निर्मली है तुम्हारे पास
फिर भी कहते हो दूषित है पानी
असगन्ध है तुम्हारे पास
फिर भी कहते हो खो रही है जवानी
नीम जैसी दातून है
तो दाँत के लिये क्यो महंगे चक्कर मारे
अरे रोग से लडने मे उपयोगी पौधा
चिरचिटा उग रहा घर के पिछवाडे
ग्वारपाठा के होते क्यो ब्यूटी पार्लर के
चक्कर मारे घर की रानी
निर्मली है तुम्हारे पास
फिर भी कहते हो दूषित है पानी
असगन्ध है तुम्हारे पास
फिर भी कहते हो खो रही है जवानी
तुलसी है तो फिर मच्छरो से क्यो
डरते हो
ग़ुडमार है तो मधुमेह की चिंता क्यो
करते हो
भेंगरा है तो फिर जवान सिर मे बालो के बिना
क्यो है वीरानी
निर्मली है तुम्हारे पास
फिर भी कहते हो दूषित है पानी
असगन्ध है तुम्हारे पास
फिर भी कहते हो खो रही है जवानी
अरे घर से बाहर निकलो
और चलो जंगल की ओर
प्रकृति माँ करेगी स्वागत
हो कर भाव-विभोर
माँ है तो बच्चो को
भला कैसी परेशानी
निर्मली है तुम्हारे पास
फिर भी कहते हो दूषित है पानी
असगन्ध है तुम्हारे पास
फिर भी कहते हो खो रही है जवानी
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित
3 comments:
भाई, एक एक करके जड़ी बूटी इलाज समझाओ तो समझें...कविता से भूमिका ही बंध पाती है, अपनायें कैसे??
पंकज भाई, नमस्कार
आचार्य समीरानंद जी नवम्बर में रायपुर आ रहे हैं, उन्हें अपनी किताबें भेंट कर दीजियेगा, तब उन्हें आपकी कविताओं में और भी आंनंद आयेगा ।
धन्यवाद सुन्दर सहज कविता के लिए
बहुत बढ़िया तरीके से आपने कविता के माध्यम से ही जड़ी बूटियों का उपयोग समझा दिया है!
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