खूब करो प्रगति
पर अति करना छोड दो
दूसरो को भी जगह दो इस धरा मे
अब और बढना छोड दो
किसी जंगल मे जानवर नही मिले
पर आदमी जरूर मिलता है
उसके तानाशाही रवैये से सारा
प्राकृतिक तंत्र हिलता है
प्रकृति मे आदमी ही नही सर्वेसर्वा
इसीलिये अब अकडना छोड दो
खूब करो प्रगति
पर अति करना छोड दो
दूसरो को भी जगह दो इस धरा मे
अब और बढना छोड दो
हाथियो के जंगल मे घुस जाता है
फिर उन्ही से खतरा बताता है
चन्द पैसो के लिये शेर जैसे प्राणियो को
मारता जाता है
अपना और अपनो के प्राण बचाना है तो
दूसरो का जीवन हरना छोड दो
खूब करो प्रगति
पर अति करना छोड दो
दूसरो को भी जगह दो इस धरा मे
अब और बढना छोड दो
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित
2 comments:
सही लिखा है आपने!!
दूसरों की जगह हड़पने की हमारी प्रवृति हमारे खुद के लिए कितनी घातक होगी यह हम नही सोच पाते!!
बहुत सही।पर आजकल तो अति को ही प्रगति मानते है।
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