Thursday, September 20, 2007

फिर भी कहते हो खो रही है जवानी

निर्मली है तुम्हारे पास

फिर भी कहते हो दूषित है पानी

असगन्ध है तुम्हारे पास

फिर भी कहते हो खो रही है जवानी


नीम जैसी दातून है

तो दाँत के लिये क्यो महंगे चक्कर मारे

अरे रोग से लडने मे उपयोगी पौधा

चिरचिटा उग रहा घर के पिछवाडे


ग्वारपाठा के होते क्यो ब्यूटी पार्लर के

चक्कर मारे घर की रानी

निर्मली है तुम्हारे पास

फिर भी कहते हो दूषित है पानी

असगन्ध है तुम्हारे पास

फिर भी कहते हो खो रही है जवानी


तुलसी है तो फिर मच्छरो से क्यो

डरते हो

ग़ुडमार है तो मधुमेह की चिंता क्यो

करते हो


भेंगरा है तो फिर जवान सिर मे बालो के बिना

क्यो है वीरानी

निर्मली है तुम्हारे पास

फिर भी कहते हो दूषित है पानी

असगन्ध है तुम्हारे पास

फिर भी कहते हो खो रही है जवानी


अरे घर से बाहर निकलो

और चलो जंगल की ओर

प्रकृति माँ करेगी स्वागत

हो कर भाव-विभोर


माँ है तो बच्चो को

भला कैसी परेशानी

निर्मली है तुम्हारे पास

फिर भी कहते हो दूषित है पानी

असगन्ध है तुम्हारे पास

फिर भी कहते हो खो रही है जवानी

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित

3 comments:

Udan Tashtari said...

भाई, एक एक करके जड़ी बूटी इलाज समझाओ तो समझें...कविता से भूमिका ही बंध पाती है, अपनायें कैसे??

36solutions said...

पंकज भाई, नमस्‍कार

आचार्य समीरानंद जी नवम्‍बर में रायपुर आ रहे हैं, उन्‍हें अपनी किताबें भेंट कर दीजियेगा, तब उन्‍हें आपकी कविताओं में और भी आंनंद आयेगा ।

धन्‍यवाद सुन्‍दर सहज कविता के लिए

Sanjeet Tripathi said...

बहुत बढ़िया तरीके से आपने कविता के माध्यम से ही जड़ी बूटियों का उपयोग समझा दिया है!