Monday, October 22, 2007

सब मिलकर उन्हे कोसे

सब मिलकर उन्हे कोसे

चलो खोजे

उसे जिसने

प्लास्टिक बनाया

उसे भी जिसने इसे

अच्छा बताया

और उसे भी जिसने इसे

घर-घर तक पहुँचाया

सब मिलकर उन्हे कोसे

फिर कडी सजा दिलाने की सोचे

चलो खोजे

ये कैसी उल्टी

बात है

हर बुरी चीज परोसी जाती ऐसे

जैसे सौगात है

शराब, सिगरेट, प्लास्टिक,

गुटखा-----

जाने क्या-क्या

फिर पीढीयो तक वह

हमे बरबाद करती

रोगो और रोगियो से पट

रही ये धरती

चलो दुखी परिवारो के आँसू पोछे

और उनसे निपटे

जो है ओछे

सब मिलकर उन्हे कोसे

फिर कडी सजा दिलाने की सोचे

चलो खोजे

पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

© सर्वाधिकार सुरक्षित

4 comments:

Udan Tashtari said...

सच में-चलो खोजे.

राकेश खंडेलवाल said...

और मिल जाये तो ?????

Anita kumar said...

पंकज जी पर्यावरण को ले कर आपकी चिन्ता सराहनीय है, सच है चलिए सब मिल कर प्रण लें कि जिसने भी बनाया सो बनाया किसने कहा हमको कि इस्तेमाल करो, नहीं आने देंगे प्लास्टिक अपने घरों में अपनी जिन्दगी में…॥बधाई

Gyan Dutt Pandey said...

प्लास्टिक प्रदूषण तो मेरा प्रिय चिंतनीय विषय है। उसे काव्य रूप देकर आपने बहुत अच्छा किया। धन्यवाद।