Wednesday, October 3, 2007

बहुत हो गया अब न चुप रहूँगी

बहुत हो गया अब न चुप रहूँगी

जाना न समझा मुझे

बस शोषक कह दिया

सदा बुरा कहा और लिखा

जैसे मैने कभी भला न किया


दूसरो के दिल को दुखाना

तुम्हारे लिये है खेल

बहुत हो गया अब न चुप रहूँगी

मै अमरबेल


आखिर मै भी हूँ

प्रकृति की बेटी

लौटाती वो सब कुछ

जो उससे लेती


फिर अनचाहा कहकर बागीचे से बाहर

क्यो देते हो ढकेल

बहुत हो गया अब न चुप रहूँगी

मै अमरबेल


भले ही मै तुम्हारी फसलो को

खाती हूँ

पर कई खरपतवारो को भी तो

ठिकाने लगाती हूँ


मै हूँ अनोखी, किसी से नही है

मेल

बहुत हो गया अब न चुप रहूँगी

मै अमरबेल


शोषण के खिलाफ आवाज

उठाते हो

तो फिर क्यो नही मेरी मदद को सामने

आते हो


आओ और कसो, मुझे बुरा कहने वाले

साहित्यकारो की नकेल

बहुत हो गया अब न चुप रहूँगी

मै अमरबेल


पंकज अवधिया दर्द हिन्दुस्तानी

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित

अमरबेल नामक परजीवी वनस्पति को हम सब जानते है। बचपन से ही उसके नकारात्मक पहलुओ के बारे मे बताकर हमारे मन मे तरह-तरह की बाते भर दी जाती है। पर अमरबेल ने मानव जाति की भलाई मे अमूल्य योगदान दिया है। दुनिया भर मे बतौर दवा इसका प्रयोग होता है। कई जीवन रक्षक दवाए इससे बनायी जाती है। हमारे देश के पारम्परिक चिकित्सक सदियो से यह जानते है कि अमरबेल अन्य वनस्पतियो से पोषक तत्व के अलावा औषधीय तत्व भी लेती है। मान लीजिये यदि अमरबेल बेर के पेड से एकत्र की जाती है तो उसमे बेर से अधिक औषधीय गुण होते है। आधुनिक विज्ञान अब इसे समझ पा रहा है।

6 comments:

Udan Tashtari said...

चलिये अब अमरबेल ने पुकारा है, वाह!! अनूठा प्रयोग-साधुवाद, पंकज भाई.

Gyan Dutt Pandey said...

उपेक्षित अमरबेल के भी दिन बहुरे. भला हो उस वनस्पति विज्ञानी का जिसने हमें उसकी महत्ता बताई.

ghughutibasuti said...

आप जो कह रहे हैं वह शायद सही हो। किन्तु जिनके भी पास बगीचा या बाग हो वे इसे देखते ही उखाड़ फ़ेंकते हैं, चाहे सदा सफ़ल ना हों ।यदि मुझे मेरा वनस्पति शास्त्र सही याद हो तो इसे अंग्रेजी में cuscuta कहते हैं।
आज अमरबेल का पहलू भी जाना, अच्छा लगा।
घुघूती बासूती

राज यादव said...

पंकज जी ,क्या उम्दा श्रीजन शीलता है आपकी ,आपने तो अमरबेल को अमर कर दिया ,अपनी इस प्यारी सी रचना se ...बहुत अच्छी रचना है ....

dpkraj said...

आपका प्राकृतिक ज्ञान बहुत रुचिकर है।
दीपक भारतदीप

मीनाक्षी said...

पहली बार आपके ब्लॉग पर आने का अबसर मिला... सुन्दर शब्द शैली से प्रकृति के प्रति स्नेह मन को मोह लेता है.
शुभकामनाएँ