एक बार किसानो पर लिख कर
उन्हे भूल गये
जाने कितने किसान अब तक
कर्ज के फन्दे मे झूल गये
अब बस भी करो चन्द पंक्तियाँ लिखकर
कर्तव्यो की इतिश्री करना
अन्नदाता का मरना है
एक देश का मरना
सो रहा सत्तापक्ष और इस देश का
विपक्ष भी
हर समस्या मे दिखती उन्हे
राजनीति ही
देश के व्यापारी अब
कर रहे है खेती
आम लोग का पेट नही
बस अपनी गाडी दिखायी देती
मेरे देश की धरती
सोना उगले
और मुठ्ठी भर लोग
इसे निगले
अरबो के बंगले मे रहने की खबरे
छपवाने वालो
या हेलीकाप्टर पर जनता का पैसा
बहाने वालो
या बात-बात पर एसएमएस
करने वालो
कुछ तो दिल अपना
खोलो
राजा चौपट भये
जाने कितने किसान अब तक
कर्ज के फन्दे मे झूल गये
एक बार किसानो पर लिख कर
उन्हे भूल गये
जाने कितने किसान अब तक
कर्ज के फन्दे मे झूल गये
पंकज अवधिया ‘दर्द हिन्दुस्तानी’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
आप आये इसके लिये आभार। कृपया टिप्पणी न करे। यदि किसानो के प्रति कुछ करना चाहते है तो राजनेताओ और योजनाकारो पर दबाव बनाये, दलगत राजनीति से उठकर क्योकि अन्नदाता किसी दल विशेष के लिये अन्न नही उपजाते और रोटी की कोई पार्टी नही होती। अब समय आ गया है कि पीढीयो के कर्ज को उतारकर किसानो को कर्ज से मुक्ति दिलाने का।
क्या आप किसी ऐसी संस्था को जानते है जो दानदाताओ और किसानो के बीच सेतु बन सके। बहुत से लोग है जो किसानो को सीधे मदद करना चाहते है पर कैसे उन तक पहुँचे यह नही समझ पाते है? क्या सरकार किसानो को दी जाने वाली सीधी मदद को टैक्स फ्री करेगी या कुछ रियायत देगी? क्या किसानो की सूची, उन पर कर्ज और उनके पते का ब्यौरा कही से मिल सकेगा?
1 comment:
भाई पंकज अवधिया जी,
जबरिया टिप्पणी कर रहा हूं, क्षमा करेंगे।
आपकी कविता पूरी की पूरी हकीकत बयां कर देती है। कोटिश: धन्यवाद।
जो खुद अन्नदाता है, उसे कोई दान क्या दे सकता है। फिर यह समस्या का स्थायी निदान भी नहीं। किसानों को उनकी उपज का वाजिब मूल्य मिल जाये तो उन्हें कुछ भी नहीं चाहिये।
आज का स्वार्थलोलुप मीडिया तो किसानों के प्रति संवेदशून्य हो चुका है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के तथाकथित पहरुओं की संवेदना वहीं जगती है, जहां उन्हें कोई स्वार्थ दिखता है। ऐसे समय में आप जैसे लोग किसानों के प्रति इतनी हमदर्दी रखते हैं, उनके लिये कुछ करना चाहते हैं, यह कम नहीं है।
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