Tuesday, September 11, 2007

हर बार खुशहाली की जगह बदहाली ले आते हो

ओ देश के योजनाकारो! कैसी-कैसी योजनाए
बनाते हो
हर बार खुशहाली की जगह बदहाली
ले आते हो

गेहूँ के साथ एलर्जी वाली
गाजर घास आई
जल, जंगल और जमीन सभी जगह
उसने तबाही मचाई

अब उसके नियंत्रण के नाम पर
व्यर्थ पैसे बहाते हो
ओ देश के योजनाकारो! कैसी-कैसी योजनाए
बनाते हो
हर बार खुशहाली की जगह बदहाली
ले आते हो

नीम, पीपल और बबूल हटाकर
पापलर और यूकिलिप्टस लगवाया
भू-जल स्तर कम कर इन्होने
अपना जलवा दिखाया

अब एक और विदेशी पौधा रतनजोत
दिखाते हो
ओ देश के योजनाकारो! कैसी-कैसी योजनाए
बनाते हो
हर बार खुशहाली की जगह बदहाली
ले आते हो

हरी खाद के लिये
बेशरम के पौधे लगवाये
बाड के नाम पर लेंटाना
गडवाये

सबकी नाक मे दम कर
क्यो इतराते हो
ओ देश के योजनाकारो! कैसी-कैसी योजनाए
बनाते हो
हर बार खुशहाली की जगह बदहाली
ले आते हो

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित

4 comments:

हरिमोहन सिंह said...

ओ देश के योजाकारो कैसी योजना बनाते हो , अब प्रधानमत्री के पद पर सीधे विदेशी को ही बुलाते हो ।

Udan Tashtari said...

हर बार खुशहाली की जगह बदहाली
ले आते हो

शास्वत सी बात हो ली यह तो-सब ने इसे होनी मान लिया है.ऐसा लगता है.

Gyan Dutt Pandey said...

आपके लेखन से क्या गलत सोच हो रही है, पता चलता है. पर यह भी बतायें कि समाधान क्या हैं - अन्न उत्पादन के या/और ऊर्जा उत्पादन के!
इन विषयों पर कंफ्यूजन बढ़ता जा रहा है.

Sanjeet Tripathi said...

सही!!