पर नाम तो दिखा पर आखिर तक निमंत्रण पत्र नही आया। कार्यशाला के समाप्त होने के बाद कनाडा से एक वैज्ञानिक का फोन आया कि हम तो आपसे मिलने ही इस कार्यशाला मे गये थे पर आप तो आये ही नही। फिर बाद मे ऐसी ही और शिकायते आयी। इस बार भी नाम वेबसाइट मे दिख रहा है और निमंत्रण पत्र का अता-पता नही है।

पिछले साल मेरठ से एक प्रोफेसर का फोन आया कि आपको फलाँ तारीख को मेरठ आना है और शोध-व्याख्यान देना है। तारीख अगले हफ्ते की थी। इतनी अल्प अवधि मे जाना सम्भव नही था। मैने उनसे कहा कि मै तो नही आ पाऊँगा तो वे बिफर पडे और बोले कि आप आ रहे है, ऐसा हमने फंडिंग के लिये जो प्रस्ताव भेजा था, उसमे उल्लेख किया था। अब आप नही आयेंगे तो हमारी बडी फजीहत होगी। मैने कहा कि एक बार मुझसे पूछ तो लेना था। उनका कोई जवाब नही आया। बाद मे पता चला कि मेरे नाम से बडी संख्या मे वनौषधीयो की खेती कर रहे किसानो को बुला लिया गया था। जब उन्होने शोर मचाया तो कह दिया कि मै आई.सी.यू. मे हूँ और खून की उल्टियाँ हो रही है।

पश्चिम बंगाल के मोहनपुर मे आयोजित एक विज्ञान सम्मेलन मे यह प्रचारित किया गया कि मै दिन भर का व्याख्यान दूंगा। मुझे इसकी खबर भुवनेश्वर से एक वैज्ञानिक प्रतिभागी से मिली। मुझे इस सम्मेलन के बारे मे पता ही नही था। मैने वहाँ का फोन घुमाया और कहा कि पंकज अवधिया आयेंगे क्या? तो उधर से आवाज आयी, बिल्कुल आयेंगे। दिन भर रहेंगे। जैसे ही मैने कहा कि मै पंकज अवधिया ही बोल रहा हूँ तो फोन काट दिया गया। सम्मेलन के कुछ घंटो पहले फिर फोन आया कि आप आमन्त्रित है। निश्चित ही मुझे फिर आई.सी.यू. मे भेज दिया गया होगा।

तो अब जब भी आप सुने कि मै आई.सी.यू. मे हूँ तो समझियेगा कि मै सकुशल हूँ। :)