Thursday, September 20, 2007

अब और बढना छोड दो

खूब करो प्रगति

पर अति करना छोड दो

दूसरो को भी जगह दो इस धरा मे

अब और बढना छोड दो


किसी जंगल मे जानवर नही मिले

पर आदमी जरूर मिलता है

उसके तानाशाही रवैये से सारा

प्राकृतिक तंत्र हिलता है


प्रकृति मे आदमी ही नही सर्वेसर्वा

इसीलिये अब अकडना छोड दो

खूब करो प्रगति

पर अति करना छोड दो

दूसरो को भी जगह दो इस धरा मे

अब और बढना छोड दो


हाथियो के जंगल मे घुस जाता है

फिर उन्ही से खतरा बताता है

चन्द पैसो के लिये शेर जैसे प्राणियो को

मारता जाता है


अपना और अपनो के प्राण बचाना है तो

दूसरो का जीवन हरना छोड दो

खूब करो प्रगति

पर अति करना छोड दो

दूसरो को भी जगह दो इस धरा मे

अब और बढना छोड दो

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित

2 comments:

Sanjeet Tripathi said...

सही लिखा है आपने!!

दूसरों की जगह हड़पने की हमारी प्रवृति हमारे खुद के लिए कितनी घातक होगी यह हम नही सोच पाते!!

mamta said...

बहुत सही।पर आजकल तो अति को ही प्रगति मानते है।