Friday, August 24, 2007

बहुत गिना ली समस्याए हमने

बहुत गिना ली समस्याए हमने
चलो अब उन्हे सुलझाने की भी सोचे
खुद सुधरे समाज को सुधारे और
नयी समस्याओ को जन्मने से रोके

कहने को तो सम्वाद के माध्यम बढ गये
फिर हम क्यो अपनो से दूर हो रहे
पास-पास रह कर भी
अपनी-अपनी दुनिया बना, खो रहे

नही सम्भाल पायेंगे सबको
यूँ अकेले हो के
बहुत गिना ली समस्याए हमने
चलो अब उन्हे सुलझाने की भी सोचे
खुद सुधरे समाज को सुधारे और
नयी समस्याओ को जन्मने से रोके

किसानो की आत्महत्या से आरम्भ करे
फिर भ्रष्टाचार पर कसे नकेल
गाजर घास को भी न छोडे
हिंसा प्रेमियो को गर्त मे दे ढकेल

तब तक चिडिया न चुग जाये खेत
जब तक हम जागे सो के
बहुत गिना ली समस्याए हमने
चलो अब उन्हे सुलझाने की भी सोचे
खुद सुधरे समाज को सुधारे और
नयी समस्याओ को जन्मने से रोके

बन्द करे केवल कोसना और फिर कोसना
बार-बार कोसना
अरे समस्याओ का हल हमे ही
है खोजना

गुटबाजी से नही है, सुझाये समाधान
मन मे सच्ची भारतीयता के बीज बो के
बहुत गिना ली समस्याए हमने
चलो अब उन्हे सुलझाने की भी सोचे
खुद सुधरे समाज को सुधारे और
नयी समस्याओ को जन्मने से रोके

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

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Tuesday, August 14, 2007

खूब मनाओ जश्न आजादी का पर

खूब मनाओ जश्न आजादी का
पर देख लो कोई छूटा तो नही है
आजादी के इतने बरसो बाद भी
कोई रूठा तो नही है

यह जश्न
हम सबका है
चाहे छोटा या बडा
तबका है

अपना मन खुशियो से भर लो पर देख लो
किसी का सपना टूटा तो नही है
खूब मनाओ जश्न आजादी का
पर देख लो कोई छूटा तो नही है

खूब फहराओ झंडे
खूब खावो मिठाई
दो मोबाइल पर
बधाई ही बधाई

पर पास की झोपडियो मे जाकर देख लो
कोई भूखा तो नही है
खूब मनाओ जश्न आजादी का
पर देख लो कोई छूटा तो नही है

इस बार एक और आजादी
पा लो
कह दो अलविदा
निज स्वार्थ को

नसीहते खूब दो पर देख लो
कन्ही अपना मन ही तो झूठा नही है
खूब मनाओ जश्न आजादी का
पर देख लो कोई छूटा तो नही है

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

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Saturday, August 11, 2007

फिर हम कैसे है आजाद?

अमीर और अमीर हो रहे
गरीब और गरीब
फिर कैसे हुये
हम खुशहाली के करीब

हर गरीब के चेहरे पर है गहरा विषाद
फिर हम कैसे है आजाद?

घोटाले पर
घोटाले
अब नही बचे है इन पर
चर्चा भी करने वाले

अनसुनी है आम भारतीयो की
फरियाद
फिर हम कैसे है आजाद?

भर रहे शहर
गाँव हो है वीरान
बेमौत मर रहे है
हमारे अपने किसान

तिस पर
नेता करे राष्ट्रपति चुनने पर ही विवाद
फिर हम कैसे है आजाद?

कट रहे सदियो पुराने
जंगल
एक ही बार मे सब पाने
मच रहा है दंगल

निज स्वार्थ कर रहा है
पीढीयो को बरबाद
फिर हम कैसे है आजाद?

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

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Sunday, August 5, 2007

हिन्दुस्तान तो बन जाये पहले

[सन्दर्भ : अनुगूँज 22: हिन्दुस्तान अमरीका बन जाए तो कैसा होगा]

Akshargram Anugunj

इसे कुछ भी बनाने की
कह ले
पर हिन्दुस्तान हिन्दुस्तान तो
बन जाये पहले

जिस आदर्श देश का सपना
संजोया था
खुशहाली का जो बीज
बोया था

वह तो जरा फूले और फले
इसे कुछ भी बनाने की
कह ले
पर हिन्दुस्तान हिन्दुस्तान तो
बन जाये पहले

शाँति का पैगाम तो दुनिया को
दिया
पर अपने लिये उसने कुछ न
किया

कब आयेगा वो दिन जब देश
धमाको से न दहले
इसे कुछ भी बनाने की
कह ले
पर हिन्दुस्तान हिन्दुस्तान तो
बन जाये पहले

इसके लाल इसे छोड
परदेश जा बस रहे
ऐसे उजडते परिवार की व्यथा
क्या कहे

टूट रहे स्वप्न रूपहले
इसे कुछ भी बनाने की
कह ले
पर हिन्दुस्तान हिन्दुस्तान तो
बन जाये पहले

किसानो की आत्महत्या
भ्रष्टो के वारे-न्यारे
कौन उखाडेगा समाज के खरपतवार
सारे

ठहरे जरा मैली गंगा कुछ साफ
हो कर बह ले
इसे कुछ भी बनाने की कह ले
पर हिन्दुस्तान हिन्दुस्तान तो
बन जाये पहले

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’


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,

हिन्दी चिठ्ठाजगत के स्पामर्स

हिन्दी चिठ्ठाजगत का
भविष्य सुनहरा है
अपार सम्भावनाओ से
भरा है

चलो इसे सदा के लिये
उपयोगी बनाए
चिठ्ठाजगत के स्पामर्स को
बाहर का रास्ता दिखाए

चिठ्ठाकार से बडी है हिन्दी
यह समझना होगा
’स्व’ से अधिक इसके लिये
सोचना होगा

सारी दुनिया हिन्दी चिठ्ठाकारो से है
उम्मीद लगाये
चलो इसे सदा के लिये
उपयोगी बनाए
चिठ्ठाजगत के स्पामर्स को
बाहर का रास्ता दिखाए

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र
मे पिरो सकती है
पर कथनी और करनी मे भेद?
ये भावना पवित्र उद्देश्यो को
डुबो सकती है

अरबो के इस देश मे दूसरो को भी
मौका दे और दिलवाए
चलो इसे सदा के लिये
उपयोगी बनाए
चिठ्ठाजगत के स्पामर्स को
बाहर का रास्ता दिखाए

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
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Thursday, August 2, 2007

चलो अब किसान दशक मनाए

बहुत मना लिये विशेष दिवस और माह
चलो अब किसान दशक मनाए
भारतीय कृषि को
उच्चतम सोपान तक पहुँचाए

भले ही अब तक विकास किसानो का
विनाश करता रहा
और किसानो के हिस्से के सुख से
अमीरो के घर भरता रहा

पर अब अंतिम गाँव तक
सही विकास की गंगा बहाए
बहुत मना लिये विशेष दिवस और माह
चलो अब किसान दशक मनाए
भारतीय कृषि को
उच्चतम सोपान तक पहुँचाए

विदेशो की तकनीक को धता बता
स्वदेशी तकनीक से हो खेती
किसानो से भी हम सीखे
इसमे ही भलाई दिखाई देती

किसानी भाषा को शोध की भाषा बनाए
बहुत मना लिये विशेष दिवस और माह
चलो अब किसान दशक मनाए
भारतीय कृषि को
उच्चतम सोपान तक पहुँचाए

घाटे का सौदा समझी जाने वाली
खेती अब उन्नत बने
ताकि नयी पीढी का इसी मे
मन लगे

फिर सदियो तक कोई किसान आत्महत्या की
सोच भी ना पाए
बहुत मना लिये विशेष दिवस और माह
चलो अब किसान दशक मनाए
भारतीय कृषि को
उच्चतम सोपान तक पहुँचाए

पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित