Saturday, August 11, 2007

फिर हम कैसे है आजाद?

अमीर और अमीर हो रहे
गरीब और गरीब
फिर कैसे हुये
हम खुशहाली के करीब

हर गरीब के चेहरे पर है गहरा विषाद
फिर हम कैसे है आजाद?

घोटाले पर
घोटाले
अब नही बचे है इन पर
चर्चा भी करने वाले

अनसुनी है आम भारतीयो की
फरियाद
फिर हम कैसे है आजाद?

भर रहे शहर
गाँव हो है वीरान
बेमौत मर रहे है
हमारे अपने किसान

तिस पर
नेता करे राष्ट्रपति चुनने पर ही विवाद
फिर हम कैसे है आजाद?

कट रहे सदियो पुराने
जंगल
एक ही बार मे सब पाने
मच रहा है दंगल

निज स्वार्थ कर रहा है
पीढीयो को बरबाद
फिर हम कैसे है आजाद?

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित

4 comments:

Udan Tashtari said...

बस ऐसे ही हैं आजाद!!!

आपके विचारों को और बुलंदी से हम सबको उठाने की आवश्यकता है.

बधाई.

ghughutibasuti said...

इस ही को तो आजादी कहते हैं , अपने देश को खुद लूटने की आजादी, अपनी जनता को खुद दबाने की आजादी आदि आदि ।
घुघूती बासूती

सुनीता शानू said...

सही है हमारा स्वार्थ ही है जो हमे बर्बाद कर रहा है घोटाले पर घोटाले,नरसहांर,राजनैतिक बवाल,
महामारी की तरह फ़ैलता अवैध क्रिया-कलापो का सिलसिला कहाँ है हम आजाद...

सुनीता(शानू)

36solutions said...

वाह भईया बाबा नागार्जुन को याद दिला दिये उनकी एक कविता लगभग बीस वर्ष पूर्व मैने पढी थी आज भी मुखडा याद है 'किसका है जनवरी किसका अगस्‍त है कौन यहां सुखी है कौन यहां मस्‍त है'

धन्‍यवाद आपके व्‍यस्‍ततम समय में से सक्रिय रूप से हिन्‍दी के लिए समय देने के लिए

“आरंभ” संजीव का हिन्‍दी चिट्ठा