Saturday, January 5, 2008

कही फूट न पैदा कर दे यह पुरुस्कार

कही फूट न पैदा कर दे यह पुरुस्कार

कही फूट न पैदा कर दे

किसी एक को मिलने वाला पुरुस्कार

इस छोटे से ब्लाग जगत मे तो

हर कोई है इसका हकदार


सभी ओर है राजनीति

बचे इससे यह हमारा परिवार

बढती गुटबाजी देख मन मे

आया है ये विचार


पुरुस्कार की बजाय इस बार

बाँटे प्यार

कही फूट न पैदा कर दे

किसी एक को मिलने वाला पुरुस्कार

इस छोटे से ब्लाग जगत मे तो

हर कोई है इसका हकदार


हमारे लिये तो टिप्पणी ही

बडा उपहार

ग़ुटबाजी न कर दे

मन को बीमार

सब मिल कर मनाये रोज

खुशियो का त्यौहार

कही फूट न पैदा कर दे

किसी एक को मिलने वाला पुरुस्कार

इस छोटे से ब्लाग जगत मे तो

हर कोई है इसका हकदार


पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

© सर्वाधिकार सुरक्षित

11 comments:

नीरज गोस्वामी said...

950पंकज जी
जो इस चूहा दौड़ में शामिल नहीं हैं उनमें फूट पड़ नहीं सकती है और जो हैं उनमें समझो पहले से ही फूट है...इसलिए आप नाहक ही परेशां ना हों और प्रेम की कवितायें लिखें.
आप ने जो रचना के मध्यम से कहा है मैं उसका शत प्रतिशत समर्थन करता हूँ.
"राजेश रेड्डी" जी का एक शेर है
"ज़िंदगी का रास्ता क्या पूछते हैं आप भी
बस उधर मत जायीये भागे जिधर जाते हैं लोग"
नीरज

सुनीता शानू said...

पुरुस्कार की बजाय इस बार
बाँटे प्यार...वाह क्या बात कही हैं...

आपको नया साल बहुत-बहुत मुबारक हो...

36solutions said...

बहुत बढिया, इस छोटी सी दुनियां में सम्‍मान और प्‍यार बरकरार रहे, यही सबके लिए बहुत बडा पुरस्‍कार है ।
लोग तरकस में तीर भर रहे हैं, राखी सावंत प्रेस कान्‍फ्रेस कर रही है इसके बावजूद लोग लिख रहे हैं नांच रहे हैं ।
हम तो इस बात पे खुश हैं कि इन पुरस्‍कारों की घोषणा होते ही हमें बिना प्रविष्टि भेजे ही प्रथम पुरस्‍कार प्राप्‍त हो गया है अब हमारी महती जिम्‍मेदारी को हमें समझना है ।
सो लिखते रहे, लिखते रहो ।

मीनाक्षी said...

पंकज जी, इस चार दिन की ज़िन्दगी में प्रेम ही सत्य है. आप अपने चिकित्सा ज्ञान और कविताओं से जानकारी और प्रेम बाँटते जाइए.

Sanjeet Tripathi said...

क्या बात है प्रभो!
कविता धांसू है और इसके माध्यम से बढ़िया ही बात सामने रखी आपने!!

Gyan Dutt Pandey said...

वाह, कितने अच्छे विचार और उसपर नीरज जी द्वारा प्रस्तुत राजेश रेड्डी का शेर!

संजय बेंगाणी said...

मित्र पुरस्कार प्रोत्साहन के लिए होते है, फूट डालने के लिए नहीं.

तरकश हिन्दी नेट जगत के कई साँझे प्रयासो में शामिल रहा है और उसके संचालको को सामूहिकता का अहसास है.


तरकश द्वारा जो आयोजन हो रहा है उसके पर्यवेक्षक गण में सभी एग्रीगेटरों के संचालक शामिल है, फिर गूट या फूट कहाँ है?

Pankaj Oudhia said...

@ संजय जी

मै तो ब्लागरो की गुटबाजी की बात कर रहा हूँ। प्रेम भाव भूलकर अचानक की वोटो और नामाँकन के गणित शुरू हो गये है। पहला साल है न इसलिये अटपटा लग रहा है।

आप एग्रीगेटरो की बात नही कर रहा हूँ।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया व खरी बात की है कविता के माध्यम से।बधाई स्वीकारें।

अजित वडनेरकर said...

बढ़िया बात है पंकज जी।

ghughutibasuti said...

पंकज जी, लगभग दस महीने से हिन्दी चिट्ठीकारिता से जुड़ी हूँ । बहुत से लोग हैं जिनसे किसी मामले में विचार नहीं मिले तो टकराहट भी हुई है । फिर उनकी कोई बात सही लगने पर उनका पक्ष लेकर भी उलझी हूँ और बहुत बार बाहर से ही सबकुछ देखती रही हूँ । बहुत बार किसी कड़वे सत्य को भी बोली हूँ, परन्तु सदा यह जानते हुए कि मेरा सत्य सबका सत्य हो यह आवश्यक नहीं है । जौ इसके विरोध में बोलेगा वह भी मित्र ही है क्योंकि उसने मेरे लिखे को इस लायक समझा कि उसका खंडन करे ।
आप यदि पहले से ही यह मानकर चलेंगे कि फूट पड़ेगी तो दुख की बात है । मुझे नहीं लगता कि ऐसा होगा । तरकश की टीम ऐसा कुछ भी नहीं करेगी जिससे ऐसी संभावना हो ।
नववर्ष की शुभकामनाओं सहित
घुघूती बासूती