हिन्दी चिठ्ठाजगत का
भविष्य सुनहरा है
अपार सम्भावनाओ से
भरा है
चलो इसे सदा के लिये
उपयोगी बनाए
चिठ्ठाजगत के स्पामर्स को
बाहर का रास्ता दिखाए
चिठ्ठाकार से बडी है हिन्दी
यह समझना होगा
’स्व’ से अधिक इसके लिये
सोचना होगा
सारी दुनिया हिन्दी चिठ्ठाकारो से है
उम्मीद लगाये
चलो इसे सदा के लिये
उपयोगी बनाए
चिठ्ठाजगत के स्पामर्स को
बाहर का रास्ता दिखाए
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र
मे पिरो सकती है
पर कथनी और करनी मे भेद?
ये भावना पवित्र उद्देश्यो को
डुबो सकती है
अरबो के इस देश मे दूसरो को भी
मौका दे और दिलवाए
चलो इसे सदा के लिये
उपयोगी बनाए
चिठ्ठाजगत के स्पामर्स को
बाहर का रास्ता दिखाए
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित
7 comments:
आपकी कविता मे ढेर सारा दर्द झलकता है। लेकिन आप इशारों ही इशारों मे किसकी तरफ़ अंगुली उठा रहे है?
saaf pataa lag rahaa hae jeetu bhai jo yae keh rahen haen
yae bina naam liyae shaleenta dikha rahen haen kuch log to naam kae saath dusro ka naam ushal rahen haen
धन्यवाद पंकज भईया, अब वो स्पाम कुछ भी हो सकता है मेरी समझ में स्पामर्स एक विरोधी भावना है, इसे अवश्य बाहर करना चाहिए ।
बधाई !
“आरंभ” संजीव का हिन्दी चिट्ठा
अच्छा!
आपकी टिप्पणियो के लिये आभार। तीस से ज्यादा ई-मेल भी मिले है। यह विडम्बना ही है कि मेल भेजने वाले कह रहे है कि ये कविता सीधे उन पर लिखी गई है। किसी को कोई पंक्ति पर शक है तो किसी को दूसरी। टिप्पणियो से भी कुछ कुछ ऐसा ही आभास हो रहा है। जबकि यह कविता सामान्य तौर पर लिखी गई है। जितने लोगो को शक है उतनी तो पंक्तियाँ ही नही है इस कविता मे।
आशा है इसे व्यापक स्तर पर देखा जायेगा न कि व्यक्तिगत स्तर पर।
न भाई हम तो नहीं कहेंगे कि आपने यह बहुमूल्य रचना मेरे उपर लिखी है…।
सुंदर काम!!!
हम तो ना जाईब, का करिहै!!
बढ़िया लिखा है पंकज जी, बधाई!!
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